PERSONALITY

जननायक डाॅ. आर. एस. टोलिया : तृतीय पुण्यतिथि पर शत-शत नमन

जिन्होंने अपने कदमों से गढ़वाल-कुमायूं के हर हिस्से को नापा

अरुण कुकसाल

बात सितम्बर, 1996 के किसी दिन की है।
‘तुम तो श्रीनगर चले गए थे, अब लखनऊ में कैसे’। टोलिया जी मुझे देखते ही कहा था।’ ‘
‘श्रीनगर में विकास आयुक्त, मस्त राम कुकरेती जी ने मुझे ज्वाइनिंग ही नहीं दी। यह कह कर कि सब तो पहाड़ से बाहर जा रहे हैं तुम क्यों लखनऊ से यहां आ रहे हो’।
‘ठीक है, मस्त राम जी को ही पहाड़ से उतार देते हैं। वो कहीं मैदान में मस्ती से नौकरी करें। पर तुम फिर से श्रीनगर जाने के लिए तैयार रहो’।

टोलिया जी ने तुरन्त फरमान जारी किया। और यही हुआ, कुछ ही दिनों बाद नये विकास आयुक्त एस. के. मुट्टू जी की ज्वानिइंग के साथ ही मेरा भी 11साल के प्रवास के बाद ‘अलविदा लखनऊ’ कहकर श्रीनगर गढ़वाल आना हुआ।’

श्रीनगर में सन् 1981 की पहली मुलाकात और उसके बाद तकरीबन 25 वर्षो तक लगातार उनके साथ काम करने के बाद सोचता रहा हूं, हासिल क्या हुआ ? उनका ओढ़ना-बिछौना, उठना-बैठना, सुबह-शाम हर वक्त उत्तराखण्ड विकास के लिए प्रयास और चिन्तन करना था। लखनऊ में वो हम सब पहाडियों के अभिभावक थे। पहाड़ की सभी संस्थाओें विशेषकर ‘उत्तराखण्ड शोध संस्थान’ में उनकी मार्गदर्शी भागेदारी रहती थी। उत्तर प्रदेश में ‘पर्वतीय विकास सचिव’ रहते हुए वे पहाड़ के विकास के लिए उत्तराखण्ड राज्य के आज के संपूर्ण शासन-प्रशासन से कहीं ज्यादा प्रतिबद्ध, सशक्त, प्रभावी और सक्रिय थे। उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था कि वे सामने वाले व्यक्ति में सकारात्मक सोच के साथ नयी ऊर्जा का संचार कर देते थे। उत्तराखण्ड राज्य की नींव मजबूत हो, यह राज्य सही दिशा में सर्वागींण प्रगति करे इसके लिए उनकी दिन-रात की प्रतिबद्धता और कड़ी मेहनत किसी से छुपी नहीं है।

अपने कदमों से गढ़वाल-कुमायूं के हर हिस्से को उन्होनें नापा, पहचाना और वहां विकास की संभावनाओं को तलाशा और उसे अमली जामा पहनाया। आम आदमी, कर्मचारी और अधिकारियों से अपनेपन, सहजता, सरलता से मिलना, उनकी परेशानियों को समझना और उनका त्वरित निदान उनके शासकीय कार्यों को करने का प्रभावी अंदाज था। याददाश्त के वे धनी थे। असहज स्थिति को कैसे सहज किया जाता है, ऐसा कई बार हमने उनसे सीखा। रोज 16 घंटे काम करने के बाद भी उनके चेहरे पर मुस्कराहट चमकती रहती। कई दिनों व रातों के लम्बे टूर पर राह चलते कहीं किसी नुक्कड पर खुद ही समोसे लाकर खाते-खिलाते हुये उनका सरकारी कांरवा आगे बढता रहता था। सरकारी प्रर्दशनियों में विभिन्न उत्पादों को वे बढ़-चढ़कर खरीदते। ताकि और लोग भी प्रौत्साहित हों। वे राज्य बनने के बाद की उपलब्धियों को वो हर समय बताते रहते। यह जानते हुए भी राजनेताओं और अधिकारियों का एक बड़ा तबका उनसे असहमत से बढ़कर हमेशा खिलाफ रहता था। वो वाकिफ थे कि राज्य में कई स्तरों पर गलत परिपाटियों ने अपनी मजबूत जड़ें जमा दी हैं। ‘उनसे सीधे टकराने के बजाय सच्चे कर्मवीर बनकर अपना काम करते रहो’, यह धारणा लिए वे निष्फिक्र हो जाते थे।

राज्य के मुख्य सचिव के बाद मुख्य सूचना आयुक्त के कार्यकाल ने उनकी योग्यता, कार्यक्षमता, प्रतिबद्धिता और दूरदर्शिता को और भी गरिमा प्रदान की। ‘सूचना के अधिकार’ को आम जन में लोकप्रिय बनाने एवं सरकारी अभिकर्मियों को प्रशिक्षित कराने के लिए उनके द्वारा विकसित एवं प्रकाशित साहित्य की प्रासंगिकता और उपयोगिता उत्तराखण्ड से बाहर देश के अन्य राज्यों में भी मार्गदर्शी की भूमिका में लोकप्रिय है। सरकारी सेवा से निवृत होकर अपने पैतृक इलाके में स्थिति मुनस्यारी में उन्होने अपना निवास बनाया। मुनिस्यारी में रहते हुए स्वःअध्ययन और चिन्तन के साथ-साथ अपने सामाजिक दायित्वों से वे परे नहीं हटे। वरन और भी गम्भीरता से उसमें तल्लीन हो गये। अपनी पैतृक सामाजिक जड़ों में जीवन के संध्याकाल में उनके वापस लौटने का सुखद अहसास हम सबने महसूस किया था। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन के साथ उन्होने क्षेत्रीय लेखन से कभी नाता नहीं तोड़ा। हिमालयी साहित्य पर ‘बिट्रिश कुमाऊं-गढ़वाल (2 खण्ड)’, ‘द मरतोलिया लाॅज’, ‘जोहार का इतिहास’, ‘नैन सिंह रावत-अध्यापक, प्रशिक्षक व लेखक’ और ‘धामू बुढ़ा के वंशज’ उनकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं।

देहरादून में 1947 में जन्मे और देहरादून में ही साल 2016 में दुनिया से अलविदा होने की 69 वर्षों की उनकी सांसारिक यात्रा अदभुत थी। जीवनभर एक सच्चे हिमालय पुत्र होने का उन्होने फर्ज निभाया। वे बता गये कि सफलता की वैश्विक ऊंचाईयों को हासिल करने के बाद जीवन का सकून तो अपने मूल समाज में लौट कर ही मिलता है। ‘थिंक ग्लोबल एक्ट लोकल’ के वे प्रतिमूर्ति थे। गणित और इतिहास विषयों से परास्नातक यह विद्यार्थी ताउम्र निरंतर अध्ययनशील और घुम्मकड़ी में रहा। उत्तराखण्ड राज्य का सौभाग्य है कि उसके गठन के शुरूवाती दौर के नीति-नियन्ताओं में डाॅ. आर. एस. टोलिया जी का मार्गदर्शन मिला था। आशा की जानी चाहिए कि उत्तराखण्ड में उनके जैसा प्रशासक, नीति-निर्धारक और शिक्षाविद नयी पीढ़ी से सामने आयेगा।

जीवन के 25 साल के हमसफर मार्गदर्शी बडे़ भाई, तुम्हारी हर बात और अदा निराली थी।
पुण्यआत्मा तुम्हें प्रणाम…..

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