PERSONALITY

103 वर्ष के बाद विक्टोरिया क्रॉस को उनकी ही रेजिमेंट में किया जायेगा याद

5 दिसम्बर को लैन्सडाउन में आयोजित होगा  

विक्टोरिया क्रॉस दरबान सिंह नेगी के सम्मान दिवस

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

कर्णप्रयाग (चमोली) : विक्टोरिया क्रॉस (वी.सी.) नायक दरबान सिंह नेगी सम्मान व विकास दिवस आगामी पांच  दिसम्बर को गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल सेन्टर लैन्सडाउन में भव्य रूप से आयोजित किया जा रहा है।  पहले यह कार्यक्रम दिल्ली में आयोजित था जिसमें थल सेना अध्यक्ष जनरल विपिन रावत एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था. लेकिन उनकी अन्यत्र व्यस्तता के कारण कार्यक्रम स्थल अब लैंसडाउन किया गया है।

वार मेमोरियल राजकीय इन्टर कालेज कर्णप्रयाग शताब्दी समारोह समिति के केन्द्रीय महासचिव भुवन नौटियाल ने बताया कि समिति की देहरादून इकाई के अध्यक्ष मेजर जनरल दिग्विजय सिंह कुंवर (सेवानिवृत) के नेतृत्व में शताब्दी समारोह समिति के पदाधिकारियों का प्रतिनिधिमण्डल चार दिसम्बर को लैंसडाउन पहुँच जायेगा तथा पांच दिसम्बर को गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल सेन्टर में शहीदों को श्रद्धांजलि के बाद सैनिकों व सैन्य अधिकारियों के साथ विक्टोरिया क्रॉस दरबान सिंह नेगी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर सूचनाओं को साझा करेंगे।

पांच दिसम्बर 1914 को फ्रांस के युद्ध के मैदान में किंग जॉर्ज पंचम ने विक्टोरिया क्रॉस साहब के अदम्य शौर्य, वीरता व पराक्रम से प्रभावित होकर परम्पराओं व प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए लंदन के पैलेस एवं देश की सीमाओं से बाहर मित्र राष्ट्र फ्रांस के युद्ध के मैदान में जाकर स्वयं विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया। यह दुनिया में अपने प्रकार की संभवतया पहली घटना होगी।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान  23 व 24 नवम्बर 1914 को फ्रांस के फेस्तुवर्त स्थान पर हुए युद्ध  के लिए गढ़वाल राइफल्स के नायक दरबान सिंह नेगी का चयन विक्टोरिया क्रॉस के लिए हुआ. यह ख़िताब प्रथम भारतीय के नाम दर्ज हुआ। उल्लेखनीय है कि नायक दरबान सिंह नेगी के नाम वार मेमोरियल शताब्दी समारोह समिति ने 23 व 24 नवम्बर को इस वर्ष वी.सी. दरबान सिंह नेगी शौर्य एवं विजय दिवस नेहरु पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी एवं प्रेस क्लब देहरादून में ऐतिहासिक ढंग से आयोजित किया।

विक्टोरिया क्रॉस प्राप्त करते हुए वी. सी.साहब ने किंग जॉर्ज पंचम से प्रथम विश्व युद्ध में शहीद होने वाले गढ़वाली सैनिकों की स्मृति में 2 मांगें रखीं।

पहली – कर्णप्रयाग में अंग्रेजी माध्यम की वार मेमोरियल मिडिल स्कूल 
दूसरी – हरिद्वार-ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक वार मेमोरियल रेल लाइन 

दोनों मांगें फ्रांस की धरती पर ही किंग जॉर्ज पंचम ने स्वीकार की थी।  सन 1914 से सन 1918 तक प्रथम विश्व युद्ध चला. युद्ध के अंतिम समय में 26 अक्टूबर 1918 को कर्णप्रयाग में वार मेमोरियल एंग्लो वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल की स्थापना हुई। जिसके उद्घाटन के लिए गढ़वाल के डिप्टी कमिश्नर जोसेफ क्ले अपनी पत्नी सहित उद्घाटन करने पहुंचे। वार मेमोरियल रेल लाइन का भी सर्वे सन 1919 से सन 1924 के बीच पूरा हुआ।

शताब्दी समारोह समिति का मानना है कि पांच  दिसम्बर जहाँ वी. सी. साहब को सम्मान मिला वहीं उनके द्वारा उसी दिन देश की आजादी का एक छद्म युद्ध भी जीता गया, जिसके माध्यम से उन्होंने अत्यधिक पिछड़े पर्वतीय क्षेत्र में विद्यालय के बहाने शिक्षा की आजादी तथा रेल के बहाने विकास की आजादी के द्वार भी खोल दिए क्योंकि उनका मानना था कि अज्ञानता ही दासता की जननी है और विकास की कुंजी रेलगाड़ी है। यही कारण रहा है कि आजादी से पूर्व 30 वर्षों तक कर्णप्रयाग स्कूल स्वतंत्रता आन्दोलन का केंद्र बन गया था। यहाँ आजादी के परवाने(स्वतंत्रता संग्राम सेनानी) तैयार हुए।कर्णप्रयाग व गैरसैण के राजनीतिक सम्मलेन, कूली बेगार आन्दोलन, ककोडाखाल आन्दोलन, डोला पालकी आन्दोलन, शराब विरोधी पिकेटिंग आन्दोलन , बद्रीनाथ मंदिर आन्दोलन सहित अनेक आंदोलनों का केंद्र कर्णप्रयाग ही रहा। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं का आवागमन बढ़ा।1942 का पेशावर काण्ड व 1942-45 में आजाद हिन्द फौज में भी इस विद्यालय के विद्यार्थियों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।

उल्लेखनीय है कि विश्व  के इतिहास में  वी. सी. साहब को विक्टोरिया क्रॉस देने के लिए प्रोटोकॉल और परम्परायें ही नहीं तोड़ी गयी बल्कि उन्हें विक्टोरिया क्रॉस देने के 2 दिन बाद विक्टोरिया क्रॉस देने की राजाज्ञा जारी करना भी गोपनीयता के हिसाब से अद्वितीय घटना है। सन 1921 में प्रथम विश्व युद्ध में गढ़वाल राइफल्स की विशिष्ट सेवाओं व अद्वितीय  शौर्य के लिए सम्राट ने “रॉयल” के खिताब से सम्मानित किया गया । यह भी गढ़वाल व गढ़वाली सैनिकों के लिए गौरवान्वित करने वाली घटना है।

वार मेमोरियल शताब्दी समारोह समिति ने पांच  दिसम्बर को वी. सी. दरबान सिंह नेगी सम्मान व विकास दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया है. प्रथम विश्व युद्ध के 103 वर्ष के बाद संभवतया यह पहला मौका होगा जब वी.सी. साहब के रेजिमेन्ट सेन्टर में उनकी शौर्य गाथा से गगन गुंजायमान होगा।

devbhoomimedia

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