UTTARAKHAND
20 साल बाद गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के समझने होंगे मायने
गैरसैंण को जानना है तो लम्बे समय तक चले राज्य आंदोलन और इसकी भावनाओं को समझना होगा
उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की लड़ाई लगभग पांच दशक से अधिक समय से लड़ी जाती रही
वीर चंद्र सिंह गढवाली की तपोभूमि और जन भावनाओं से जुड़ा यह क्षेत्र उत्तराखण्ड वासियों के लिये केवल एक स्थान नहीं बल्कि एक विचार भी है
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दर्शन सिंह रावत
देहरादून : अधिसूचना जारी कर भराड़ीसैण (गैरसैंण) को ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया गया। क्या इसे केवल एक घटना मात्र के तौर पर लिया जाना चाहिए। राज्य बनने के 20 साल बाद गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के क्या मायने हैं। सबसे पहले जानना होगा कि गैरसैंण क्या है और अगर गैरसैंण को जानना है तो लम्बे समय तक चले राज्य आंदोलन और इसकी भावनाओं को समझना होगा।
उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की लड़ाई लगभग पांच दशक से अधिक समय से लड़ी जाती रही है। तब पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की परिकल्पना की गई थी। पर्वतीय क्षेत्रों का विकास की उम्मीद को केन्द्र में रखकर ही उत्तराखण्ड के निर्माण की लड़ाई लड़ी गई थी। राज्य निर्माण आन्दोलन के शुरूआती दौर से ही गैरसैंण को राजधानी बनाये जाने की संकल्पना हर आंदोलनकारी के मन में रही। वीर चंद्र सिंह गढवाली की तपोभूमि और जन भावनाओं से जुड़ा यह क्षेत्र उत्तराखण्ड वासियों के लिये केवल एक स्थान नहीं बल्कि एक विचार भी है। यह गढ़वाल और कुमाऊ की सांस्कृतिक परम्पराओं के समन्वय स्थल है। गैरसैण, उत्तराखण्ड की अस्मिता से जुड़ा विषय भी रहा है। गैरसैण शब्द का उच्चारण करते ही राज्य आंदोलन की तमाम घटनाओं के दृश्य हर उत्तराखण्डी के मन-मस्तिष्क में चलने लगते हैं।
मैंने अपने पत्रकारिता के करीब 30 साल के कैरियर में उत्तराखंड आंदोलन को न केवल करीब से देखा। बल्कि आंदोलन को चरम तक पहुंचाने और उसकी धार को तेज करने के लिए पत्रकारिता के जरिए जितना योगदान दे सकता था, दिया। आंदोलन के दौरान पुलिस और पीएसी की लाठियां भी खाई। कर्फ्यू के दौरान न केवल पत्रकारिता के जरिए आंदोलन को घर- घर तक पहुंचाया बल्कि उसे एक मुकाम तक पहुंचाने में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग भी दिया। इन बातों को कहने के पीछे मेरा ध्येय केवल आपको यह बताना है कि है कि गैरसैंण हरेक राज्य आंदोलनकारियों की आत्मा में बसता है।
गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाना केवल एक घोषणा मात्र ही नहीं बल्कि जनभावनाओ का सर्वोच्च सम्मान है। जिस विजन के साथ उत्तराखण्ड का निर्माण किया गया, उस विजन को आगे बढ़ाना है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाना जनभावनाओं को आदर देना है। इसमें कोई अहंकार नहीं और न ही श्रेय लेने की इच्छा, यह केवल और केवल जनादेश को सर झुकाकर स्वीकार करना है। आंदोलन से उपजे इस उत्तराखंड के लिए मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हृदय के भावों को एक साथ पिरोकर दायित्व के फलक पर ऐसा इंद्रधनुष खींचा, जो अंसभव सा लगता था।
उत्तराखंड राज्य को बने हुए 20 साल हो गए हैं। इतने सालों में हर बार हर सरकार के सामने गैरसैंण को राजधानी बनाने का मुद्दा सड़क से लेकर विधानसभा तक गूंजता रहा। पर इन 20 सालों में किसी भी मुख्यमंत्री ने गैरसैंण को राजधानी, चाहे वह ग्रीष्मकालीन ही क्यों न हो, की घोषणा करने का साहस नहीं दिखाया। 18 मार्च, 2017 को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड के 9 वें मुख्यमंत्री की शपथ ली। भाजपा ने चुनाव के समय ही अपने विजन डाक्यूमेंट में जनता से वादा किया था कि यदि उसकी सरकार बनती है तो गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने पर सरकार विचार करेगी। इस सरकार के तीन साल के कार्यकाल में उसके सामने भी बार-बार गैरसैंण को राजधानी बनाने का सवाल उठता रहा। