उत्तराखंड की सभी सत्तर विधानसभाओं में हुआ शान्तिपूर्ण मतदान हमारे लोकतंत्र की परिपक्वता और चुनाव आयोग के कुशल प्रबंधन को दर्शाता है।
कमल किशोर दुकलान
उत्तराखंड विधानसभा का चुनाव इस बार कई मायनों में महत्वपूर्ण था। सोमवार को उत्तराखंड की सभी सत्तर सीटों के लिए चुनाव हुआ। जिसमें सभी सत्तर सीटों पर लड़ रहे विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों का फैसला अगले दस मार्च तक ईवीएम में बंद हो गया।अगर देखा जाए तो इस समय उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी का शासन है,राज्य की प्रत्येक सीट पर केन्द्र से लेकर बूथ स्तर तक के सभी चुनाव प्रबंधन में लगे नेताओं को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा।
मंहगाई,बेरोजगारी,पलायन जैसे मुद्दों को विपक्ष ने चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश सुरु से ही की।इस लिहाज से देखा जाए,तो उत्तराखंड की लड़ाई सबसे रोचक है।राज्य के मतदाता राज्य बनने के बाद से ही बारी-बारी कांग्रेस और भाजपा को सत्ता सौंपते रहे हैं। इस बार भी चुनावी प्रतिस्पर्धा मूल रूप से इन्हीं दोनों दलों के बीच है।
उत्तराखंड देश के उन राज्यों में एक है,जहां बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है। दूसरी तरफ,वहां के पर्वतीय क्षेत्रों की अगर बात करें तो वहां के गांव बड़े पैमाने पर पलायन की समस्या से भी जूझ रहे हैं।
सबसे बड़ी बात है पर्यावरण में हो रहा बदलाव,जो पूरे प्रदेश के लिए लगातर खतरा बना हुआ है। बाकी मसलों का तो यदा-कदा जिक्र होता भी है,लेकिन यही एक ऐसा मुद्दा है,जो सभी राजनीतिक दलों की प्राथमिकता सूची से गायब है। सोमवार को राज्य में हुए ५९ प्रतिशत मतदान एवं पहले के मुकाबले चुनावी हिंसा की नगण्य घटनाएं तथा बिना मतदान में गड़बड़ी के आरोप के बीच शान्ति पूर्ण मतदान हमारे लोकतंत्र की परिपक्वता और चुनाव आयोग के अच्छे प्रबंधन का पता चलता है।