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उत्तराखंड में फटी जींस पर महाभारत …

जो व्यवस्थाएं हमारी संस्कृति में निहित हैं, हमें उसका पालन तो करना ही होगा

डा. राजेश्वर उनियाल

कल हमारे उत्तराखंड के माननीय मुख्यमंत्री श्री तीरथ सिंह रावत जी ने एक संदर्भ का उल्लेख करते हुए बताया कि एक बार उन्होंने एक हवाई यात्रा में अपनी एक सहयात्री को घुटनों तक फटी जींस में पहने हुए देखा ..
अब अगर मुख्यमंत्री जी ने केवल उस भद्र महिला की फटी जींस पर ही कोई टिप्पणी की होती, तो शायद कोई चर्चा भी नहीं होती, लेकिन ये भाजपा वाले जब भी संस्कार, संस्कृति, राष्ट्र या हिंदुत्व की बात करते हैं, तो आपातकाल में संविधान में सेकुलर शब्द जोड़ने वाले कांग्रेसी या जेएनयू में आजादी का नारा लगाने वाले मार्क्सवादियों का तो मानो कड़ाई में उबाल आ गया हो । दरअसल इनकी समस्या संस्कार या संस्कृति आदि शब्दों से नहीं है, बल्कि इनको डर इस बात का है कि कहीं ऐसा ना हो कि भारतीय जनता पार्टी के प्रति जनता की सहानुभूति ऐसे ही बढ़ती रहे और एक दिन भारत हिंदू राष्ट्र घोषित हो जाए । इनकी असली समस्या यही है ।
बंधुओ, हम अगर इस सारे प्रकरण को ढंग से देखें तो बताइए कि माननीय मुख्यमंत्री जी ने किसी महिला के परिधान पर कोई भी प्रश्न कहां उठाया है ? उन्होंने यह कहा कि यह भद्र महिला क्योंकि एनजीओ चलाती है, इसलिए इस प्रकार के परिधान में वह क्या संस्कार देती होगी । अब भारत में कल अगर विद्यालय में अध्यापिकाएं या अस्पतालों में नर्सें और सेना में महिला अधिकारी आदि इसी प्रकार का परिधान धारण करने लगे, तो क्या आप आपत्ति नहीं उठाएंगे । सबसे पहले तो हमारी आधुनिकाएं ही विद्यालयों में जाकर टीचरों के खिलाफ शिकायत करेंगी कि इनसे हमारे बच्चे क्या सीखेंगे । बस मुख्यमंत्री जी ने यही भूमिका तो निभाई है । भारत का संविधान लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी देता है, अब कोई क्या पहनते हैं कैसा जीते हैं, यह आपका मौलिक अधिकार है । लेकिन जो व्यवस्थाएं हमारी संस्कृति में निहित हैं, हमें उसका पालन तो करना ही होगा ।
उदाहरण के लिए मंच पर भारत नाट्यम या किसी लोकनृत्य को प्रस्तुत करने वाली आधुनिका नायिका भी उस समय वही परिधान धारण करती है, जो उस पात्र हेतु अनुकूल हैं । बाकी नारी परिधान या श्रंगार का विस्तृत विवरण हमारे शास्त्रों व प्राचीन साहित्यों में भी उपलब्ध हैं। महाकवि कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तलम में शकुंतला का नख शिख तक का पूर्ण विवरण मिल जाता है । हां जो लोग इस मामले को केवल राजनीतिक तुष्टीकरण के लिए देखते हुए इसे महिला सम्मान के साथ जोड़ कर दिखा रहे हैं, तो मैं उनसे जानना चाहता हूं कि वे पांच वर्ष पूर्व जब एक महिला तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत जी के चरणों में बैठकर गिड़गिड़ाकर रो रही थी और माननीय मुख्यमंत्री जी कुर्सी पर बैठे हुए खिलखिलाकर हंस रहे थे, तो जिन महानुभावों ने उस समय महिला सम्मान पर कोई टिप्पणी नहीं की हो, वह कम से कम आज महिला सम्मान की बात ना करें तो अच्छा रहेगा ।
हमें प्रसन्नता होनी चाहिए हमारे वर्तमान मुख्यमंत्री आदरणीय श्री तीरथ सिंह रावत जी एक सरल हृदय के व्यक्ति हैं। वह किसी लाग लपेट या राजनीतिक समीकरणों को देखे बिना अपनी बात स्पष्ट रूप से कह देते हैं, तो क्या हमें उनकी भावनाओं का सम्मान नहीं करना चाहिए । इतना ही नहीं हमारे माननीय मुख्यमंत्री श्री तीरथ सिंह रावत जी ने उस भद्र महिला को संबोधित करते हुए कहा कि मेरी बगल में बैठी हुई बहन जी । अब एक अपरिचित भद्र महिला को बहन जी कहकर संबोधित करने वाले मनीषी को महिला सम्मान का पाठ सिखाने से पहले, हमें अपने गिरेबान में अवश्य झांकना होगा, कि क्या हम भी किसी भी अपरिचित महिला को मुख्यमंत्री जी की तरह बहन स्वरूपा सम्मान देते हैं ।

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