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अज़ब-गज़ब : मानव अस्पताल की कमान पशु चिकित्सक के हवाले

गोविंद वल्लभ पंत विश्वविद्यालय के एक अस्पताल का मामला 

गज़ब : एक ही मशीन से हो रहा रोगियों और पशुओं का एक्‍सरे 

तीन दिन में प्रमाण पत्रों सहित सीएमओ के सामने उपस्थित होने को नोटिस

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

पंतनगर (ऊधमसिंहनगर) : प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं के इतने बुरे हाल हैं कि यहां अधिकारियों को इस बात का पता तक नहीं  कि किस अस्पताल में किस विधा का डॉक्टर अस्पताल का कमान देख रहा है और वह अस्पताल पंजीकृत है भी या नहीं अस्पतालों में उपकरणों की क्या स्थिति है। ताज़ा मामला पंतनगर के गोविंद वल्लभ पंत विश्वविद्यालय के एक अस्पताल का है जो बिना पंजीकरण के तो चल ही रहा है। वहीं मनुष्यों के स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले इस अस्पताल को बीते पांच सालों से एक पशु चिकित्सक चला रहा है।

मिली जानकारी के अनुसार विश्व विद्यालय  चिकित्सालय में पांच पूर्णकालिक एमबीबीएस डॉक्टरों के होते हुए भी इसकी कमान डॉ. एनएस जादौन (एक पशु चिकित्सक) को सौंपी गई है। करीब पांच साल से चिकित्सालय प्रभारी के कुर्सी पर बैठे डॉ. जादौन को एक माह पूर्व हटाकर डॉ. दुर्गेश यादव को प्रभारी बनाया गया था। मात्र एक माह बाद ही पुन: डॉ. जादौन को पुन: प्रभारी बना दिया गया। जांच टीम ने बताया कि पंजीकरण न होने का एक कारण यह भी है कि चिकित्सालय प्रभारी एक एमबीबीएस डॉक्टर ही बन सकता है न कि पशुचिकित्स्क।

सरकारी तंत्र की लापरवाही और जनता के स्वास्थ्य से खेल खेलने की हद तो तब पार हो गयी जब या पता चला कि अस्‍पताल में रोगियों और पशुओं का एक ही मशीन से एक्‍सरे किया जा रहा है। यह है आधुनिक भारत के एक प्रदेश के स्वास्थ्य सुविधाओं के हालात का एक दृश्य।

इस अस्पताल का खुलासा तब हुआ जब स्वास्थ्य विभाग की टीम ने अस्पताल का औचक निरीक्षण किया तो पता चला कि या अस्पताल तो मानव स्वास्थ्य के लिए खोला गया था और उसका काम देश रहा है एक पशु चिकित्सक। अस्पताल की हकीकत सामने आने पर स्वास्थ्य विभाग की टीम ने चिकित्सालय को तीन दिन में प्रमाण पत्रों के साथ सीएमओ उधमसिंह नगर के कार्यालय में उपस्थित होने को नोटिस थमाया है।

गौरतलब हो कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी के अथक प्रयासों से पंतनगर वासियों के बेहतर स्वास्‍थ्‍य के लिए 70 के दशक में स्थापित हुआ था।  50 बिस्तरों वाला यह अस्पताल सिस्टम की लापरवाही की पराकष्ठा का प्रदेश का शायद एक मात्र उदाहरण होगा जहां का प्रभार पशु चिकित्सक के पास है, एक ही एक्स -रे मशीन पर पशुओं और मानव का एक ही कक्ष में एक्स-रे होता है और न तो इस अस्पताल में पैरामेडिकल स्टाफ ही तैनात है और न दवाएं। वहीं अस्पताल में लगी अल्ट्रासाउंड मशीन के पीसीपीएनडीटी में पंजीकृत नहीं है। 

हाँ फिर भी इस अस्पताल में मरीज आते हैं और पर्ची इत्यादि की औपचारिकता पूर्ण करने के बाद उन्हें अगले अस्पताल की तरफ रेफर कर दिया जाता है। इतना ही नहीं कई वर्षों बाद बीती सोमवार को उधमसिंह नगर के जिला नोडल अधिकारी डॉ. अविनाश खन्ना ने इस चिकित्सालय का औचक निरीक्षण किया तो जांच में पता चला कि 70 के दशक में शुरू हुए अस्पताल का अस्थाई पंजीकरण वर्ष 2014 में कराया गया और एक साल बाद स्थाई (तीन वर्ष के लिए) पंजीकरण भी अब तक नहीं कराया।

इतना ही नहीं इस अस्पताल में  न तो बायोमेडिकल वेस्ट का ही कोई प्रबंध चिकित्सालय प्रशासन की ओर से कराया गया है। साथ ही कूड़े के लिए रखे गए डस्टबिन भी टूटी सिरेंज, पट्टी सहित गुटखा की पन्नियों व पीक से पटे मिले। फायर उपकरणों का तो दूर-दूर तक कोई पता नहीं मिला , अस्पताल प्रशासन द्वारा फायर व प्रदूषण विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र भी नहीं प्राप्त किया गया था। हालांकि इस अस्पताल में कार्डियक एंबुलेंस सहित वेंटीलेटर जैसे महंगे उपकरण तो मिले लेकिन इन्हें संचालित करने वाले किसी तकनीकी स्टाफ की नियुक्ति तक नहीं है। पैथोलॉजी लैब सहित अल्ट्रासाउंड मशीन खुली पड़ी मिली जहां कोई भी आ -जा सकता है। इतना ही नहीं पैथोलोजी लैब में जांच रसायनों का भी कोई पता नहीं और जो मिले भी वे अपनी अवधि पूरी कर चुके थे। 

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