अभिनव जन्म से ही बिना तालू व कटे हुए होंठ के साथ ही हुआ था पैदा
अभिनव अब सामान्य बच्चों की तरह बोल पा रहा है
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून। एसआरएचयू हिमालयन हाॅस्पिटल के प्लास्टिक सर्जरी विभाग में 6 वर्षीय बालक के कटे होंठ तालू की सफल सर्जरी कर माता पिता के चेहरे पर मुस्कान लौटाई।
अल्मोड़ा जिले के अभिनव (काल्पनिक नाम) बालक के माता-पिता ने बताया कि अभिनव जन्म से ही बिना तालू व कटे हुए होंठ के साथ ही पैदा हुआ था। उन्होंने बताया कि गांव में अंधविश्वास ज्यादा होने के कारण स्थानीय लोगों का कहना था कि यह एक अभिशाप है। परिजनों का कहना है कि उन्हें जानकारी का अभाव होने के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ा वह भगवान की मर्जी समझ कर बच्चे को बड़ा करने लगे। परिजनों की मुलाकात आशा कार्यकत्री से हुई जिसकी सलाह पर उन्होंने बच्चे को हिमालयन अस्पताल लाने का फैसला किया। माता पिता का कहना है कि आशा ने बताया कि बच्चा पूर्ण रूप से स्वस्थ हो सकता है।
आशा ने बताया कि अभिनव की सर्जरी व इलाज के साथ आने जाने का पूरा खर्चा भी निशुल्क होगा। माता-पिता अभिनव को लेकर हिमालयन अस्पताल के प्लास्टिक सर्जरी विभाग में उन्होंने प्लास्टिक सर्जन डाॅ. संजय द्विवेदी को दिखाया, उन्होंने बच्चे की कुछ प्राथमिक जांचे कर उसके होठ की सर्जरी की व परिजनों को सलाह दी कि बच्चे को 6 माह बाद तालू की सर्जरी के लिए दुबारा लाएं।
होंठ की सर्जरी के बाद परिजनों को लगा कि बच्चा अब पूर्ण रूप से स्वस्थ है, उसे अब तालू की सर्जरी की आवश्यकता नही है। अभिनव 6 साल का होने के बाद भी बोल नही पाया जिसके बाद माता-पिता उसे फिर से हिमालयन अस्पताल के प्लास्टिक सर्जरी विभाग में डाॅ. संजय द्विवेदी के पास लाए व चिकित्सक ने फिर से तालू की सर्जरी कर उसके परिजनो को रेगुलर बच्चे की स्पीच थेरेपी करवाने की सलाह दी। अभिनव अब सामान्य बच्चों की तरह बोल पा रहा है।
चिकित्सक डाॅ संजय द्विवेदी का कहना है कि अगर जन्म से ही बच्चों में कटे तालू व कटे होंठ की समस्या रहने पर तुरंत से चिकित्सक के पास लाएं। उन्होंने बताया कि जितनी कम उम्र में बच्चे का इलाज कराया जाए बच्चा अन्य बच्चों की तरह सामान्य हो सकता है। उन्होंने बताया कि तालू की सर्जरी 3 महीने की उम्र में होंठ की सर्जरी 9 से 18 माह मेें तालू की सर्जरी करने का इलाज मिलना चाहिए। अभिनव की सर्जरी की जटिलता इस प्रकार थी कि परिजनों के पढ़े लिखे न होना व बच्चे के प्रति लापरवाही, गरीबी के कारण बच्चे को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते थे।