वीडियो वायरल होने के बाद एसएसपी ऑफिस और आवास पर मीडिया के फ़ोन प्रवेश पर लगा प्रतिबंध
एसएसपी का स्टिंग करके वीडियो हुआ वायरल
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : स्टिंग बाजी, फेक न्यूज़, दस्तावेजों की टेम्परिंग सहित राज्य सरकार की छवि को भूमिल किये जाने के आरोप में नामज़द और एक के जेल भेजे जाने के विरोध में उस कथित पत्रकार की पैरवी करने गए चुनिन्दा पत्रकारों के एक प्रतिनिधिमंडल ने डीआईजी अरुण मोहन जोशी का ही स्टिंग कर डाला। मीडिया के लोगो द्वारा इस तरह के कृत्य के चलते रोजाना एसएसपी ऑफिस में समाचारों के संकलन और उनपर पुलिस का पक्ष जानने पहुंचे वाले सभी पत्रकारों के मोबाइल के साथ प्रवेश पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। इतना ही नहीं ऐसे कथित पत्रकारों की काली करतूत के चलते अब एसएसपी ऑफिस में आने वाले पत्रकारों के मोबाइल अब कार्यालय में प्रवेश नहीं कर पाएंगे इसके अलावा खुफिया विभाग के लोगों को जिम्मेदारी देकर आने वालों पर नजरें तेज हो गई हैं। इस तरह से डीआईजी के स्टिंग किए जाने से साफ़ हो गया है कि प्रतिनिधिमंडल में डीआईजी से मिलने गई कथित पत्रकारों की मंशा साफ नहीं थी और वे किसी और अजेंडे के तहत डीआईजी को मिलने गए थे अन्यथा इस तरह से स्टिंग करने का कोई औचत्य समझ से परे है। 10 मिनट 52 सेकंड के इस वायरल वीडियो में DIG अरुण मोहन जोशी ने कथित पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल से जो भी बात की वह साफ़ सुनाई दे रही हैं जो संवैधानिक, कानून के दायरे में और नीतिगत है।
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गौरतलब हो कि देहरादून में उत्तराखंड सरकार के खिलाफ एक तरफ़ा खबरों का माया जाल बुने जाने के आरोप में एवं राज्य सरकार की छवि को धूमिल किए जाने के आरोप में देहरादून पुलिस ने एक कथित पत्रकार राजेश शर्मा की कुछ दिनों पूर्व गिरफ्तारी की थी। देहरादून में गिरफ्तारी के बाद जिले के पुलिस कप्तान कार्यालय में कुछ मीडिया के लोगों ने जनपद के डीआईजी अरुण मोहन जोशी से इस मामले में मुलाकात की और उसके कुछ देर बाद ही उनके साथ वहां क्या वार्तालाप हुआ उसका फर्जी तरीके से स्टिंग कर डाला और उसे सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। हालांकि इस वीडियो में ऐसा कुछ भी नहीं था लेकिन उसे सोशल मीडिया पर जिस तरीके से वायरल किया गया वह पत्रकारिता के मानदंडों के एकदम विरुद्ध था । पुलिस के अधिकारियों का कहना है कि अगर प्रतिनिधिमंडल में गए पत्रकारों को मामले में जिले के पुलिस कप्तान का पक्ष जानना इतना ही जरुरी था तो उनको बताकर उनका पक्ष लिया जा सकता था, जैसा कि अमूमन पत्रकार लेते ही रहते हैं लेकिन इस तरह के कृत्य को स्टिंग ही कहा जा सकता है जो अपराध की श्रेणी में आता है। लेकिन ऐसा ना करके चुपचाप जिले के पुलिस कप्तान का एक तरीके से स्टिंग करते हुए यह पूरा वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया गया। जिसके बाद जिले के पुलिस कप्तान ने अपने कार्यालय में आने वाले तमाम मीडिया कर्मियों को बिना फोन के प्रवेश करने का फरमान जारी कर दिया है।
कहावत है कि एक व्यक्ति के गलती की सजा पूरा कुनबा आखिर क्यों भुगते इसे लेकर मीडिया के तमाम लोगों में इस बात को लेकर गुस्सा भी है कि आखिर इस करतूत को उन लोगों ने क्यों अनजान दिया अगर वह ऐसा नहीं करते तो शायद ही एसएसपी कार्यालय में मीडिया कर्मियों के मोबाइल के साथ प्रवेश पर प्रतिबंध नहीं लगता। हालांकि इस मामले को लेकर जिले जिले के पुलिस अधिकारी विधिक राय लेने के बाद कानूनी कार्यवाही की तैयारी में जुट गए हैं। लेकिन सवाल वही खड़ा हुआ है कि आखिर मीडिया के कुछ लोगों ने इस हरकत को सोशल मीडिया पर अंजाम तो दे दिया लेकिन उसका अंजाम क्या होगा इसको लेकर उन्होंने नहीं सोचा पत्रकारिता के मापदंडों को जहां तार-तार कर दिया गया। वहीं पूरी मीडिया के लिए भी ऐसे लोग मुसीबत का कारण बन गए जिनकी वजह से दूसरे लोगों को भी शक की नजर से देखा जाने लगा है उत्तराखंड में ऐसा पहली बार नहीं हुआ इससे पहले भी उत्तराखंड में स्टिंग बाजो ने पूरी मीडिया के कुनबे को शक की निगाहों से देखने पर अफसरशाही से लेकर राज्य सरकारों को मजबूर किया है आखिर उनके इन कारनामों का अंजाम पूरा मीडिया कुनबा क्यों भुगते इसे लेकर मीडिया जगत में रोष व्याप्त है।
माना जा रहा है जिन लोगों ने जिले के पुलिस कप्तान कार्यालय का वह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया है। उसे लेकर विधिक राय के बाद कानूनी कार्रवाई करने की तैयारी की जा रही है और ऐसा होना लाजमी भी है जिले के पुलिस कप्तान को इस मामले में कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कार्रवाई ऐसे लोगों पर करनी चाहिए। जिन लोगों ने सोशल मीडिया पर उनकी परमिशन के बिना इस वीडियो को वायरल करने की हिमाकत की है। यानि डीआईजी का स्टिंग किया है ।