UTTARAKHAND

सरकार! खोल दो लॉकडाउन, जब सड़कों पर भीड़ ही जुटानी है

क्या सरकार द्वारा घोषित समय में बाजार में भीड़ लगने से संक्रमण का खतरा नहीं रहेगा

शराब भी आवश्यक वस्तु के दायरे में है, यह बात समझ से परे है

आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाने की चिंता ने कोरोना के खिलाफ सरकार के चिंतन की हवा निकाल दी

इस बात की क्या गारंटी है कि सड़कों और दुकानों पर सोशल डिस्टेंसिंग का सौ फीसदी पालन हो रहा है

शराब की दुकानें खुलने से ठेकेदारों और सरकारी राजस्व का आर्थिक चिंतन तो फलीभूत होने लगा है

क्या जनता को कोरोना संक्रमण से बचाने की सरकार की प्रबल इच्छाशक्ति धीरे धीरे दुर्बल होती जा रही है

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

देहरादून। लॉकडाउन किस लिए घोषित है। शायद इसलिए कि लोग अपने घरों में रहें और सड़कों पर सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का उल्लंघन न हो। शुरुआत में सरकार ने इस राग का बार-बार अलाप किया कि लॉकडाउन का सख्ती से पालन कराया जाए। पर, लगता है कि कोरोना संक्रमण की आपात स्थिति में आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाने की चिंता इतनी ज्यादा बढ़ गई कि उसने कोरोना के खिलाफ सरकार के चिंतन की हवा निकाल दी।

कुल मिलाकर अब यह पूछने में कोई गुरेज नहीं है कि क्या जनता को कोरोना संक्रमण से बचाने की सरकार की प्रबल इच्छाशक्ति धीरे धीरे दुर्बल होती जा रही है। लॉकडाउन में जनता की सुरक्षा की चिंता लॉक हो गई और आर्थिक चुनौतियों से निपटने के सरकारी तौर तरीके बाहर आ गए।

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सरकारी स्तर पर हमेशा यही सुनने को मिलता रहा है कि आबकारी राज्य की आय का प्रमुख स्रोत है। सरकार ने कोरोना संक्रमण की आपात स्थिति में अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए राज्य में शराब की दुकानों को खोलने की परमिशन दे दी। सरकार की आर्थिक स्थिति कितनी सुधरेगी, यह तो बाद का विषय है, पर शराब ठेकेदारों के मजे आ गए। मालूम हो कि सरकार से शराब ठेकेदारों की पैरवी करने वालों में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भी शामिल हैं। भाजपा ने स्वयं विज्ञप्ति जारी करके इस बात की जानकारी दी थी। शराब की दुकानें खुलने से शराब के ठेकेदारों और सरकारी राजस्व का आर्थिक चिंतन तो फलीभूत होने लगा है।

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अब बात करते हैं, लॉकडाउन की, जिसके कोई मायने अब किसी भी शहर में नहीं दिखते। यह कैसा लॉकडाउन है, जिसमें बाजार खुल रहा है। आवश्यक वस्तुओं की दुकानों को सुबह सात से एक बजे तक खोलने की मजबूरी को समझा जा सकता है, पर शराब भी आवश्यक वस्तु के दायरे में है, यह समझ से परे है। दुकानों के सामने गोले बनाकर औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं।

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देहरादून में शराब की दुकानों के सामने भीड़, सड़कों पर गाड़ियों का रेला…यह सब क्या है, क्या इसी को लॉकडाउन कहते हैं। अगर विश्वास नहीं है तो देहरादून शहर का नजारा ले सकते हैं। हालांकि पुलिस अपनी तरफ से पूरी व्यवस्था कर रही है कि लॉकडाउन के नियमों का पालन कराए। सोशल डिस्टेंसिंग के नियम को बनाए रखने में पुलिस पूरे प्रयास कर रही है।

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अगर शहर में यही हाल कराना था। यही सब होना था, तो लॉकडाउन को पूरी तरह खोल क्यों नहीं दिया जाता। इस बात की क्या गारंटी है कि सड़कों और दुकानों पर सोशल डिस्टेंसिंग का सौ फीसदी पालन हो रहा है। क्या सरकार द्वारा घोषित समय में बाजार में भीड़ लगने से संक्रमण का खतरा नहीं रहेगा। क्या कुछ दिन और इंतजार नहीं किया जा सकता था।

एक तरफ यह कहा जा रहा है कि लॉकडाउन में घरों में रहने की वजह से बड़ी संख्या में लोगों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। इन लोगों की आर्थिक गतिविधियों को पुनः शुरू कराना सरकार के समझ चुनौती है। वहीं दूसरी तरफ इनमें से अधिकतर लोगों की जेबें शराब की दुकानों में हल्की कराने की व्यवस्था की जा रही है। यह कैसा दोहरापन है।

https://youtu.be/lC_sdJI7UDk

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