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पहाड़ की महिलाओं और युवाओं के रोज़गार के सपनों को आर्थिकी से जोड़ता एक जिलाधिकारी ऐसा भी
पौड़ी को पर्यटन के मानचित्र में एक विशेष स्थान दिलाने के लिए कृत संकल्पित हैं धिराज गर्ब्याल
राजेंद्र जोशी
ऐतिहासिक तो है ही साथ ही कई इतिहास को भी अपने में संजोये हुए है पौड़ी
उत्तराखंड का पौड़ी जिला जिसे कभी ब्रिटिश गढ़वाल के नाम से जाना जाता था, इस जिले का मुख्यालय पौड़ी जो ऐतिहासिक तो है ही साथ ही कई ऐसी विरासतों को अपने में संजोये हुए है। गढ़वाल ही नहीं बल्कि वर्तमान उत्तराखंड से लगे सीमावर्ती जिलों के नौनिहालों का कभी शिक्षा का केंद्र हुआ करता था। राज्य बनने से पूर्व क्या चहल-पहल रहती थी पौड़ी में इसे तो सभी ने देखा होगा। तब यह कस्बा जिला मुख्यालय होने के साथ ही यह गढ़वाल का मंडल मुख्यालय भी था, है तो जो आज भी लेकिन सिर्फ नाम के लिए। राज्य के अस्तित्व में आने के बाद से आरामतलब अधिकारी मंडल कार्यालय का एक शिविर कार्यालय देहरादून से चला रहे हैं जिसकी वजह से पौड़ी की दुर्दशा हुई है और पहाड़ के चमोली और पौड़ी जिले के दूर दराज के लोगों को देहरादून की दौड़ लगानी पड़ रही है,राज्य के अस्तित्व में आने से पहले ऐसे इलाकों के लोग सुबह-सुबह पौड़ी पहुंचकर अपना काम सायं तक निबटा लेते थे और रात्रि तक अपने घरों को पहुँच जाते थे।लेकिन आरामतलब मण्डलाधिकारियों के कारण अब उन्हें देहरादून में अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है। खैर ये बात देहरादून में आराम फरमा रहे अधिकारी क्या समझेंगे उन्हें तो अपनी सुविधाओं से मतलब है, मंडल या जिले की जनता से इनका क्या लेना देना जबकि उन्ही की गाढ़ी कमाई के पैसे से वे वेतन पा रहे हैं।