शासनस्तर पर इनका परीक्षण किया जा रहा है और यदि जरूरत हुई तो इन प्रकरणों की जांच भी की जाएगी : प्रमुख सचिव वन आनंद वर्धन
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक (Hoff) रहे जयराज के एक नहीं बल्कि दो-दो विवादित आदेशों पर शासन के उनके सेवानिवृत हो जाने के बाद कान खड़े हो हो गए हैं हालांकि शासन इन्हें विवादित बताकर निरस्त तो कर चुका लेकिन अधिकारियों का मानना है यह मामला आसानी से नहीं सुलझने वाला। इसके पीछे अधिकारियों का कहना है यह निर्णय सीधे तौर पर प्रमुख वन संरक्षक के रूप में मिले अधिकारों के दुरुपयोग का है। उंनका कहना है ऐसे में इन दोनेां मामलों की जांच का मामला तो बनता है। वहीं इन दो मामलों के विवादित हो जाने पर प्रमुख सचिव वन आनंद वर्द्धन का कहना है कि हालांकि अभी फौरी तौर तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक द्वारा किए गए दोनों आदेश निरस्त तो कर दिए गए हैं और इन मामलों पर जांच शुरु भी नहीं हुई है, लेकिन इनका शासनस्तर पर इनका परीक्षण किया जा रहा है और यदि जरूरत हुई तो इन प्रकरणों की जांच भी की जाएगी।
वहीं दूसरी तरफ पूर्व प्रमुख वन संरक्षक जयराज की ओर से सितंबर और अक्तूबर में अवैधानिक रूप से किए गए बंपर ट्रांसफर के निरस्त करने से वन विभाग में असमंजस पैदा हो गया है। पूर्व प्रमुख वन संरक्षक द्वारा सितम्बर में किए गए आदेश के तहत जो ट्रांसफर किए गए थे उन्होंने नई तैनाती के स्थान पर ज्वाइन करने के साथ ही वहां से एक माह का वेतन भी ले लिया है वहीं अब नए आदेश के तहत उन्हें अपनी पुरानी जगह वापस लौटना है, ऐसे में उन्होंने जो वेतन नई तैनाती स्थान से लिया हैअब वह कैसे एडजस्ट किया जायेगा विभाग की यही परेशानी पढ़ गई है वहीं नए और पुराने तैनाती कार्यालय से वेतन बजट को लेकर भी विवाद खड़ा होना लाजमी है। इसी परेशानी का हल खोजने में विभागीय अधिकारी और कर्मचारी बीते दिन से माथापच्ची करने में जुटे हुए हैं।
ज्ञात हो कि बीते दिन ही प्रमुख सचिव वन आनंदवर्धन ने तत्कालीन पीसीसीएफ जयराज ने 30 अक्तूबर को प्रदेश में वन पंचायतों के लिए 11 नोडल डिवीजन बनाने के आदेश निरस्त कर दिए थे।
मिली जानकारी के मुताबिक प्रमुख वन संरक्षक ने शासन की अनुमति के बिना ही वन पंचायतों को एक से दूसरे डिवीजन के अधिकार क्षेत्र में कर दिया था। जो कि सारे ही पीसीसीएफ वन पंचायत के अधीन किए गए थे। तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने वन पंचायतों के नियंत्रक डीएफओ और वन प्रभागों की प्रशासनिक सीमाओं में तक में परिवर्तन कर दिया था। जो कि शासन की अनुमति के बिना नहीं हो सकता था।
हालांकि पूर्व प्रमुख वन संरक्षक से पूर्व के अधिकारियों ने वन मुख्यालय से वर्ष 2009 में वन पंचायतों की सीमाओं के पुननिर्धारण और उनके नियंत्रक डीएफओ को पीसीसीएफ वन पंचायत के अधीन करने का प्रस्ताव शासन को भेजा था। लेकिन तब शासन ने इसे निरस्त कर दिया था। जिसे जयराज ने बिना शासन की स्वीकृति के खुद ही सेवा निवृति से पहले जाते-जाते कर डाला था।