एक था भाटी आयोग…एक था त्रिपाठी आयोग….बस कहानी खत्म !
- जांच आयोगों की रिपोर्टों पर नहीं हुई कार्यवाही!
- निसंदेह प्रदेश के कई सफेदपोश और नौकरशाह होते सलाखों के पीछे!
योगेश भट्ट
उत्तराखंड में सत्रह सालों के दौरान राजधानी निर्माण घोटाले से लेकर एनएच 74 के बीच तकरीबन सौ बड़े घोटाले हुए हैं । जिनमें से लगभग अस्सी बड़े घोटालों की जांच के लिये अलग अलग समय पर जांच आयोग गठित किये गये । वर्मा आयोग, शर्मा आयोग, कांडपाल आयोग, श्रीवास्तव आयोग, भाटी आयोग और त्रिपाठी आयोग इनमें प्रमुख हैं । इन आयोगों पर करोड़ों रुपया खर्च हुआ । देर से ही सही आयोगों ने जांच भी की और रिपोर्टें भी सौंपी , लेकिन आज तक जांच आयोग की एक भी रिपोर्ट पर कोई कार्यवाही नहीं हुई । जांच आयोगों की रिपोर्टों पर कार्यवाही हुई होती तो निसंदेह प्रदेश के कई बड़े सफेदपोश और नौकरशाह आज सलाखों के पीछे होते । कई नेताओं का सियासी भविष्य खत्म हो चुका होता तो बड़े ओहदों पर बैठे कई नौकरशाह बहुत पहले ही नौकरी से हाथ धो चुके होते ।
दुर्भाग्य यह है कि उत्तराखंड में तो आयोग एक मजाक बन कर रह गए हैं । सरकारें जांच आयोग की रिपोर्टों को सिर्फ सियासी हथियार बनाती रहीं हैं। जिन रिपोर्टों पर एक्शन होना चाहिए, सरकार एक्शन के नाम पर उन रिपोर्टों पर भी जांच बैठा कर ठंडे बस्ते के हवाले करती रही हैं । भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस का दावा करने वाली सरकार में भाटी आयोग और त्रिपाठी आयोग की रिपोर्ट का जो हश्र हो रहा है, उससे यह भी साफ हो गया है कि जांच आयोग तो सिर्फ जनता को गुमराह करने के लिए हैं ।
यूं तो प्रदेश में घोटालों पर जांच आयोगों का इतिहास तकरीबन डेढ़ दशक पुराना है । पर यह बात पांच साल पुरानी है, उक्रांद और निर्दलीय विधायकों के सहयोग से विजय बहुगुणा कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री थे । सत्ता में आते ही उन्होंने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए कथित घोटालों की जांच के लिये आयोग का गठन किया ।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी केआर भाटी की अध्यक्षता में गठित इस आयोग को भाजपा शासन के दौरान उत्तराखंड बीज एवं तराई विकास निगम में बड़े पैमाने पर हुई धांधली, स्टेर्डिया, पावर प्रोजेक्ट आवंटन , महाकुंभ व आपदा राहत में कथित घोटालों और वर्ष 2007 से 2012 के बीच केंद्र पोषित योजनाओं में अनियमितताओं की जांच के साथ ही ढेंचा बीज घोटाला और कार्बेट नेशनल पार्क में भूमि के विक्रय हस्तांतरण आदि चर्चित प्रकरणों की जांच करनी थी। भाटी आयोग साल भर में मात्र तराई बीज विकास निगम से संबंधित प्रकरण की ही जांच कर पाया । जांच रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु थे निगम में गैर सरकारी अध्यक्ष के रूप में हेमंत द्विवेदी की नियुक्ति होना । मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव की ओर से वित्तीय एवं प्रशासनिक अधिकारों का उल्लंघन कर निगम अध्यक्ष की नियुक्ति का अवैधानिक आदेश जारी करना । इस दौरान सीधी भर्ती के माध्यम से 17 अधिकारियों की नियमित नियुक्ति एवं तदर्थ आधार पर 30 अधिकारियों एवं सहायक की तदर्थ नियुक्तियां किया जाना। निगम द्वारा बीज खरीद व जूट के बोरों की खरीद में अनियमितता बरतना। गनी बैग ट्रेडर्स एसोसिएशन द्वारा जारी दैनिक मूल्य बुलेटिन में वर्णित बाजार कीमत और वायदा सौदों की गलत व्याख्या करना। पंतनगर बीज ब्रांड की छवि को हानि पहुंचाना, तथा इसके परिणाम स्वरूप निगम को वित्तीय नुकसान होना।
दिलचस्प यह है कि भाटी जांच आयोग की यह रिपोर्ट सदन में रखे जाने से पहले ही लीक हो गयी । यह लीकेज उस वक्त हुआ जब कांग्रेस सरकार चौतरफा भ्रष्टाचार के आरोप में घिरी थी । बहुगुणा सरकार पर सिडकुल की जमीन को कौढ़ियों के भाव बिल्डरों को सौंपने के आरोप लग रहे थे, साकेत बहुगुणा का नाम भी खूब उछलने लगा था। सदन के अंदर भाजपा ने सरकार पर चौतरफा हमला बोला हुआ था । सरकार सदन के अंदर और बाहर भ्रष्टाचार के आरोपों पर असहज हो रही थी । सरकार आयोग की रिपोर्ट का भय दिखाकर विपक्ष पर मानसिक दबाव बना रही थी ।
