10 लोगों की मौत वाले हादसे के मृतकों के परिजनों को मुख्यमंत्री की दो-दो लाख रुपए मुआवजे की घोषणा
अस्थायी राजधानी देहरादून के भीतर ही अपने घरों तक पहुँचने के लिए नौकरशाहों को चाहिए 30 फ़ीट चौड़ी डबल लेन की शानदार -चमकदार सड़क और पहाड़ों में सड़क पर गड्ढे हैं या गड्ढों पर सड़क !
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : चमोली जिले के सीमांत इलाके देवाल के बलाण में हुई मैक्स जीप दुर्घटना में मारे गए 10 लोगों के परिजनों को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दो-दो लाख रूपये की मुआवजे की घोषणा की है। वहीं घायलों को 50-50 हजार रुपये की सहायता मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से दिए जाने के निर्देश दिये हैं।
गौरतलब हो कि रविवार अपराह्न देवाल के दूरस्थ क्षेत्र बलाण में हुई सड़क दुर्घटना की खबर प्रशासन तक पहुंचने में दूरसंचार सुविधाओं की बदहाली सामने आयी है। क्योंकि आज भी दूरस्थ क्षेत्रों में आज भी दूरसंचार समस्या है वहीं विकट पर्वतीय इलाकों में सड़कों की दयनीय स्थिति को भी हादसे के बाद कोसा जाता रहा है लेकिन इन दोनों ही समस्याओं का निदान आज तक कोई भी सरकार नहीं कर पायी है और मजबूरी में इलाके के लोगों के जेहन में कुछ दिन तक तो इस तरह के हादसों का खौफ तो जरूर रहता है लेकिन उसके कुछ समय बाद जहां स्थानीय लोगों अपनी मजबूरियों के चलते हादसों को भूल जाते हैं वहीं सरकारें भी अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ती नज़र आती है और फिर कुछ समय बाद किसी और दुर्घटना के बाद फिर वही जख्म फिर से हरे तो होते हैं लेकिन उन्हें भी फिर इसी तरह भूल जाया करते हैं।
चमोली जिले के जिस दूरस्थ इलाके में बीते इन यह हृदयविदारक घटना हुई वहां से तीस किलोमीटर दूर तक आज के आधुनिक युग में हर जगह संचार तंत्र पहुँचा दिए जाने का दावा करने वाली संचार कंपनियों के दावे खोखले नज़र आते हैं। यही कारण रहा जो घटना स्थल तक एम्बुलेंस और जिला प्रशासन की दुर्घटना के बाद आने वाली सहायता टीम को आने में घंटो लग गए और इस दौरान दुर्घटना में जीवित बचे जिन घायलों की बचने की उम्मीद थी, देरी से प्राथमिक सहायता मिलने की उम्मीद में वे भी दम तोड़ गए। इस दुर्घटना के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ। बलाण से 30 किलोमीटर नीचे आकर ग्रामीणों को घेस घाटी के सवाड़ में कनेक्टिविटी मिली तब जाकर जिला प्रशासन से संपर्क स्थापित हो पाया और 108 से संपर्क होने पर एम्बुलेंस दुर्घटनास्थल पर पहुँच पायी वह भी हादसे के दो से ढाई घंटे के बाद।
यह तो थी कनेक्टिविटी की बात अब सड़क की बात करते हैं पर्वतीय जिलों के दूरस्थ इलाकों में कमोवेश सभी इलाकों की यही स्थिति है। इस दूरस्थ इलाके में भी सड़कों की बदहाल स्थिति किसी से छिपी नहीं है। जहां उत्तराखंड के आला अधिकारियों को अस्थायी राजधानी देहरादून के भीतर ही अपने घरों तक पहुँचने के लिए 30 फ़ीट चौड़ी डबल लेन की शानदार सड़क चाहिए, वहीं इसी राज्य में घेस जैसे अन्य इलाके की सड़कों का कोई पूछने वाला नहीं है। स्थानीय लोग आज भी अपनी जान जोखिम में डालकर ऐसी सड़कों पर यात्रा करने को मजबूर हैं। सड़कों की हालत इतनी दयनीय है कि ऐसी सड़कों पर कोई भी वाहन 20 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ़्तार से ज्यादा तेज़ नहीं चल सकता। यहाँ की सड़कों पर यह पता नहीं चल पाता की सड़क पर गड्ढे हैं या गड्ढों पर सड़क बनाई गयी है। बीते दिन की मैक्स जीप दुर्घटना को सड़क की दयनीय स्थिति के कारण जीप के असंतुलित होकर खाई में समा जाने को बताया जा रहा है, जिसने 10 निर्दोष लोगों की जान ले ली।
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