देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : आजकल बीजेपी के गलियारे में एक नाम काफी चर्चा में है, वो है गायत्री प्रजापति। भला बीजेपी से गायत्री प्रजापती का क्या लेना देना, वो तो सामूहिक बलात्कार कांड में फरार चल रहा है। उत्तर प्रदेश पुलिस दबिश पर दबिश डाल रही है। जिसकी चर्चा उत्तरप्रदेश में होनी थी और समाजवादी पार्टी से जिसका तालुक था वो उत्तराखण्डी भाजपाइयों की जुबान पर कैसे चढ़ गया।
दरअसल बीजेपी उत्तराखण्ड अपने एक रासिकमिजाज नेता से निरन्तर चर्चाओं में रहती है, उसके किस्से कारनामे पूरे प्रदेश में चटकारे लेकर सुने जाते है। वैसे अनेक नेताओं की रासिकमिजाजी जनता में चर्चाओं में रहती है किंतु इन साहब ने अपने रंगीनमिजाजी में सबको पछाड़ दिया है। ये बात अलग है उसको अखण्ड संरक्षण देने वाले नेता भी उसी धारा के हैं। बीजेपी को अनुशासित पार्टी माना जाता है जिस कारण उसका खुला विरोध तो नहीं है किंतु उसके कारनामे हाईकमान दिल्ली से लेकर नागपुर तक काफी कुछ तो पँहुच चुके बाकि पहुंचाए जा रहे हैं।
गायत्री प्रजापति की चर्चा इसलिए है कि इस नेता की कद-काठी, पहनावा, हरकतें और कारनामे गायत्री प्रजापति जैसे ही है, उसे भी अभयदान मिला था और इसे भी कथित बड़े लोगों का अभयदान है वरना बिना जनाधार के यह यहाँ कैसे पुराने भाजपाइयों की छाती पर मूंग दलता। लोगों का कहना है कि इस नेता की विदाई भी कहीं प्रजापति की तरह न हो,क्योंकि कई बार तो यह बच निकला है और अब तब फंसेगा तो इसका नुकसान पार्टी की छवि को ही होगा। पार्टी का हर बड़ा छोटा नेता कार्यकर्ता इसकी हरकतों से अवगत है।वैसे भी इसका क्षेत्र विशेष और जाति विशेष के लिये उसका लगाव जगजाहिर है। बीजेपी संगठन में पदाधिकारियों की सूची से ये स्पष्ट है।
मलाईदार पोस्ट पर रहकर सभी अपना शेष राजनैतिक भविष्य सुरक्षित करते हैं इस क्रम में इस पदाधिकारी ने दोनों हाथों से अपना भला किया जो रोड़ा बना उसे निपटाया, जिसने आवाज उठाई उसे अपने आका से धमकवाया। आका भी ऐसे कि कोई कहीं फंसा हुआ है तो कोई कहीं, चरित्र के मामले में एक से बढ़कर एक प्रजापति । चर्चाएँ तो यहाँ तक हैं इसके खिलाफ जिम्मेदार लोग हाईकमान को बोलकर आ चुके है, सुबूत तक दे चुके हैं। इन चुनावों में भी उसने अपना खूब कल्याण किया। एक बड़े नेता ने सर्वोच्च स्तर पर जाकर इसकी जांच का अनुरोध तक किया है।
खैर वर्तमान में यहाँ के इस गायत्री प्रजापति के सितारे बुलन्द है। अपने खून पसीने से भाजपा को खड़ा करने वाले भी आजकी भाजपा और ऐसे पदाधिकारी के कारनामों से शर्मिंदा है। उसे भी पता है कि जनता और कार्यकर्ताओं के बीच उसकी छवि घृणित और असम्मानजनक है और उसने अपने पद की गरिमा कलंकित की है फिर भी उसकी अहंकारी बॉडी लैंग्वेज उसकी मजबूती का एहसास कराती है और उत्तराखण्डी नेताओं की कमजोरी की कहानी भी बयां करती है।