देश की राजधानी ही क्यों अफवाहों और सामाजिक-राजनैतिक और बौद्धिक अपरिपक्वता का गढ़ बनती जा रही है या इसे बनाया जा रहा है?
भीड़ कंट्रोल नहीं कर पाने वाले दिल्ली के 4 अधिकारियों पर अमित शाह ने लिया एक्शन
आनन्द विहार में अपने अपने घरों को जाने के लिये जमा हुई मज़दूरों की भीड़ को नियंत्रित न कर पाने के चलते केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने कोरोना आपदा के दौरान लापरवाही बरतने के चलते दिल्ली सरकार के चार आई ए एस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है।
1. Additional Chief Secretary, Transport Department, GNCTD – Suspended with immediate effect.
2. Additional Chief Secretary, Home and Land Buildings Departments, GNCTD – Show Cause Notice.
3. Principal Secretary, Finance, GNCTD & Divisional Commissioner, GNCTD – Suspended with immediate effect.
4. SDM Seelampur – Show Cause Notice.
हरीश सती
देहरादून : देश पर किसी संकट के समय जिस राजधानी को मार्गदर्शक बन कर देश के अन्य भागों को प्रेरित करना चाहिए था, वही क्यों हर बार स्वयं समस्याग्रस्त और आसानी से भेद्य साबित हो रही है? इस विश्वव्यापी, घोर संकट की बेला में, दिल्ली के लोगों का वहां से, इस तरह असुरक्षित तरीके से, पलायन से,बड़ी सामरिक असफलता और विवशता, किसी भी देश के लिए क्या हो सकती है? इस घटनाक्रम ने किसी भी संकट के समय दिल्ली की जनांकिय, राजनीतिक, प्रशासनिक, कल्याणकारी और सामरिक स्थितियों के संदर्भ में चिंता की लकीरे खींच दी हैं।*27- 28 मार्च 2020 को दिल्ली के आनंद विहार में हुए जमघट का संकट इस बात एक चेतावनी है कि दिल्ली में रहने वाली आबादी कैसे किसी भीषण संकट के समय स्वयं एक दूसरी समस्या के रूप में सामने आ सकती है,। सोशल मीडिया के जमाने में अफवाह विदेशों से भी फर्जी सोशल मीडिया एकाउंट्स से फैलाई भी जाती है तो उसका असर दिल्ली पर ही क्यों पड़ता है?
इस क्रोनोलॉजी को समझिए और पर्दे के पीछे क्या चल रहा है,अनुमान ही लगाया जा सकता है…..
1. पहले आठ-दस लोग पैदल जा रहे थे। आखिर इतना बड़ा देश है। कहीं-कहीं प्रशासन की ही ढिलाई से ही कुछ लोग जा रहे होंगे।सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने गरीबों की दशा पर आँसू बहाये। वही पुराना बामपंथी और नक्सलवादी किस्म का राग अलाप गया जिसका अगुवा आज सारी दुनिया में चीन है। चीन की रणनीति रही है कि वह सारे विश्व में शीत युद्ध काल और उसके उपरांत के,**कम्युनिस्ट यूटोपिया** में सांस ले रहे **बामपंथी रोमांटिज़्म**के हताश,बेरोजगार और घोर स्वार्थी हो चुके तथाकथित बुद्धिजीवियों को अपने स्वार्थों के लिए पालता पोषता रहा है। संभवतया ऐसे तत्वों द्वारा वातावरण बनाया गया कि गरीबों और मज़दूरों को खाने रहने की व्यवस्था नहीं हो रही है। इसलिए लोग पलायन कर रहे हैं।
2. खबरों के भूखे चैनलों ने सोशल मीडिया से खबर पकड़ी। खबर देख कर माहौल बना कि लोग के झुंड के झुंड जा रहे हैं और भी लोगों को लगा कि वे भी ऐसे जा सकते हैं। भीड़ बढ़ने लगी।
