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चमोली जिले का एक गांव : देवी देवताओं का गांव, नाम ही है ”देवग्राम”

सभी देवी देवताओं के छोटे बड़े मंदिर हैं इस गांव में, कुछ प्राकृतिक आपदाओं में  टूट गये तो  कुछ अभी भी हैं 

क्रांति भट्ट 
कुदरत की नायाब खूबसूरती लिये वह उत्तराखंड। जहां आकाश की ऊंचाई छूते पहाड़ . दूर तक फैले मखमली नर्म घास के बिछौने वाले बुग्याल , ( मिडोज ) , लम्बे लम्बे शंकुधारी वृक्षों देवदार , खर्सू , मोरू , झूमते बांज , लाल सुर्ख रंग के फूलों वाले बुरांस . मीठे काफल , सर्र् सर्र हवाओं वाले कुलैं सहित सैकड़ों प्रजाति के पेड़ , अनगिनत वनस्पतियों का संसार बसता है । जिस उत्तराखंड में जैविक विविधता है जानने योग्य पारिस्तिथिकी की भूमि है ।, कुचांले मारे घ्वीड़ . काखड़ , शर्मीले कस्तूरी मृग , बला की खूबसूरती लिये मोनाल न जाने कितने वन्य प्राणियों , पांखियों . उछलती कूदती , फांदती कभी मुस्करा कर और कभी खिलखिलती पहाड़ की हथेलियों और गांव के करीब से बहती पहाड़ की छोटी छोटी नदियों गदेरों वाले उत्तराखंड को प्रकृति की बेनजीर खूबसूरती की जमीन भी कहा जाता है । तो देवभूमि भी । कुछ तो वजह रही होगी इस जमीन में । तभी तो देवी देवता भी उत्तराखंड में रम गये । तप , ध्यानावस्थित हो गये ।
यूं तो उत्तराखंड के पहाड़ के हर गांव में जीवन और देवी देवताओं के न जाने कब से बने मंदिर हैं । पूजाऐ होतीं हैं। सबकी अपनी अपनी मान्यताऐं है। पर इसी देव भूमि उत्तराखंड में एक ऐसा भी गांव है । जिसका नाम ही है “देवग्राम ” । अर्थात देवताओं का गांव।
चमोली जिले की प्राकृतिक दृष्टि से खूबसूरत और कल्पगंगा के नीर स्नात हुयी ( स्नान ) किये उर्गम घाटी में न जाने कब से बसा है । यह खूबसरत गांव ” देवग्राम ” । नाम के अनुसार सचमुच देवी देवताओं का गांव है । सभी देवी देवताओं के छोटे बड़े मंदिर हैं इस गांव में। प्राकृतिक आपदाओं में कुछ टूट गये । कुछ अभी भी है । इस गांव का पुराना नाम दयूड़ा भी है।
उर्गम घाटी के संस्कृति धर्मी रघुवीर सिंह नेगी बताते हैं लोक कथाओं के अनुसार 1803 से पहले 360 मन्दिर हुआ करते थे जो भीषण पाकृतिक आपदा में ध्वस्त हो गये । जो आज भी जागरों ओर लोक मान्यताओं में जीवित हैं । इस देवग्राम के गौरा मन्दिर में रखी गयीं 100 से अधिक मूर्तियां भूस्खलन से पूर्व इस बात की गवाह थी। अभी इसी गौरा मंदिर में 20 टन के पत्थर शेर सहित कुछ ही मूर्तियां हैं। यहां पर हजारों सालों पुराना देवदार का कल्प वृक्ष भी है।
कहा जाता है देवग्राम में कामदेव की पत्नी रति ने अपने पति को प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की आराधना की थी। संस्कृति थर्मी रघुवीर बताते हैं कि महर्षि दुर्वासा ने इन्द्र को यहां पर ही श्राप दिया था ।जिससे देवराज ने मुक्ति हेतु यहां इन्द्र गुफा में भवरें के रूप में तप किया था । ये गुफा देव ग्राम गाँव के ऊपर आज भी मौजूद है। देवग्राम का बांसा गांव महर्षि और्व की तपस्थली रही है ।देवग्राम में केदार मन्दिर के पास 14वीं सदी में एक कुण्ड था ।जब लोग बदरी केदार की दुर्गम यात्रा नही कर पाते थे तो यहां पर अपने पूर्वजों का तर्पण करते थे। देवग्राम में अमृतकुण्ड , पाण्डव मंदिर , नन्दा देवी कख मंदिर , नाग देवता का मंदिर , मां जगदी दाणी देवी का मंदिर है ।
यहां बाबा भैरव का प्रसिद्ध मन्दिर भी है जो पंचम केदार कल्पेश्वर के निकट है। देवग्राम उर्गम घाटी में होने वाले मणों मेला दयूडा मणों का स्थल भी है यहां देवग्राग में। बडोई नामक स्थान से तांबे के मंगरा जलधाराओं से कभी जल जोशीमठ के नृसिंह मन्दिर ले जाया जाता था ।मोला मंगरा आज भी सुरक्षित है । यहां नन्दादेवी का मंदिर भी है ।हर वर्ष भादों माह में नन्दा अष्टमी पर्व पर मां नन्दा की छतोली सबसे पहले फ्यूला नारायण मंदिर से होते हुये बुग्यालों की ओर जाती है । लोग बताते हैं कभी बदरीनाथ जी के अभिषेक से दूध , धृत इसी उर्मम घाटी के गांवों से जाता था ।
अन्न धन , गौ पालन की घाटी रही है । उर्गम घाटी । जो आज भी । देवग्राम के निकट देवताओं के शिल्पी भगवान विश्लकर्मा का भी स्थान है । देवताओं की इस सुरम्य घाटी और गांव स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी स्वः श्री बहादुर सिह नेगी की जन्मभूमि भी है ।वर्तमान में देवग्राम मे 174 परिवार निवास करते है ।देवग्राम पंचायत देवग्राम गीरा बांसा को मिलकर बनी है पंच केदार में पांचवा कल्पेश्वर मंदिर भी इसी गांव के समीप कल्प गंगा के तट पर बसा है जो 12 महीने खुला रहता है।

(क्रांति भट्ट उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं जो गोपेश्वर के रहने वाले हैं उनकी फेसबुक वाल से साभार )

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