UTTARAKHAND

अपने दायित्वों का निर्वाह करने से ही होगा विकसित राष्ट्र का निर्माण

!!अपने दायित्वों का निर्वाह करने से ही होगा विकसित राष्ट्र का निर्माण!!

स्वाधीनता दिवस प्रतिवर्ष हमें सुरक्षित और समृद्ध राष्ट्र होने का स्मरण कराता है। सुरक्षित और समृद्ध राष्ट्र तभी होगा जब हम अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए नए भारत के निर्माण में अपना समुचित सहयोग करेंगे। हमें स्वतंत्रता की महत्ता समझनी होगी और इस पर ध्यान देना होगा कि हमने बीते 78 वर्षों में क्या-क्या अर्जित किया?….

 

उत्तराखंड : आज पूरा देश आज अपना 78 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। अमृत काल में जब हम देश का 78 वां स्वाधीनता उत्सव मना रहे हैं तो इसके पीछे अनेक समर्पित नेताओं, किसानों और युवाओं की अटूट देशभक्ति है, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नि:स्वार्थ रूप से लोकतंत्र की भावना को अपने खून-पसीने से सींचा था और अनेक युवा क्रांतिवीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। भले ही वे भिन्न-भिन्न पंथों,जातियों,क्षेत्रों और भाषाओं का प्रतिनिधित्व करते रहे हो, किंतु सब एक देश की भावना के प्रति समर्पित थे।

 

स्वतन्त्रता दिवस उन सभी का स्मरण व नमन करने का भी अवसर है। जिन राष्ट्र निर्माताओं ने एक सशक्त लोकतंत्र की नींव रखी। ऐसे में यह अवसर एक संयोग मात्र नहीं है कि बल्कि वह निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है जिनके बलिदान से भारत में लोकतंत्र न केवल सुरक्षित एवं समृद्ध हुआ है। यह तथ्य आज की तारीख में विशेष रूप से उल्लेखनीय है,क्योंकि पड़ोसी देश एक-एक कर लोकतंत्र से विमुख हो रहे हैं। वहां अराजकता के चलते घोर राजनीतिक अस्थिरता का माहौल पनप रहा है। बांग्लादेश की घटनाएं बता रही हैं कि वहां किस तरह चुनी हुई सरकार और प्रधानमंत्री को अपदस्थ कर दिया गया।

आज अगर हम चारों ओर अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर देखें तो चारों ओर उथल-पुथल है। बांग्लादेश के अलावा इंग्लैंड,अमेरिका और फ्रांस में भी असंतोष की भावनाएं उबल रही हैं। इस दृष्टि से यह बड़ी बात है कि भारी विविधताओं और वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत न केवल लोकतंत्र को संभालने में सफल रहा, बल्कि यहां का लोकतंत्र और सुदृढ़ हुआ है। इसके दम पर भारत एक समर्थ अर्थव्यवस्था के साथ विकसित देश बनने की ओर अग्रसर है। यदि आपातकाल के दुर्भाग्यपूर्ण दौर को छोड़ दें तो आपातकाल के बाद भारत में जनतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकारें ही सत्ता संभालती रहीं हैं।

 

फिर चाहे वह चाहे अकेली पार्टी की सरकार हो या गठबंधन की सरकारें। जनता ने सबका स्वागत किया और लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत किया। आपसी समझदारी और भरोसे के साथ देश की यात्रा चलती रही। यह आगे और सुगमता से और तीव्र गति से चले, इसकी चेष्टा प्रत्येक भारतवासी को करनी चाहिए। आज देश अंतरिक्ष विज्ञान जैसे ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों में प्रगति के पथ पर अग्रसर है, साथ ही स्वावलंबन की ओर अग्रसर भी है। समाज के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति तक सुविधाएं पहुंचाने का कार्य सफलतापूर्वक होता रहें।

 

पंद्रह अगस्त, 1947 के दिन भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली और यहां तक पहुंचने के पहले कई नेताओं को शासन चलाने का अभ्यास मिला। नौकरशाही,कानून-व्यवस्था,शिक्षा-व्यवस्था और लोकतांत्रिक रीति-नीति का अच्छा-बुरा जो ढांचा अंग्रेजों ने औपनिवेशिक भारत के लिए छोड़ा था, वह एक प्रकार से रेडीमेड तैयार था। उसे ही स्वतंत्र भारत के लिए आधार बनाया गया। अंग्रेजी चाल-ढाल वाला साहबी ठाट-बाट, शौक और रुतबे की छवि मन में बसी हुई थी। जिसका अनुकरण काफी हद तक आज भी हो रहा है।

