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राष्ट्रीय शिक्षा नीति बदलाव की बुनियाद

कमल किशोर डुकलान

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को अनुमोदित हुए आज 29 जुलाई को एक वर्ष पूरे होने को है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का 2014 के बाद से अब तक की बड़ी घटनाओं में से एक है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से जहां एक ओर भारतीय समाज के पारंपरिक मूल्य,संस्कृति एवं देशज मेधा को वैश्विक आधुनिकता के साथ वाया ज्ञान एवं शिक्षा जोड़ने की महत्वपूर्ण परियोजना परिकल्पित की है,तो वहीं दूसरी ओर मातृभाषा,स्थानीय कौशल एवं लोक विवेक को भारतीय शिक्षा व्यवस्था एवं उससे जुड़े विमर्श की योजना है।

पूर्व से चली आ रही शिक्षा व्यवस्था की खूबियों को विकसित करते हुए भी इस शिक्षा नीति ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में अनेक नए तत्व जोड़े हैं। नवोन्मेष, रचनात्मकता,लचीलापन,गतिशीलता एवं अपने समाज एवं वैश्विक जगत से संवाद को इसने कोर्स,करिकुलम एवं तकनीकी ढांचे में मूल आत्मा के रूप में प्रस्तावित किया है। भारतीय शिक्षा में शोध के महत्व को इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने महत्वपूर्ण ढंग से प्रतिपादित करते हुए इसके लिए कार्य योजना एवं संस्थागत ढांचा भी सुझाया है।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में समाज के सीमांत में बसे अनेक सामाजिक समूहों यथा दलित, वंचित जनजातीय,दिव्यांग,ट्रांसजेंडर, महिलाएं सबका समुचित समावेश शिक्षा के माध्यम से करने की कार्ययोजना प्रस्तावित की है। भारत में विकास एवं शिक्षा को जोड़ने की एक महत्वपूर्ण पहल इस शिक्षा नीति में परिकल्पित की गई है। इससे युवाओं से भरे एक ऐसे भारत को निर्मित करने की शैक्षिक योजना हमें प्रदान की है, जो आत्मनिर्भर एवं आत्मविश्वास से पूर्ण देश बनते हुए एक वैश्विक ज्ञान शक्ति बन सके।

अपने देश की आत्मशक्ति को पहचानते हुए इसे विकसित करने की नई शिक्षा नीति एक ऐसी पहल,जो हमारी मानसिकता को विनिवेशिकृत कर एक लक्ष्य के रूप में निर्मित किया है। इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने वैश्विक स्तर पर भारत को ज्ञान एवं शिक्षा के केंद्र के रूप में विकसित करने की अनेक योजनाएं भी हमें दी है। वैश्विक स्तर पर विशेषज्ञों एवं छात्रों के आदान-प्रदान को इस शिक्षा व्यवस्था में विशेष महत्व दिया गया है।

जहां तक उच्च शिक्षा जगत का संदर्भ है, वहां शिक्षा मंत्रालय एवं यूजीसी के निर्देशन में विश्वविद्यालयों एवं अनेक शिक्षण संस्थाओं में अनेक कमेटियां बनाकर इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने का काम भी प्रारंभ कर दिया है। राज्य सरकारें इसके बेहतर कार्यान्वयन के लिए प्रयास कर ही रही हैं। अगर इस वर्ष में इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को लागू करने की प्रगति का मूल्यांकन किया जाए,तो साफ लगता है कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था में रूपांतरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है।

यह रूपांतरण मात्र ढांचे का ही नहीं है, बल्कि मूल्यों का भी है। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति ‘वैश्विक भारतीय शिक्षा’ के निर्माण के लिए स्थितियां निर्मित करने का हमें आधार देती है। भारतीय शिक्षा को ‘वैश्विक भारतीय शिक्षा’ के स्तर पर पहुंचाने के लिए जरूरी है कि शिक्षकों का एक ऐसा वर्कफोर्स तैयार हो,जो इस मिशन को आगे बढ़ा सके। ऐसा करने के लिए जरूरी है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की जरूरतों के मुताबिक नए शिक्षकों की नियुक्ति तो हो ही, साथ ही भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सक्रिय शिक्षकों को इसके लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित करने हेतु अनेक ट्रेनिंग प्रोग्राम एवं ‘शार्ट टर्म कोर्सेज’ चलाए जाएं।

 

छात्रों को इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की आत्मा एवं अंतर्वस्तु से परिचित कराने के लिए ‘लोकप्रिय’ एवं सरल भाषा में ओरिएंटेशन प्रोग्राम भी चलाया जाना चाहिए। देश को सक्षम, दक्ष, ज्ञानी, आत्मविश्वासी बनाने एवं भारतीय मानस को औपनिवेशिकता से मुक्त करने हेतु नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 हमें एक नई तरह की शिक्षा शक्ति विकसित करने का एक इकोसिस्टम प्रस्तावित करती है, जिसका रचनात्मक क्रियान्वयन ही हमें भविष्य में नए भारत के निर्माण के लिए आधारभूत शक्ति दे पाएगा।

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