”गंजा” कहने को तो साहब है पर नेता भी कम मंझा हुआ नहीं। अपने दुश्मनों से कैसे पार पाना है उसे बखूबी आता है लेकिन इस बार बेचारा गच्चा खा गया। खेती-बाड़ी के महकमे से जुड़े हुए उसे एक दशक से ज्यादा हो गया यहाँ रहकर उसने जो रायता फैलाया वह हर किसी के बस की बात नहीं। मगध प्रान्त के प्यार में पागल ”गंजे” ने सूबे में उनके लिए क्या कुछ नहीं किया यह किसी से छिपा नहीं है। कई बार बड़े न्यायालय तक ही दौड़ लगा चुका है लेकिन बेचारे को वहां से दुत्कार ही मिली। कुछ दिन शांत बैठने के बाद लगा फिर अपने दुश्मन को ठिकाने लगाने की योजना पर. लगे भी क्यों नहीं दुश्मन को ”गंजे” के वे सारे ”राज” मालूम हैं शायद ”गंजे” की बीबी को भी वे पता नहीं होंगे।”गंजे” को डर है कहीं वे ”राज” बाहर आ गए तो अब तक का सारा किया धरा बंटाधार हो जायेगा। लिहाज़ा वह एक तरफ तो दुश्मन को साधने में अपनी उर्जा लगा रहा है और दूसरी तरफ दुश्मन को फंसाने का चक्रव्यूह तैयार कर रहा है।
इस बार ”गंजे” ने बड़ी बारीकी से ”दुश्मन” को ठिकाने लगाने की योजना बनायीं सोचा बहती गंगा में क्यों न हाथ धो डालूं। दरबार भी सजा है और दरबारी भी कुछ अपने मनमाफिक विराजमान हैं , इसके लिए उसने इस बार विरोधी पार्टी के दूसरे अपने से कम और गंजेपन की ओर अग्रसर हल्के ”गंजे” को चुपचाप पटाया कि वह दरबार में ऐसा बीज बोकर आये कि उसकी फसल को वह आराम से काट सके इसके लिए ”गंजे” ने दूसरे ”गंजे” को नजराना भी काफी कुछ दिया। लेकिन दरबार में वह बीज दूसरे ”गंजे” ने फैला तो दिया लेकिन जैसी फसल की उम्मीद ”गंजे” कर रहा था वह नहीं लहलहा पायी और मामला टांय-टांय फुस्स होकर रह गया।बेचारा चौथे माले में सर पकड़ कर तब से अब तक बैठा हुआ है। सोच नहीं पा रहा है कि अब क्या करूँ कहीं ”दुश्मन” की चाल कामयाब को गयी तो वह चौथे माले से पहले माले पर लाकर न बैठा दे, इसी उधेड़बुन में पिछले तीन दिनों से ”गंजा” अपना सर खुजा रहा है।
इस घटना ने बाद तो बेचारे ”गंजे” को ताकत होने के बाद भी अपनी हार की तिलमिलाहट अपने ही सीने में दफ़न करके रखनी पड़ी. हां मामले को मैनेज करने के लिए 20 लाख की मोटी रकम जो सरकारी खजाने से निकली सो अलग साथ में उसकी सुरक्षा के लिए वाई श्रेणी तक की सुरक्षा बहाल रखी वो भी अलग। सत्ता के गलियारों में कहा तो यह भी जा रहा है बेचारे को न मिला खुदा और न बिसाले सनम। हां ”आका” को तो उसने पूरी तरह कब्जे में किया हुआ है तभी तो सूबे में चर्चाएँ सरे आम हैं कि ”आका” तो सही काम कर रहा लेकिन ”गंजे” की करतूतों से ”आका” पर भी जरुर कुछ छींटे पड़ रहे हैं। वहीँ ”आका” के शुभचिंतक इस बात से परेशां हैं की ऐसा चेला किस काम का जो गुरु को ही बदनाम करने पर तुला हुआ हो। खैर बाकि ”आका” की मर्जी वह ”गंजे” की ताल में ताल मिलाता है या अपनी ताल पर ”गंजे” को नचाता है। लेकिन अब तक तो ”आका” ”गंजे” की ताल पर ही नाचता नज़र आ रहा है जिस बार की चर्चाएं तो छोटे दरबार से लेकर बड़े दरबार तक भी पहुँच गयी है।