खुलासा : ग्लेशियर हर साल पांच से 25 मीटर की दर से हर साल रहे हैं सिकुड़

- उत्तराखंड के हिमालयी ग्लेशियरों पर शोध पर रिपोर्ट
देहरादून : वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलाजी के वैज्ञानिकों द्वारा पिछले 25 साल से उत्तराखंड के हिमालयी ग्लेशियरों पर शोध पर रिपोर्ट जारी करते हुए कहा हिमालय के ग्लेशियरों की लंबाई लगातार घट रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 25 सालों में कुछ ग्लेशियर तो एक-एक किलोमीटर तक सिकुड़े हैं। वहीँ डोकरानी ग्लेशियर हर साल लगभग 18 मीटर की दर से पीछे खिसक रहा है। रिपोर्ट के अनुसार औसत रूप से ग्लेशियर पांच मीटर से लेकर 20 मीटर की दर से खिसक रहे हैं।
वाडिया संस्थान के ग्लेशियर विशेषज्ञ डा. डीपी डोभाल ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालयी ग्लेश्यरों की लंबाई में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। वाडिया संस्थान हर साल अक्टूबर से अक्टूबर तक हिमालयी ग्लेशियरों में विभिन्न उपकरणों की सहायता से ग्लेशियरों में हो रहे बदलाव पर रिपोर्ट तैयार करता है। ग्लेशियर तल और चोटी दोनों जगहों से पिघलते हैं। हर साल इनकी मोटाई औसतन 30 से 50 सेंटीमीटर तक कम हो रही है। उनके अनुसार पिछले 25 साल की शोध रिपोर्टों का आंकलन करने पर यह बात सामने आई है कि उत्तराखंड के ग्लेशियर 800 मीटर से लेकर एक किलोमीटर तक पीछे खिसक गए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष इस दर से खिसक रहे हैं ग्लेशियर :-
चौराबारी नौ मीटर
डोकरानी 18 मीटर
गंगोत्री 10 – 12 मीटर
पिंडारी 12 – 13 मीटर
कफनी 10 – 12 मीटर
द्रोणागिरी 5 – 7 मीटर
वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलाजी के वैज्ञानिकों द्वारा पिछले 25 साल की रिपोर्ट बताती है कि ग्लोबल वार्मिंग ग्लेशियर पिघलने का सबसे बड़ा कारण है। मौसम और पर्यावरण में परिवर्तन ग्लेशियरों की सेहत को प्रभावित करता है। डा. डीपी डोभाल के अनुसार इंसानों की तरह ही ग्लेशियरों का भी जीवन चक्र होता है। ग्लेशियरों की भी उम्र होती है, जिसके तहत वे घटते और बढ़ते हैं।
वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलाजी के वैज्ञानिकों के अध्ययन के बाद रिपोर्ट में बताया कि ग्लेशियरों में हो रहे इन बदलावों का सीधा प्रभाव नदियों के जल स्तर पर पड़ रहा है। इससे पिंडर, गंगा, कोसी आदि नदियों के पानी में साल दर साल कमी आएगी। साल के ज्यादातर समय नदियों में कम रहने वाला जलस्तर पिघलते ग्लेशियरों और सूखती नदियां ग्लेशियरों के प्रभाव को प्रदर्शित करता है।