पहाड़ी क्षेत्र में विकास के साथ हिमखण्डों का अध्ययन भी हो जरुरी
उत्तराखंड में विकास योजनाएं बनाते समय हिमखंडों के अध्ययन भी हों प्राथमिकता के आधार पर
ताकि पर्वतीय जीवनशैली एवं पारिस्थितिकीय तंत्र पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े
कमल किशोर डुकलान
उत्तराखंड के चमोली जिले में हिमखंड टूटने से जो तबाही हुई,उसने सात साल पहले केदारनाथ में आई उस भीषण आपदा की यादें ताजा कर दी,जिसने बड़े पैमाने पर विनाश किया था। फिलहाल यह कहना कठिन है कि हिमखंड टूटने से पहाड़ी नदियों में जो विकराल बाढ़ आई,उससे जान-माल का कहां-कितना नुकसान हुआ,लेकिन ऋषिगंगा नदी पर निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजना और तपोवन परियोजना को जिस तरह क्षति पहुंची,उससे अच्छा-खासा नुकसान होने की आशंका है।
इस आशंका के बीच राहत की बात यह है कि तबाही में फंसे कई लोग राहत एवं बचाव दल द्वारा बचा लिए गए और लापता लोगों की तलाश जारी है। यह दुखद है कि इस आपदा की चपेट में आए सभी लोग भाग्यशाली नहीं निकले,लेकिन यह संतोषजनक है कि राज्य सरकार द्वारा बचाव और राहत का काम युद्धस्तर पर जारी है। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि इस बार राहत और बचाव का अभियान तत्काल शुरू करने में सफलता मिली।
इस अभियान में विभिन्न बल जिस तरह आनन-फानन में बचाव कार्य में जुटे,वह उल्लेखनीय है। यह इस बात को भी रेखांकित करता है कि समय के साथ वह तंत्र सुगठित हुआ है, जो अचानक आई किसी आपदा के वक्त राहत-बचाव का काम करने के लिए मुस्तैद होना चाहिए। व्यापक असर वाली इस आपदा से हुई क्षति को लेकर लगाए जा रहे अनुमान के बीच यही उम्मीद की जाती है कि अधिक से अधिक लोगों को सुरक्षा एवं बचाव तंत्र द्वारा बचा लिया जाएगा।
उत्तराखंड के एक और आपदा से दो-चार होने के बाद इसकी भी उम्मीद की जाती है कि उन कारणों का गहनता से विश्लेषण किया जाए,जिनके चलते इस त्रासदी का सामना आपदाग्रस्त क्षेत्रों को करना पड़ा। चूंकि इस मौसम में हिमखंड टूटने की आशंका नहीं रहती इसलिए ऐसा होने के कारणों का पता लगाना और भी आवश्यक है, ताकि भविष्य के लिए जरूरी सबक सीखा जा सकें। उत्तराखंड में विकास योजनाओं और खासकर जल विद्युत परियोजनाओं,बांधों के निर्माण की जरूरत को लेकर पहले भी लगातार सवाल उठते रहे हैं।
पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा एवं दिवंगत श्रद्धेय अशोक सिंघल जी भी सांकेतिक धरना,प्रदर्शनों द्वारा अनेकों बारे अपना मंतव्य स्पष्ट कर चुके हैं। कम से कम अब तो इन सवालों के जवाब खोजा ही जाना चाहिए। इसके साथ ही हिमखंडों के अध्ययन का काम भी उच्च स्तर पर प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए। इस क्रम में इस पर गौर अवश्य किया जाए कि इस हिमालयी क्षेत्र के हिमखंड कहीं जलवायु परिवर्तन का शिकार तो नहीं हो रहे हैं?
ध्यान रहे कि विभिन्न अध्ययनों में इसकी आशंका पूर्व में भी जताई जा चुकी है कि जलवायु परिवर्तन का तेज चक्र हिमालयी हिमखंडों के लिए खतरा बन सकता है। वस्तुस्थिति क्या है, इसका आकलन अब अनिवार्य हो गया है। नि:संदेह इसी के साथ यह भी देखा जाना चाहिए कि पर्वतीय क्षेत्रों में विकास इस तरह से हो कि पर्वतीय जीवनशैली एवं पारिस्थितिकी तंत्र पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न डाले।