कहीं ग्रामीण बांस के डंडों पर ढो रहे जिंदगियां ….
तो कहीं अफसरों को चाहिए चकाचक बिना हिचकोले की सड़क
राजेन्द्र जोशी
कई चित्र साझा कर रहा हूँ इनको देखिये एक तरफ अस्थायी राजधानी देहरादून का मसूरी से लगा एक छोटा सा कस्बा हुआ करता था जाखन, यहीं दो दशक पूर्व अंसल बिल्डर्स से एक कॉलोनी का निर्माण करवाया जिसका नाम रखा ”अंसल ग्रीन वैली” यहाँ देहरादून में अविभाजित उत्तरप्रदेश के दौरान तैनात रहे एक जिलाधिकारी जो अब अपर मुख्यसचिव की कुर्सी पर विराजमान हैं ने घर लिया, लेकिन अब उन्हें जाखन से अपने घर अंसल ग्रीन वैली तक पहुँचने का मार्ग संकरा लगने लगा है जबकि यह लगभग देहरादून की उन कॉलोनियों की उन सड़कों की तरह चौड़ी है जिनसे आम लोग गुजरा करते हैं, लेकिन उन्हें कभी अपनी कोलोनियों की सड़कों से समस्या पैदा नहीं हुई, लेकिन साहब जो ठैरे वो भी आईएएस रुतबे का प्रदर्शन न किया तो क्या किया और सुना दिया लोकनिर्माण विभाग को फरमान सड़क को चौड़ी करने का । क्योंकि साहब शायद इसी विभाग के प्रमुख सचिव भी हैं और साहब का हुक्म सुनते ही लोकनिर्माण विभाग ने भी आनन -फानन में करोड़ों रुपये का आगणन बनाकर दे डाला अच्छी -भली सड़क को चौड़ी करने का ठेका, अब ठेकेदार को तो कमाई से मतलब उसने भी जाखन से लेकर अंसल ग्रीन वैली तक की सड़क को खोदकर 22 मीटर चौड़ी कर दी वर्षों से दून विहार,भागीरथीपुरम और अंसल ग्रीन वैली तक के लोगों के पानी के नल टूटे, सीवर के पाइप फूटे और सडकों के किनारे की बिजली की लाइन भी लाखों रुपये खर्चकर शिफ्ट करवाई ताकि ”साहब” को दूर तक देखने में कोई परेशानी न हो और आजकल सड़क का कार्य तीव्र गति से जारी है साहब को अपनी पुत्री की शादी से पहले सड़क चकाचक चाहिए ताकि आईएएस दामाद को उनके रुतबे का अहसास हो और लगे की किसी सीनियर आईएएस की पुत्री से विवाह किया है ।
अब आपको ले चलते हैं इसी जिले के दूसरे इलाके में जहाँ गांव से 14 किलोमीटर दूर सड़क है और उन्हें बीमारी के दौरान देहरादून पहुँचने में 131 किलोमीटर सा सफ़र तय करना पड़ता है ।।।फोटो एक उदाहरण के तौर पर पेश की जा रही है कि कैसे एक प्रसूता ज़िंदा युवती को बांस के डंडों में शव की तरह बांधकर देहरादून जिले की चकराता तहसील के दुर्गम गांव बुरायला से देहरादून तक लेकर आये इस दौरान 14 किलोमीटर पैदल लेकर लोखंडी तक पहुंचे ।इस दौरान दर्द से कराहती युवती अत्यधिक रक्तश्राव के चलते कई बार बेहोश भी हुई मार्ग में चकरौता, कालसी , विकासनगर और न जाने कितने कस्बे पार किये तब जाकर युवती को देहरादून के महंत इन्द्रेश हॉस्पिटल पहुँचाया जा सका जहाँ वह तीन दिन बाद भी जीवन और मौत से संघर्ष कर रही है ।
यह कहानी इसलिए सुनानी पड़ रही है कि क्या देहरादून के जाखन से अंसल ग्रीन वैली तक की सड़क को बनाना ज्यादा महत्वपूर्ण था क्योंकि यहाँ कोई आईएएस रहता है या उस गांव तक सड़क पहुँचाना ज्यादा जरुरी है जहाँ कोई भी आईएएस नहीं लेकिन ग्रामीण आज़ादी के 70 साल बाद आज भी 14 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर अपने नौनिहालों के जीवन बचाने के लिए मजबूर हैं और इसी तरह बांसके डंडों पर प्रसूताओं और बीमारों को अस्पताल तक पहुंचाने को मजबूर हैं । क्या ही अच्छा होता देहरादून के जाखन से अंसल ग्रीन वैली तक की अच्छी भली सड़क को चौड़ी करने के बजाय इस पर हो रहे सकल खर्चे से चकराता तहसील के दुर्गम गांव बुरायला तक पहुँचने की सड़क को बनाया जाता ताकि आने वाली पीढ़ियों को तो कम से कम सड़क के न होने के चलते इस तरह की परेशानी न उठानी पड़ती ।