 

इसका परिणाम यह हुआ कि जनता और लोकतंत्र का विचार कम और राजसी प्रतीकों और ताम-झाम को बनाए रखने के उपाय अधिक किए जाते रहे। इनमें स्वराज और जनसेवा का विचार पृष्ठभूमि में खोता चला गया। यह कड़वी सच्चाई है कि जन-सेवा से जिन्होंने राजनीति में प्रवेश लिया, वे शीघ्र ही उसे भूल गए और आंखें मूंद कर सिर्फ धन-संपदा कमाने में जुट गए। राजनीति एक व्यवसाय या धंधा बनता गया, जिससे बहुत कुछ अर्जित किया जा सकता था।

 

अनेक नेताओं की संपदा जिस तरह तीव्र गति से बढ़ी, वह अकल्पनीय है। उनमें आय से अधिक संपत्ति के मामले आम हैं। चाहे कुछ पकड़े गए हों या नहीं। राजनीति का व्यापारीकरण भी होता गया। वोट पाने, समर्थन जुटाने और अपनी बात चलाने के लिए सौदेबाजी सामान्य सी बात हो गई। अधिकांश दलों और नेताओं के लिए विचारधारा का कोई मूल्य-महत्व नहीं रह गया है। आम चुनावों में सैकड़ों करोड़ की जब्ती होती है और जो पकड़ में नहीं आता, उसकी तो बात ही नहीं।

 

चूंकि अपराध सिद्ध करना लगभग असंभव सा कानूनी खेल है अतः तमाम नेता जमानत लेकर राजनीति में सक्रिय रहते हैं। एक किस्म के दायित्वहीन नेताओं की भीड़ जमा होती जा रही है, जिन्हें देश, समाज और संस्कृति किसी की भी चिंता नहीं है। वे सिर्फ अपने, अपने परिवार और अपनी पार्टी का ही भला देखते हैं। भ्रष्टाचार अब एक स्वाभाविक आचरण होता जा रहा है और हर आदमी उसे जीने के लिए बाध्य हो रहा है।

हाथरस में एक आध्यात्मिक गुरु के पास पहुंची भीड़ कुछ इस तरह अनियंत्रित हुई कि एक सौ बाईस लोगों को ‘मुक्तिदायी गुरुचरणरज’ लेने में अपनी जान से ही हाथ धोना पड़ा। पहाड़ों पर पहले जंगल की आग ने बहुत बड़ा हरित क्षेत्र स्वाहा किया और अब तीव्र वर्षा सड़क और घर सबको तहस-नहस कर रही है। तिस पर सरकार जनता को यह ‘ज्ञान’ देती रहती है कि इन सब मामलों में उचित कार्रवाई हो रही है, रपट का इंतजार है, न्याय अवश्य होगा और किसी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। चूंकि जनता की स्मृति कमजोर होती है और नई-नई समस्याएं हाजिर होती रहती हैं, लिहाजा पुरानी घटनाओं का असर उत्तरोत्तर कम होता जाता है।

 

संसदीय कार्यवाही के सजीव प्रसारण से सभी को पता चलता है कि कौन क्या बोल रहा है? यह समझना अवश्य आसान हो जाता है कि वह ऐसा क्यों बोल रहा है? आम लोग भी समझदार हो रहे हैं और लोकतंत्र का आशय समझने लगे हैं। आज आवश्यकता है कि अपने छोटे-छोटे घरौंदों की सीमाओं को पहचानें।

 

स्वाधीनता दिवस के अवसर को सुयोग बनाने की जरूरत है, ताकि देश आगे बढ़ सके। देश सुरक्षित और समृद्ध होगा तभी सभी का भविष्य सुधरेगा। भविष्य हमारा है, मगर तभी जब हम अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए नए भारत के निर्माण में समुचित सहयोग करेंगे। हमें स्वतंत्रता की महत्ता समझनी होगी और इस पर ध्यान देना होगा कि हमने बीते वर्षों में जो कुछ अर्जित किया है, उससे अधिक पाने के हकदार हैं।

रुड़की,हरिद्वार (उत्तराखंड)

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