लगातार बढ़ रही है उद्योगों और स्वच्छ ईंधन के लिए एथेनॉल की मांग
उमाशंकर मिश्र
उद्योगों और स्वच्छ ईंधन के लिए एथेनॉल की मांग लगातार बढ़ रही है। इसके उत्पादन से निकले अपशिष्ट जल से मिट्टी, भूजल एवं नदियों का प्रदूषण एक चुनौती है। भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा विकसित एक नई तकनीक इस अपशिष्ट जल के प्रबंधन के साथ-साथ दूषित जल की रिसाइकलिंग में मददगार हो सकती है। इसके अलावा, पोटाश फर्टीलाइजर एवं पशु आहार में उपयोग होने वाले जैविक घटक जैसे मूल्यवर्द्धित उत्पाद भी प्राप्त किए जा सकेंगे।
यह तकनीक केंद्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (सीएसएमसीआरआई), भावनगर के वैज्ञानिकों ने विकसित की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देशभर में गन्ने के शीरे पर आधारित 350 से अधिक डिस्टिलरी इकाइयां हैं, जहां हर साल करीब 250 करोड़ लीटर एल्कोहल उत्पादन होता है और लभगभ तीन हजार करोड़ लीटर तरल अपशिष्ट निकलता है। इसमें पोटेशियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है। वैज्ञानिकों ने इस अपशिष्ट से पोटाश, कार्बनिक तत्वों और पानी को अलग करने की विधियों का प्रयोग किया है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि देशभर की डिस्टिलरी इकाइयों में इस पद्धति का उपयोग किया जाए तो प्रतिवर्ष करीब छह लाख टन पोटाश प्राप्त किया जा सकता है। इस तरह हर साल पोटाश के आयात पर खर्च होने वाले लगभग 700 करोड़ रुपये की बचत की जा सकेगी। फिलहाल खेती में उर्वरक के रूप में उपयोग होने वाले पोटाश के लिए भारत पूरी तरह आयात पर निर्भर है।
सीएसएमसीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ प्रत्यूष मैती ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “पोटाश के अलावा दो अन्य बहुमूल्य उत्पाद स्वच्छ पानी और डिपोटाश ऑर्गेनिक इस पद्धति के उपयोग से प्राप्त किए जा सकते हैं। इस तकनीक से हर साल 2500 करोड़ लीटर पानी को रिसाइकिल किया जा सकेगा। डिपोटाश ऑर्गेनिक का उपयोग पशु आहार में बाइंडर के रूप में किया जा सकता है। पशु आहार में बाइंडर के रूप में फिलहाल चीनी मिलों से निकले शीरे का उपयोग किया जाता है।”
इस पद्धति को औरंगाबाद डिस्टिलरी में लागू किया गया है, जिसकी प्रतिदिन एल्कोहल उत्पादन क्षमता 60 हजार लीटर है। इस तकनीक की मदद से इस डिस्टिलरी में प्रतिदिन करीब 15 टन पोटाश और 70 टन डिपोटाश ऑर्गेनिक प्राप्त होता है। इसके साथ-साथ हर दिन पांच लाख लीटर पानी रिसाइकल भी हो रहा है, जिसको औद्योगिक कार्यों के लिए दोबारा उपयोग किया जा सकता है। नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड और नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए परीक्षणों में डिपोटाश ऑर्गेनिक को पशु आहार के अनुकूल पाया गया है।
डॉ. मैती ने बताया कि “हर दिन 60 हजार लीटर अल्कोहल उत्पादन की क्षमता के डिस्टिलरी संयंत्र में इस पद्धति को लागू करने के लिए करीब 30 करोड़ का खर्च आता है। यह खर्च तीन साल में ही वसूल हो सकता है। इस संयंत्र को कुछ इस तरह से बनाया गया है कि सामान्य रखरखाव से भी यह कम से कम 20 वर्ष या उससे भी अधिक समय तक चल सकता है।”
एथेनॉल एक प्रकार का अल्कोहल है। इसका उपयोग विभिन्न उद्योगों, जैविक ईंधन और शराब बनाने में होता है। डिस्टिलरी इकाइयों में एथेनॉल बनाने के लिए चीनी मिलों से निकले शीरे का उपयोग होता है। एक लीटर एल्कोहल बनाने के लिए 10-15 लीटर अपशिष्ट जल निकलता है। डिस्टिलरी इकाइयों से निकले अपशिष्ट जल में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, जिंक, कॉपर, मैगनीज, बोरोन और सल्फर जैसे तत्व पाए जाते हैं। इनमें सर्वाधिक एक प्रतिशत मात्रा पोटेशियम की होती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि डिस्टिलरी से निकले अपशिष्ट जल का पीएच मान कम और तापमान अधिक होता है। राख कण, बीओडी एवं सीओडी और जैविक तथा अजैविक पदार्थ डिस्टिलरी अपशिष्ट जल को अत्यधिक हानिकारक बना देते हैं। बिना उपचार बहाए जाने से डिस्टिलरी अपशिष्ट जल मिट्टी और भूमिगत जल को प्रदूषित करता है। यही कारण है कि पोषक तत्वों से भरपूर होने के बावजूद इसका उपयोग सीधे खेती में भी नहीं किया जा सकता।
गाड़ियों के ईंधन में एथेनॉल मिश्रण को बढ़ावा देने के लिए विचार किया जा रहा है। ऐसे में अधिक एथेनॉल उत्पादन की जरूरत होगी, जिसमें इस तरह की पर्यावरण के हित वाली तकनीक प्रभावी भूमिका निभा सकती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह तकनीक शून्य तरल अपशिष्ट बहाए जाने के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों को पूरा करने में मददगार हो सकती है। इसका लाभ अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण के साथ-साथ किसानों और डिस्टिलरी उद्योगों को समान रूप से हो सकता है। इस तकनीक को सीएसआईआर के प्रौद्योगिकी पुरस्कार समेत अन्य कई पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। इंडिया साइंस वायर
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