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G-20 सरकारों ने की वादा खिलाफ़ी, बदस्तूर जारी है जीवाश्म ईंधन का वित्तपोषण

एक ताजा अध्ययन के मुताबिक G-20 में शामिल सरकारें अब भी हर साल तेल, गैस और कोयले पर आधे ट्रिलियन से ज्यादा धन कर रहीं हैं खर्च
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
आखिर क्या है जीवाश्म ईंधन ?
प्राकृतिक गैस ,कोयला ,पेट्रोलियम, जीवाश्म ईंधन है। पृथ्वी के अंदर करोड़ो वर्षों तक मृत पेड़ पौधों और जानवरो का मिटटी , बालू एवं चट्टान की के बीच दबे रहने के फलसरूप जो पदार्थ बनते है उन्हें जीवाश्म कहते है और इनसे मिलने वाले ईधन को जीवाश्म ईंधन कहते है। रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक द्वारा जीवाश्म की आयु का आकलन किया जाता है।जीवाश्म को अंग्रेजी में फ़ॉसिल कहते हैं। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द “फ़ॉसिलस” से है, जिसका अर्थ “खोदकर प्राप्त की गई वस्तु” होता है। जीवाश्म ईधन ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत हैं जो कि सीमित हैं। इसके ज्वलन से कार्बन, नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइड्स उत्पन्न होते हैं जो स्वस्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।और ये हमारे पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव डालते है।
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी), ओवरसीज़ डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (ओडीआई) और ऑयल चेंज इंटरनेशनल (ओसीआई) द्वारा आज जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक जीवाश्म ईंधन पर दी जा रही गैरवाजिब सब्सिडी को खत्म करने की बार-बार प्रतिज्ञा लेने के बावजूद जी-20 में शामिल देशों की सरकारें वर्ष 2014-2016 से इस सब्सिडी में सिर्फ 9% की कटौती ही कर पाई हैं। पिछले तीन वर्षों के दौरान इस सब्सिडी के तौर पर सालाना 584 अरब डॉलर खर्च हो रहे हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक जीवाश्म ईंधन को सब्सिडी देने में आई गिरावट के इस साल गायब हो जाने की आशंका है, क्योंकि दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए जीवाश्म ईंधन पर अरबों डॉलर खर्च किए जाने का संकल्प जाहिर किया गया है।
जहां तक भारत का सवाल है तो यहां जीवाश्म ईंधन पर अब भी भारी मात्रा में धन खर्च किया जा रहा है। ऐसा उपभोक्ताओं को मूल्य समर्थन और राज्य स्वामित्व प्रतिष्ठानों (एसओई) में निवेशों खासकर तेल और गैस के उत्पादन में निवेश के जरिए किया जा रहा है।
खतरे की घंटी : भारत में उपभोक्ताओं को मूल्य समर्थन और मुख्य रूप से तेल तथा गैस के उत्पादन में होने वाले ऐसे ही निवेशकों के जरिए जीवाश्म ईंधन को भारी समर्थन देने का सिलसिला जारी है। इसके अलावा देश में घरेलू स्तर पर कोयले के उत्पादन पर भी नए सिरे से ज़ोर दिया जा रहा है।
प्रगति :भारत ने अपने सार्वजनिक वित्त में 146% का इजाफा किया है, जो ज्यादातर जीवाश्म ईंधन से बनने वाली बिजली को समर्पित है। इसके अलावा एसओई निवेश में भी 38% की वृद्धि हुई है और यह भी ज्यादातर तेल तथा गैस के उत्पादन में हुई है। हालांकि भारत पेट्रोल, डीजल और केरोसिन पर उपभोक्ताओं को मिलने वाली सब्सिडी में कटौती करने में सफल रहा है (गर्ग एट एल. 2020)। जीवाश्म ईंधन के उपभोग में सरकार के सहयोग में 2014-2016 के औसत के मुकाबले 3% की गिरावट आई है। कोयले के उत्पादन पर लगने वाले कर में वर्ष 2010 से 2016 तक तीन गुना बढ़ोत्तरी की गई है और अब यह 400 रूपये प्रति टन है।
‘डबलिंग बैक एंड डबलिंग डाउन जी-20 स्कोर कार्ड ऑन फॉसिल फ्यूल फंडिंग’ विषयक इस रिपोर्ट की प्रमुख लेखक और आईआईएसडी से जुड़ी अन्ना गेडेस ने कहा “जी-20 देशों की सरकारें कोविड-19 महामारी के पहले से ही पेरिस समझौते में व्यक्त संकल्पों को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन को दिए जाने वाले समर्थन को समाप्त करने की राह पर नहीं थे। अब निराशाजनक रूप से वे विपरीत दिशा में बढ़ रहे हैं। जी-20 देशों द्वारा जीवाश्म ईंधन पर होने वाले खर्च की रफ्तार लगातार बनी रहने या फिर पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले 2020 में इसमें एक बार फिर बढ़ोत्तरी होने की भी संभावना है।”





