ऋषिकेश और डोईवाला से लगभग बराबर की दूरी पर बड़कोट ग्राम पंचायत। भीम पत्थर देहरादून जिला के गांव फलसुवा गांव की आबादी से करीब एक किमी. आगे है। हमें जानकारी मिली थी कि फलसुवा गांव में मां सुरकंडा देवी का मंदिर है, जो ऊंचाई पर होने की वजह से दूर से दिखता है।
जब आप देहरादून से ऋषिकेश की ओर जाते हैं, तब रानीपोखरी से आगे दाएं हाथ पर श्री शनि मंदिर दिखाई देता है। मुख्य मार्ग पर ही कुछ और आगे चलकर बाईं ओर जाने वाली सड़क बड़कोट की है।
यहां से आगे बढ़िए और स्थानीय निवासियों से रास्ता पूछकर आप फलसुवा गांव पहुंच सकते हैं। प्रकृति के अनुपम नजारों के साथ बहुत सुन्दर गांव हैं पुन्नीवाला, फलसुवा। आपको दूर से ही ऊंचाई पर स्थित मां सुरकंडा देवी का मंदिर दिखता है।
मां सुरकंडा देवी के मंदिर से कुछ पहले ही कुछ घरों के पास टी प्वाइंट पर दाईं ओर जाने वाले कच्चे रास्ते पर मुड़ जाइए। यह रास्ता भीम पत्थर की ओर जाता है। थोड़ा चढ़ाई चढ़ते हुए आगे बढ़िए। अपनी दाईं ओऱ देखते रहिए विशाल पत्थर दिखाई देगा।
मैं देखते रहने के लिए इसलिए कह रहा हूं कि यह पत्थर झाड़ियों से घिरा है और जब आप बाइक या कार पर होंगे यह दिखाई नहीं देगा। हालांकि इस कच्चे रास्ते पर कार बहुत ज्यादा दूर तक नहीं जा सकती। आगे रास्ता खराब है। इसलिए कार को तो आप टी प्वाइंट के पास ही पार्क कर दीजिएगा।
हमें हाल ही में भीम पत्थर के बारे में पता चला था। चांद पत्थर पर हमारी स्टोरी को काफी पसंद किया गया। कमेन्ट बॉक्स में हमसे कहा गया कि भीम पत्थर को भी देखकर आओ।
हमने पता लगाया कि भीम पत्थर बड़कोट में है। बड़कोट में पता चला कि भीम पत्थर बहुत बड़ी चट्टान है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसको पांडव योद्धा भीम ने अपनी गुलेल से फेंका था, जो यहां आकर टिक गया। इस तरह की बात सुनकर पत्थर को देखने की हमारी उत्सुकता और बढ़ गई थी।
भीम पत्थर के बारे में सुनते ही हमने अनुमान लगा लिया था कि यह विशाल आकार की कोई चट्टान होगी।
भीम पत्थर जैसा कोई विशाल पत्थर हमें आसपास दिखाई नहीं दिया। भीम पत्थर की बनावट बहुत आकर्षित करती है। यह शोध का विषय हो सकता है।
बड़ी झाड़ियों से घिरी इस चट्टान को केवल सामने से ही देख पाए। इसके पीछे खाई बताई जाती है, इसलिए उस ओर जाने का जोखिम नहीं लिया जाना चाहिए।
फलसुवा गांव में करीब 50 साल से रह रहे 95 वर्षीय श्री सोहनलाल तिवाड़ी जी, ने बताया कि भीम ने अपनी गुलेल से इस पत्थर को यहां फेंका था। यह कहानी वो सुनते आ रहे हैं।
इसके जैसा कोई पत्थर आसपास नहीं है।
फलसुवा गांव की लक्ष्मी देवी जी ने भी भीम पत्थर के बारे में यही जानकारी दी। उन्होंने यह कहानी बुजुर्गों से सुनी है। बताया कि अंग्रेजों ने इस पत्थर पर भी गोलियां चलाईं थीं।
पत्थर पर निशान देखे जा सकते हैं।
बुजुर्ग मगनी देवी जी ने बताया कि यह भीमसेन की गुलरगारी है, ऐसा सुना है। हमारे यह बताने पर कि लोग कहते हैं कि भीम ने गुलेल से इस पत्थर को फेंका है, पर उनका कहना है कि क्या पता ऐसा ही होगा। उन्होंने बताया कि पत्थर पर बहुत निशान लगे हैं।
उन्होंने हमसे पूछा कि क्या वहां देखने गए थे। बताया कि इस पत्थर को देखने बहुत लोग आते हैं।