क्या महाधिवक्ता और सीएससी पर गिरेगी सरकार को संकट में डालने वाले निर्णयों की गाज़

- महाधिवक्ता से लेकर मुख्य स्थायी अधिवक्ता की कुर्सी को खतरा !
- सरकारी अधिवक्ताओं की फौज के काम काज की भी सरकार कर रही समीक्षा
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसलों ने आजकल राज्य सरकार संकट में है। वहीँ जल्द ही हाई कोर्ट नैनीताल द्वारा लगातार सरकार को संकट में डालने वाले आ रहे फैसलों की गाज़ नैनीताल उच्च न्यायालय के महाधिवक्ता की कुर्सी पर गिर सकती है। इस परिवर्तन की सुगबुगाहट हाई कोर्ट नैनीताल से लेकर राजधानी देहरादून तक सुनी जा रही है। इसके साथ ही सरकार कुछ और सरकारी अधिवक्ताओं पर भी गाज़ गिराने की तैयारी में है जो नैनीताल उच्च न्यायलय में सरकार का पक्ष सही तरीके से नहीं रख पा रहे हैं और जिनकी लापरवाही से सरकार की आये दिन किरकिरी हो रही है।
गौरतलब हो कि बीते महीने से लेकर अब तक हाई कोर्ट नैनीताल द्वारा तमाम जन हित याचिकाओं सहित अन्य मामलों में आये फैसलों और निर्देशों ने राज्य सरकार को असहज किया है। सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नैनीताल उच्च न्यायालय के आये कुछ फैसलों के खिलाफ सरकार उच्चतम न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने की तैयारी में है तो कुछ फैसलों पर वह उच्च न्यायालय के खंड पीठ में अपील करने की तैयारी में है, लेकिन इससे पहले राज्य सरकार नैनीताल उच्च न्यायालय में तैनात महाधिवक्ता से लेकर मुख्य स्थायी अधिवक्ता और सरकारी अधिवक्ताओं के काम काज की समीक्षा कर रही है। सत्ता के गलियारों में चल रही चर्चाओं के अनुसार सरकार जहां तमाम गंभीर आरोपों की पुष्टि के बाद मुख्य स्थायी अधिवक्ता को हटाने का मन बना चुकी है वहीँ महाधिवक्ता की कुर्सी पर भी गाज गिराने की तैयारी में है। चर्चाओं के अनुसार सरकार के पास जो फीड बैक नैनीताल से मिला है वह साफ़ है कि महाधिवक्ता और मुख्यस्थायी अधिवक्ता के उच्च न्यायालय की बेंचों के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध नहीं बन पा रहे हैं जिसका खामियाज़ा राज्य सरकार को उठाना पड़ रहा है।
सरकार का मानना है कि नगर निकाय चुनावों को लेकर नैनीताल उच्च न्यायालय के निर्णयों से सरकार की फजीहत का क्रम शुरू हुआ था इसके बाद दून के मास्टर प्लान और अब नजूल भूमि के निर्णय के बाद अतिक्रमण के सम्बन्ध में हाई कोर्ट के निर्णय ने सरकार की जमकर फजीहत की है। इन्हीं सभी मामलों को लेकर राज्य सरकार नैनीताल उच्च न्यायालय में तैनात सरकारी अधिवक्ताओं की बड़ी फौज से खासी नाराज है और यही कारण है अब सरकार इनकी नियुक्तियों ऊपर पुनर्समीक्षा कर रही है।
वहीँ सूत्रों ने यह भी बताया है कि पूर्व में महाधिवक्ता रहे उमाकांत उनियाल भी अब इस दौड़ में शामिल हो गए हैं उन्हें पूर्व में हरीश रावत सरकार ने उनके भाई द्वारा उनकी सरकार के तख्ता पलटने के बाद हटाया था। हालाँकि इस बार उनकी सिफारिश पूर्ण मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और उनके भाई कृषि मंत्री सुबोध उनियाल जोर-शोर से करने में जुटे हुए हैं लेकिन राज्य सरकार द्वारा इस नियुक्ति में कोई दिलचस्पी न दिखाना उनके लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। वहीँ दिल्ली सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की तरफ से नियुक्त अधिवक्ता रायजादा भी दौड़ में बताये जा रहे हैं उनकी नियुक्ति को लेकर दिल्ली के कुछ नेता खासे सक्रिय बताये जा रहे हैं। हालाँकि यदि उमाकांत उनियाल की यदि तैनाती होती है तो उनके मंत्री भाई तब नियमानुसार पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है।
वहीँ नैनीताल हाई कोर्ट में सरकार द्वारा तैनात तेज़ तर्रार अपर महाधिवक्ता जे.पी. जोशी को लेकर भी संघ और भाजपा के नेता उनकी उपलब्धियों को लेकर उन्हें महाधिवक्ता बनाये जाने के लिए सरकार से संपर्क किया है उल्लेखनीय है कि त्रिवेन्द्र सरकार के गठन के बाद जे.पी. जोशी महाधिवक्ता की सूची में पहले स्थान पर थे लेकिन तत्कालीन समय में वे क्यों पीछे हो गए यह जानकारी नहीं मिल पायी है।