3. फिर ज्यादा भीड़ हुई तो स्यापा मचाया गया कि इन गरीब मज़दूरों के लिए कुछ इंतजाम क्यों नहीं हो रहा और देश के गरीब मज़दूरों की कोई चिंता नहीं कर रहा। उनके लिए तुरन्त बसों की व्यवस्था क्यों नहीं कराई जा रही। इस तरह का वातावरण कि लॉक डाउन पूरी तरह फैल ही जाए। शायद इसी बात को समझते हुए नीतिश कुमार ने कहा होगा कि इससे तो मोदी जी आह्वान ही फेल हो जायेगा और हम बिहार सीमा पर सबको जांच के बाद ही भेजेंगे।
4. अब दिल्ली के कोने कोने से आकर खासकर आनंद विहार बस अड्डे पर इकट्ठे हुई भीड़ के दबाव और मानवीयता के नाते यूपी सरकार ने बसों का इंतजाम करना शुरू किया।
5. जैसे कुछ लोगों को भेजने के बाद अन्य लोगों में फिर फैल गया या फैलाया गया कि फिर बसें मिल जायेंगी, बस आनंद विहार पहुँच जाओ का हल्ला मचाया गया। लोग मोहल्ले- मोहल्ले से निकल कर आनंद विहार की तरफ बढ़ने लगे।
6. अब जब लोग पैदल ही बढ़ने लगे तो उन्हें आनंद विहार तक पहुँचाने के लिए डीटीसी बसों का इंतजाम भी तुरन्त करा दिया गया मानो जैसे इससे लॉक डाउन को और मजबूती मिलेगी।
7. अब दिल्ली-यूपी सीमा पर हजारों की भीड़ है। सबको बस, बस चाहिए। सोशल डिस्टेंस और लॉक डाउन की धज़्ज़ियाँ उड़ाते हुए और बस न होने की शिकायत से उल्टे अन्य राज्यों की सरकारों को कोसते हुए।
8. फिर ये दिल्ली से आयी भीड़ के देश के अलग अलग हिस्सों में लॉक डाउन की भावना के विपरीत दृश्यों को सोशल मीडिया और मीडिया को उपलब्ध करा रही है। जो फिर वायरल होकर लॉकडाउन को शिथिल ही कर रहें हैं।
देश के चार सबसे बड़े महानगरों में से देश की राजधानी ही क्यों इस तरह का अपरिपक्व व्यवहार कर रही है? क्या उन्हें फ्री की बिजली और पानी देने वाली सरकार के टीवी पर चल रहे संदेश और विज्ञापनों पर भरोसा क्यों नहीं हो रहा है ?जब लोगों को संपर्क के लिए हेल्प नंबर और अन्य जानकारियां और सहयोग देने का सारे देश में एक्शन चल रहा है। तो दिल्ली में ही क्यों इतना अविश्वास है? इन लोगों तक प्रशासन का भरोसा क्यों नहीं पहुंचा? आखिर इन लोगों को क्या लग रहा है कि चाहे 20 दिन तक पैदल चलना पड़े लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार ,जम्मू जैसे दूरस्थ क्षेत्रो तक पहुचना ही है। और जहाँ सारी सुविधा है उस राजधानी में ही नहीं रहना है। अब तक तो यदि गरीबी, भुखमरी की दुहाई न देकर पूरी ईमानदारी से लॉकडाउन को सफल बनाया जाता तो बचे हुए 15 -16 वैसे ही कट जाते।
अब इस तरह की अफरातफरी फैला कर क्या लॉकडाउन समय कम होगा? इस तरह गली मोहल्लों से एक-एक करके निकलने वाली इस भीड़ को जन सैलाब बनने से पहले क्या रोक नहीं जा सकता था? क्या देश के अन्य शहरों व महानगरों में मज़दूर नहीं है? इन्हें नहीं रोकने के प्रयास को क्या लॉक डाउन का सहयोग माना जाय? तो क्या ये फिर उसी तरह का विरोधभास है कि कोरोना चीन के बूहान से शंघाई और बीजिंग में तो नहीं पहुंचा और अमेरिका और यूरोप पहुंच गया। चीन में नाममात्र का भी सेलिब्रिटी इसके चपेट में नहीं आया और अमेरिका और यूरोप में सेलिब्रटी से लेकर आम आदमी तक कोई छूट नहीं रहा। ये विरोधाभास क्यों दिख रहा है? समझ नहीं आता कि ट्रम्प के आने पर सारे देश में दिल्ली ही क्यों उबली और अब सारे गरीब मज़दूर इस तरह दिल्ली की ही सड़कों में क्यों आ रहे हैं?
