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इगास बग्वाळ ही क्यों ? बड़ी और छोटी बग्वाळ से ही क्यों नहीं : लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी

बड़ी,छोटी बग्वाळ से अपनी माटी-थाती से जुड़ने का करें प्रण 

राजेंद्र जोशी 

देहरादून : पलायन को रोकने के लिए कुछ नेताओं द्वारा इगास बग्वाळ को अपने गांव में मनाने की बात पर उत्तराखंड में चर्चा शुरू हो गयी है।  कुछ लोग जहाँ इसे राजनीतिक प्रपंच बता रहे हैं तो कुछ लोग इसको लेकर बहुत उत्साहित हैं लेकिन गढ़ रत्न व लोकगायक और उत्तराखंड की संस्कृति और संस्कारों में गहरे जुड़े नरेंद्र सिंह नेगी के विचार कुछ अलग हैं। उनका कहना है प्रवासी उत्तराखंडियों को यदि अपनी मातृ भूमि से जुड़ना ही है तो इगास बग्वाळ ही क्यों ? बड़ी और छोटी बग्वाळ से ही क्यों नहीं अपनी माटी-थाती से जुड़ने का प्रण करें। 

उन्होंने केवल इगास बग्वाळ पर उत्तराखंड के अपने गांवों को आने वालों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि इगास बग्वाळ इन लोगों ने इस लिए चुना क्योंकि मैदानी इलाकों में इगास बग्वाळ मनाई ही नहीं जाती, इसलिए इन्होने सोचा चलो अपने गांव ही चलते हैं। उन्होंने कहा यदि पलायन को रोकने में इतनी ही दिलचस्पी है तो कांसी (छोटी) और जेठी (बड़ी) बग्वाळ से पहले ही अपने गांवों की तरफ आ जाइये और इगास बग्वाळ तक 11 दिन अपने गांव में रहिये। आखिर इगास बग्वाळ पर ही केवल पर्यटकों की तरह पिकनिक मनाने आपने गांव क्यों आएं ?

उत्तराखंड की लोकगायिका संगीता ढौंडियाल का कहना है कि हमें अपने गांव की ओर आना चाहिए अब यह किसी न किसी त्यौहार के बहाने ही सही। उन्होंने कहा इस दीपावली पर अपने गांव आएं और अपने पुश्तैनी घरों में एक दीपक जरूर जलाएं। ताकि आप अपनी मातृ भूमि से जुड़े रहें।

 

 

 

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