सीबीसीआईडी की जांच में पांच और शिक्षकों के प्रमाणपत्र निकले फर्जी
- तीन साल ज्यादा नौकरी कर ली फर्जी जन्मतिथि पर
DEHRADUN : सीबीसीआईडी ने फर्जी प्रमाण-पत्रों के जरिए शिक्षक बनने वाले पांच और शिक्षकों की नौकरी पाने की कहानी खोल कर रख दी है। इनमें वर्तमान में दो शिक्षक हरिद्वार, दो ऊधमसिंह नगर और एक शिक्षक पिथौरागढ़ जिले में तैनात बताया गया है। इनमें से चार शिक्षकों के शैक्षिक तो एक का मूल निवास प्रमाण पत्र पूरी तरह से फर्जी पाया गया है। जांच पूरी हो जाने के बाद अब सीबीसीआईडी ने इन सभी शिक्षकों के खिलाफ विभागीय और विधिक कार्रवाई की संस्तुति सरकार और शिक्षा विभाग कर दी है।
सीबीसीआईडी द्वारा किए गए खुलासे में पहला मामला लाल बहादुर शास्त्री इंटर कॉलेज से वर्ष 2017 में रिटायर हुए शिक्षक रामसरन सिंह का है। शिकायत मिली थी कि रामसरन ने अपनी जन्मतिथि को वास्तविक से कम दर्शाकर नौकरी पाई है। शिक्षा विभाग में जमा रामसरन की हाईस्कूल की मार्कशीट गांधी स्मारक इंटरमीडिएट कॉलेज, सुरजननगर, जयनगर मुरादाबाद की है। इसमें उनकी जन्मतिथि आठ दिसंबर 1957 है। सीबीसीआईडी ने जब कॉलेज जाकर जांच की तो पता चला कि स्कूल के दस्तावेजों में रामसरन के जन्मतिथि आठ दिसंबर 1954 अंकित है। उन्होंने वर्ष 1973 में हाईस्कूल और 1975 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी। इस आधार पर रामसरन को साल 2014 में रिटायर हो जाना चाहिए था, लेकिन उन्होंने तीन साल अधिक नौकरी की।
इतना ही नहीं एक शिक्षक ने तो हाईस्कूल किया नहीं है और राजकीय प्राथमिक विद्यालय में तैनात सहायक शिक्षक सुशील कुमार ने साल 2015 में फर्जी शैक्षिक प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी हासिल की थी। शिकायत के बाद जब सीबीसीआईडी ने शिक्षा विभाग से उनके दस्तावेज मांगे तो पता चला कि सुशील कुमार ने 1989 में गुरुकुल वृंदावन से हाईस्कूल की व्यक्तिगत परीक्षा पास की थी। इसकी जांच के लिए जब गुरुकुल वृंदावन तत्कालीन गुरुकुल विश्वविद्यालय वृंदावन मथुरा से सत्यापन कराया गया तो मार्कशीट फर्जी पाई गई। पता चला कि सुशील कुमार नाम के किसी छात्र ने उस वर्ष हाईस्कूल पास नहीं किया था। मार्कशीट में प्राचार्य के हस्ताक्षर भी फर्जी थे। विवि ने यह भी बताया कि प्रबंधन ने किसी भी साल व्यक्तिगत परीक्षा कराई ही नहीं है।
रीना रानी पत्नी संदीप कुमार निवासी मोहल्ला शिवपुरी तहसील लक्सरफर्जी मूल निवास प्रमाण पत्र के आधार पर 27 फरवरी 2016 में शिक्षक की नौकरी मिली। विभाग ने उन्हें राजकीय प्राथमिक विद्यालय चमडुंगरा में बतौर सहायक अध्यापिका तैनाती दे दी। एक साल बाद ही उनकी किसी ने शिकायत कर दी। शिकायत थी कि उन्होंने मूल निवास प्रमाण पत्र फर्जी प्रस्तुत किया था। सीबीसीआईडी ने जब प्रमाण पत्र के सत्यापन को एसडीएम लक्सर के कार्यालय भेजा तो वहां किसी रीना रानी का पता नहीं चला। कार्यालय से रिपोर्ट आई कि रीना का मूल निवास प्रमाण पत्र पूरी तरह से फर्जी है।
वहीँ धीरज सिंह ने 1982 में हाईस्कूल की परीक्षा आर्ट साइड (हिंंदी, अंग्रेजी ज्यामीतिय, अर्थशास्त्र और संस्कृत) से दी थी, लेकिन फेल हो गए। अब 1996 में शिक्षक बनने का मौका आया तो जुगाड़ लगा लिया। किसी सूर्यपाल सिंह की साइंस स्ट्रीम की मार्कशीट पर अपना नाम चस्पा कर दिया और शिक्षा विभाग में प्रस्तुत कर दी। वह भी फर्स्ट क्लास फर्स्ट डिविजन पास। शिक्षा विभाग ने भी बिना जांच पड़ताल नौकरी दे दी। वर्तमान में धीरज धीमरखेड़ा काशीपुर में पढ़ा रहे हैं। शिकायत के बाद जांच हुई तो फर्जीवाड़ा सामने आ गया।
राजकीय प्राथमिक विद्यालय टांडा हसनगढ़ में तैनात सहायक अध्यापक मगन सिंह की कहानी भी काफी दिलचस्प है। मगन सिंह 1978 में इंटरमीडिएट के बाद पढ़ाई बंद कर घर बैठ गया। इसके 29 साल बाद याद आया कि नौकरी की जाए। किसी ने सलाह दी कि वह 1991 की उसे कुमाऊं विवि की बीएससी की डिग्री दिलवा देगा। यह डिग्री हासिल करने के बाद मगन सिंह 2007 में शिक्षक बन गया। शिकायत के बाद सीबीसीआईडी ने सत्यापन कराया तो पता चला कि मगन सिंह ने कोई परीक्षा पास नहीं की है। अब सीबीसीआईडी ने उनके खिलाफ विभागीय जांच के लिए शिक्षा विभाग को लिखा है।