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने इस घोषणा को पूरा करने की बड़ी चुनौती भी थी।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद भी राज्य आंदोलनकारी रहे। उनका भी राज्य आंदोलन में उतना ही योगदान है जितना आज हर कोई दावा करता है, बल्कि मैं कहता हूं , उनका योगदान उससे भी ज्यादा है। भाजपा ने तो उत्तरांचल को पहले ही अलग प्रदेश मानकर संगठन के तौर पर भी एक अलग इकाई का गठन किया था। इस इकाई के जरिए और तत्कालीन भाजपा संगठन महामंत्री के नाते मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी राज्य आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने में अपना अहम योगदान दिया।
यही कारण है कि राज्य आंदोलनकारियों की भावना को साकार करने में उन्होंने देरी नहीं की। आज की राजनीतिक परिस्थितियों में किसी भी मुख्यमंत्री के लिए यह घोषणा करना आसान नहीं था। तमाम राजनीतिक मुश्किलों के बीच मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आगे बढकर साहसिक फैसला लिया। जितना सहज और सरल आज लोगों को लग रहा है, वास्तव में किसी भी राजनीतिक दल के मुख्यमंत्री के लिए ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा करना उतना आसान नहीं था।
यह काम वही कर सकता था जिसे विकास से अछूते रह गए पहाड़ों की पीड़ा का अहसास हो। 4 मार्च 2020 का दिन उत्तराखण्ड के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा जब मुख्यमंत्री ने भराड़ीसैंण के विधानसभा मंडप में बहुत ही भावुकता भरे लहजे में भराड़ीसैण-गैरसैण को उत्तराखण्ड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की। उस अवसर पर मुख्यमंत्री की सहज भावुकता उत्तराखंड के विकास के प्रति उनके समर्पण को भी दर्शाता है।
भराड़ीसैण-गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा का चहुंओर स्वागत किया गया। एक साथ होली और दिवाली मनाई गई। प्रकृति ने भी बर्फबारी के साथ इसका अपने ही अंदाज में स्वागत किया। चारों ओर बर्फ से आच्छादित भराड़ीसैण-गैरसैण की आकर्षक छवि देश-विदेश में छा गई। गैरसैण सबसे खूबसूरत राजधानी के रूप में अपनी पहचान बनाने जा रही है।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की दृढ़ इच्छा शक्ति और ईमानदार नेतृत्व का ही परिणाम है कि लगभग दो दशकों से लम्बित इस महत्वपूर्ण मसले पर एक बहुप्रतीक्षित निर्णय जनता के सामने आ पाया है। गैरसैंण को राज्य की ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाने से राज्य वासियों में पर्वतीय क्षेत्रों के समग्र विकास की नये सिरे से एक उम्मीद जगी है। मुख्यमंत्री के साहसिक निर्णय से आखिरकार राज्य की जनभावनाओं के केंद्र गैरसैंण को ग्रीष्म कालीन राजधानी का रुतबा हासिल हो पाया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साहसिक फैसले से राज्य आंदोलनकारियों की भावनाओं की राजधानी मूर्त रूप ले रही है। भविष्य में राज्य की सरकारों को भी इससे आगे ही कदम बढ़ाने होंगे। गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाकर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया है।
आज जो कुछ चुंनिदा लोगों को इस घोषणा में भी राजनीति दिखती है, मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या 1994 में राज्य आंदोलन के दौरान हुए गोलीकांड और तत्कालीन केंद्र और यूपी सरकार के उत्तराखंड के प्रति रवैये से राज्य का सपना पूरा होता दिख रहा था ? नहीं। क्या हमने सोचा था कि राज्य का सपना साकार होगा? शायद नही, लेकिन जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार आई, भाजपा ने राज्य के लिए दी गई आंदोलनकारियों की शहादत का सम्मान करते हुए राज्यवासियों का सपना पूरा किया और उत्तराखंड को अलग राज्य घोषित किया। राज्य की घोषणा इतनी जल्दी होगी, शायद इसका आभास किसी को नहीं था। ठीक इसी तरह से जब मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अचानक सदन में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की तो विपक्ष को सांप सूंघ गया। इसकी वजह भी थी कि उत्तराखंड की राजनीति का एक मुद्दा विपक्ष से छीन लिया।