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रियल टाइम के चक्कर में कहीं अफवाहें तो नहीं परोस रही मीडिया
कोरोना संक्रमण की खबरों को सबसे पहले पब्लिश करने की होड़ में है मीडिया
रियल टाइम रिपोर्टिंग के चक्कर में बिना पुष्टि किए ही खबरों का प्रकाशन गैरजिम्मेदाराना
मृत्यु की वजह कोराना संक्रमण है, तो उन आधार को सामने लाकर फैक्ट प्रस्तुत किए जाने चाहिए
मीडिया ने आज तक नहीं बताया कि कितने कोरोना संक्रमित ठीक हुए
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : मीडिया में कोरोना संक्रमण की खबरों को सबसे पहले पब्लिश करने की होड़ मची है। हमें यह बात समझनी होगी कि कोई खबर पाठकों तक पहुंचाने से पहले उसकी पुष्टि और उससे पड़ने वाले प्रभावों को जानना अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कोरोना से संबंधित हर समाचार संवेदनशील है, क्योंकि अधिकतर लोग मीडिया के माध्यम से हालात को जानना चाहते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि किसी भी मुद्दे या विषय पर अधिकतर लोगों की राय, उनकी प्रतिक्रिया मीडिया से मिली सूचनाओं पर ही आधारित होती हैं।
अगर एक खबर प्रकाशित न हो तो किसी मीडिया संस्थान पर कोई असर नहीं पड़ता, लेकिन अगर कोई ऐसी खबर, जो पुष्ट न हो, जिससे नकारात्मक राय बनती हो और जो दहशत फैलाती हो, का प्रकाशन होगा, तो जनता को नुकसान पहुंचेगा। कुल मिलाकर पुष्टि न होने के बाद भी पब्लिश की गई कोई भी खबर को अफवाह ही कहा जाएगा, भले ही यह कितने भी बड़े मीडिया संस्थान से क्यों न पब्लिश की गई हो।
https://youtu.be/citzb578xUg
हम यह कोई नई बात नहीं कह रहे हैं, मीडिया से ताल्लुक रखने वाले लोग इस फैक्ट से वाकिफ हैं, लेकिन फिर भी अक्सर देखने में आ रहा है कि रियल टाइम रिपोर्टिंग के चक्कर में पुष्टि किए बिना ही खबरों का प्रकाशित किया जा रहा है। वास्तव में सोशल मीडिया पर बिना पुष्टि वाली तमाम खबरें, विचार और सलाहें प्रसारित हो रही हैं, जिनमें से अधिकतर पर विश्वास करने की कोई वजह इसलिए भी नहीं बनती, क्योंकि उनमें किसी विश्वस्त स्रोत का जिक्र नहीं मिलता है। किसी भी सूचना का स्रोत नहीं है तो उसको विश्वस्त नहीं माना जा सकता है। रिपोर्ट में स्रोत तो बताना ही होगा।
हम ऐसा महसूस करते हैं, कोरोना संक्रमण का कोई नया मामला मिलने की खबर का सोशल मीडिया पर जितनी तेजी से प्रसारण से होता है, उतनी तेजी यह तथ्य बताने में नहीं की जाती कि देश या राज्य में अभी तक कितने लोग कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद स्वस्थ होकर अपने घरों पर सुरक्षित हैं। हालांकि मीडिया ने कोरोना वारियर्स के सम्मान की खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित किया है, जो इन आपात स्थितियों में मीडिय़ा के प्रमुख योगदान में से एक है।
https://www.facebook.com/vinay.uniyal.7/posts/2943631119054065
कोरोना संक्रमण एक बीमारी है। कोरोना संक्रमित होने का मतलब यह कतई नहीं है कि किसी व्यक्ति ने कोई अपराध कर दिया है। एम्स ऋषिकेश का ही मामला लेते हैं, जहां एक स्टाफ कोरोना से संक्रमित हो जाता है। अस्पताल प्रशासन तुरंत सक्रिय हो जाता है और गाइडलाइन के अनुसार व्यवस्थाएं जुटा ली जाती हैं। आईपीडी स्टाफ मेंबर्स की स्क्रीनिंग तथा सैंपलिंग की गई।
इसके बाद किसी रोगी, तिमारदार तथा एक और स्टाफ में कोरोना पॉजिटिव पाने की रिपोर्ट मिलती है। खुद को सबसे आगे दिखाने की होड़ में मीडिया में इन खबरों को इस तरह प्रसारित किया जाता है कि कोरोना संक्रमण के लिए पूरी तरह एम्स जिम्मेदार है। क्या देश की स्वास्थ्य सेवाओं में अहम योगदान देने वाले एम्स जैसे संस्थान को बिना किसी ठोस जांच और पुष्टि के जिम्मेदार ठहराना सही है।