यूरोप और अमेरिका में संक्रमण की रफ्तार बढ़ती जा रही है। यही रफ्तार एक सप्ताह और रही तो कोरोना के विस्फोट से ही सामना होगा। चीन द्वारा बूहान को कंट्रोल करने का फार्मूला अन्य देशों की समझ में नहीं आया। इधर दिल्ली से पैदल चलकर चारो तरफ फैल चुके लोगों के द्वारा खतरे की घण्टी बजाने को कोशिश तो नहीं हुई? ईश्वर करे इस ढिलाई के बावजूद आज़ाद भारत के इतिहास के सबसे भयावह संकट को न्यौता न मिले। अब ये लोग जहाँ जहाँ पहुंचेंगे वहाँ-वहाँ कौन सुनिश्चित करेगा कि ये क्वारेन्टीन में रहें ? क्योंकि यदि इन लोगों पर मौखिक रूप से बोलकर भरोसा किया जाय तो, ये लोग कितने समझदार और संयमित है ,ये आनंदविहार के जमघट से दिख ही रहा है। और मीडिया ने वैसे ही दारुण दृश्य दिखाना शुरू कर दिया जैसे कंधार विमान अपहरण के बाद अपहृत लोगों को मीडिया में रोते हुए दिखाकर सरकार को पूरी तरह दबाव में ला दिया गया था। क्या वाकई कुछ लोगों को 135 करोड़ के देश में अभी 28 मार्च तक 900 से कम कोरोना के मामले और 30 से कम कैसुअलिटीज़ पच नहीं रही? सारा यूरोप और अमेरिका घुटनो के बल बैठ गया। भविष्य का अनुमान नहीं। लेकिन शायद कुछ तत्वों को नागवार गुजरा कि भारत कैसे छूट गया? जहाँ लॉक डाउन धीरे धीरे अपनी सफलता की ओर बढ़ रहा था। यदि उसमें लोग, सुविधाएं न होने की बात कह कर,देश की राजधानी दिल्ली को छोड़ने में भलाई समझ रहे हैं, तो इससे बड़ा तमाचा उन लोगों पर क्या होगा जो राजधानी में रहकर हमेशा गरीबों की दुहाई देते हैं।
घटनाएं दिल्ली में आनंद विहार की भीड़ में मजदूरों के अलावा बहुत ही बड़ी संख्या में, ऐसे लोग भी हैं जो आराम से दिल्ली में रह सकते हैं।लेकिन जब गाड़ियां मिल रही हैं तो निकल ही लो। क्या गम्भीरता है राजधानी में रहने वाले लोगों में। एक लड़ाई ही तो लड़नी थी देश के लिए कोरोना के खिलाफ ,जहाँ थे वहीं रहकर, कष्ट ही तो उठाने थे। वो भी 10- 20 दिन तक लॉक डाउन में भूखे रहकर पैदल चलकर भटकने से तो कम ही था।इस देश में अधिकांश लोग गरीब ही तो हैं। जो जहाँ है वो वहाँ है। तो दिल्ली में क्या दिक्कत आ गयी? क्यों नहीं भरोसा पैदा हुआ इन लोगों का या किसने भरोसा पैदा नहीं होने दिया? अब ओबराय ग्रुप में काम करने वाला भी उस भीड़ में है। ऐसे ही कई कंपनियों में काम करने वाले युवा भी है।वो अलग बात है सिर्फ यह फैलाया जा रहा है कि उस जमावड़े में सिर्फ गरीब और मज़दूर लोग हैं। यह सर्वहारामय भाषा सोशल मीडिया और मीडिया में सुनने को मिल रही है। क्वारेन्टीन और आइसोलेशन के विश्वव्यापी आह्वान के बाद भी दिल्ली के आनन्द विहार और अन्य हिस्सों में एकत्रित होने दिए गया जमावड़ा किसी व्यापक आत्मघाती हथियार से कम है?अभूतपूर्व रूप से ध्वस्त हो चुके अमेरिका और यूरोप के बाजारों के बाद उन देशों के लिए भारत भी आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति के लिए आशा की एक किरण थी। अब वह भी निशाने पर है। बस अनुमान ही लगाया जा सकता है कि आखिर चल क्या रहा है?
लेकिन यह भी दीवार पर लिखी इबारत है, कि जीतेगा तो भारत ही और वो भी जबरदस्त अंदाज़ में। बस जहाँ हैं वहीं रहें।
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