क्या यह उन अधिकतर रोगियों के विश्वास को ठेस पहुंचाने जैसा कदम नहीं था, जो सिर्फ और सिर्फ एम्स में मौजूद विशेषज्ञता पर भरोसा रखकर अपना इलाज करा रहे हैं। अगर कोई विश्वस्त और विशेषज्ञ एजेंसी, जिसे भारत सरकार ने जांच के लिए अधिकृत किया हो, की रिपोर्ट में संक्रमण के लिए एम्स जिम्मेदार पाया जाता, तो निश्चित तौर पर यह खबर सही होगी, नहीं तो बिना किसी ठोस आधार वाली खबरों को अफवाह के सिवाय कुछ और नाम नहीं दिया जा सकता।
https://youtu.be/oUPMNwjBHeQ
एम्स ने करीब एक माह पहले ही अस्पताल में कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए व्यवस्थाएं बना ली थीं। वहां आने वाले लोगों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी थीं। टेलीमेडिसिन सेवाएं शुरू करके मरीजों को घर बैठे ही स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की गईं। यह सब एक जिम्मेदार संस्थान होने के नाते किया गया।
एम्स में भर्ती 56 वर्षीय महिला रोगी की मृत्यु हो गई। महिला ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित थी। एम्स में हुई जांच में महिला कोरोना संक्रमित मिलीं। कुछ मीडिया ने महिला की मृत्यु की वजह कोरोना संक्रमण करार दे दिया। हमारा मानना है कि मृत्यु का कारण बताने की विशेषज्ञता केवल डॉक्टर्स के पास है, न कि किसी मीडिया पर्सन के पास। मीडिया पर्सन का कार्य पुष्ट स्रोत से मिली सूचनाओं को जनता तक पहुंचाना है। अगर उसके पास इस बात के ठोस आधार हैं कि मृत्यु की वजह कोराना संक्रमण है, तो उन आधार को सामने लाकर फैक्ट प्रस्तुत किए जाने चाहिएं, लेकिन यह ध्यान रखा जाए कि यह आधार सभी गाइडलाइन पर दुरुस्त बैठते हों। हम उन मीडिया कर्मियों की प्रशंसा करते हैं जो सूचनाओं को विश्वस्त स्रोत से लेकर जनता तक पहुंचा रहे हैं।
महिला की मृत्यु की वजह कोरोना नहीं ब्रेन ब्लीडिंग :AIIMS
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती हल्द्वानी, नैनीताल निवासी 56 वर्षीय महिला की शुक्रवार तड़के ब्रेन हैमरेज के कारण मौत हो गई। हालांकि पांच दिन पहले कराई गई कोविड 19 जांच में यह कोरोना संक्रमित भी पाई गई थी। मगर एम्स प्रशासन ने ब्रेन स्ट्रोक की समस्या से गंभीररूप ग्रसित महिला की मौत की वजह ब्रेन ब्लीड बताई है।
एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी ने बताया कि एम्स संस्थान लगातार सभी तरह के गंभीर रोगियों के इलाज में जुटा हुआ है। चाहे मरीज कोरोना पॉजिटिव, कोरोना नेगेटिव अथवा किसी भी अन्य तरह की बीमारी से ग्रसित हो। शुक्रवार को यहां जारी मेडिकल बुलेटिन में एम्स प्रशासन ने हल्द्वानी, नैनीताल निवासी 56 वर्षीय महिला की मौत की पुष्टि की है।
एम्स निदेशक पद्मश्री प्रो. रवि कांत जी ने बताया कि बीते माह 22 अप्रैल को ब्रेन स्ट्रोक की बीमारी से ग्रसित इस महिला को एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उसका उपचार चल रहा था। महिला की 27 अप्रैल को कोविड 19 की जांच भी की गई थी, जिसमें वह पॉजिटिव पाई गई। उन्होंने बताया कि उक्त महिला की शुक्रवार सुबह मृत्यु हो गई है। निदेशक एम्स ने महिला की मौत की वजह ब्रेन ब्लिड की समस्या से होना बताया है।
उन्होंने बताया कि उच्चरक्तचाप की वजह से इस महिला के ब्रेन के ऐसे हिस्से में जहां पर शरीर का सारा सिस्टम कंट्रोल होता है वहां पर स्ट्रोक की वजह से ब्रेन ब्लिड की समस्या थी, जिसकी वजह से उसकी मौत हुई है। उन्होंने बताया कि हालांकि महिला कोरोना पॉजिटिव थी, मगर उसे सबसे बड़ी समस्या अत्यधिक ब्लड प्रेशर के कारण ब्लिडिंग थी, साथ ही महिला को निमोनिया व यूरिन इन्फैशन भी था, गंभीर बीमारियों और अधिक उम्र की वजह से शुक्रवार को उसकी मृत्यु हो गई।
गौरतलब है कि इससे पूर्व ब्रेन स्ट्रोक से ग्रसित होने के बाद महिला को नैनीताल और उसके बाद बरेली के अस्पताल में भर्ती किया गया था। बरेली से महिला को 22 अप्रैल को एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था।