यही कारण है कि भाटी आयोग पर आरोप लगे कि यह जांच रिपोर्ट कांग्रेस से मिलीभगत कर तैयार की गयी है। यही नहीं रिपोर्ट लीक किये जाने का आरोप सरकार के साथ ही आयोग पर भी लगा । मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने तो आयोग के अध्यक्ष केवल राम भाटी पर यहां तक आरोप लगाया कि उनके और कांग्रेस के बीच सांठगांठ है । इसी के चलते केवल राम भाटी ने डिफेंस कॉलोनी स्थित अपना आवास वर्ष 2008 में मुख्यमंत्री के करीबी विधायक सुबोध उनियाल को दिया । बीज एवं तराई विकास निगम (पीडीसी) के पूर्व अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी ने तो भाटी आयोग की रिपोर्ट को नैनीताल उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए भाटी को ही पक्षकार बना डाला था ।
आखिरकार सरकार और विपक्ष के विवाद के चलते केआर भाटी ने आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया । भाटी के इस्तीफे के बाद दूसरे मामलों की जांच का जिम्मा सरकार ने भाटी के स्थान पर सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी एससी त्रिपाठी को सौंपा । उधर बीज विकास निगम पर भाटी आयोग की रिपोर्ट को विपक्ष के तमाम आरोपों के बावजूद सरकार ने विधानसभा में रखा ।
दरअसल भाटी आयोग की रिपोर्ट पर खेल सिर्फ भाजपा को दबाव में लेने के लिये खेला गया । सरकार इसमें काफी हद तक कामयाब भी हुई । जो भाजपा पूरे तथ्य व प्रमाण के साथ सिडकुल की जमीन के मुद्दे को उठा रही थी, वह धीरे धीरे शांत हो गयी । बहुगुणा सरकार ने ऐलान किया था कि वह रिपोर्ट में दोषियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराएंगे । लेकिन आश्चर्यजनक यह रहा कि जब मुकदमा दर्ज कराते वक्त सरकार ने अज्ञात में मुकदमा दर्ज कराकर इतिश्री कर ली । सरकार की ओर से गृह अनुसचिव महावीर सिंह चौहान की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात आरोपियो पर आइपीसी की धारा-420,467,468,471, 166, 409 व 120(बी) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया । रिपोर्ट में यह तो जिक्र हुआ कि अभियुक्तों द्वारा लोकसेवक होते हुए पद का दुरुपयोग कर, षड़यंत्र रचकर और कूटरचित दस्तावेज बनाकर सरकारी धन का गबन किया गया है। लेकिन वो लोकसेवक कौन हैं, इसका सरकार ने कहीं कोई जिक्र नहीं किया ।
इस मुकदमे को दर्ज हुए पांच साल बीत चुके हैं, आज तक इसमें कोई कार्रवाई नहीं हुई । सरकार की ओर से दर्ज यह रिपोर्ट अंतत: औपचारिकता मात्र साबित हुई। इस बीच सरकार और विपक्ष दोनो ही भाटी आयोग की रिपोर्ट को लंबे समय तक के लिये भूल गए । इसके बाद चर्चा में बहुत थोड़े वक्त के लिए चर्चा में त्रिपाठी आयोग की रिपोर्ट आयी, त्रिपाठी आयोग ने ढ़ेचा बीज घोटाले की जो रिपोर्ट सरकार को सौंपी उसमें भी तत्कालीन कृषि मंत्री और दो बड़े नौकरशाहों को दोषी ठहराया गया । इस रिपोर्ट पर भी सरकार कोई एक्शन नहीं ले पायी ।
समयचक्र देखिये मुख्यमंत्री रहते हुए जो विजय बहुगुणा बयान दे रहे थे कि भाटी आयोग की रिपोर्ट भाजपा का भट्टा बैठा देगी । आज वही बहुगुणा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में शुमार हैं । जो त्रिवेंद्र रावत कृषि मंत्री रहते हुए ढेंचा बीच घोटाले में आरोपी ठहराये गए वह प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं । जो सुबोध उनियाल भाटी आयोग की रिपोर्ट आने पर त्रिवेंद्र सिंह के निशाने पर रहे, वह त्रिवेंद्र सरकार में कृषि मंत्री के पद पर हैं । यही नहीं भाटी आयोग की रिपोर्ट को सदन में पेश करने वाले तत्कालीन कृषि मंत्री हरक सिंह भी आज त्रिवेंद्र सरकार में मंत्री हैं । दिलचस्प यह है कि जो कांग्रेस भाटी आयोग की रिपोर्ट पर अज्ञात में मुकदमा दर्ज कर इतिश्री कर चुकी है, वह आज सदन में इस रिपोर्ट में दोषियों को सजा देने की मांग करती है । कांग्रेस इस रिपोर्ट के बहाने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के साथ कांग्रेस के भाजपा में गए विजय बहुगुणा, हरक सिंह और सुबोध उनियाल को भी असहज करने की कोशिश में है ।
आश्चर्य यह है कि त्रिपाठी आयोग की रिपोर्ट का जिक्र फिलवक्त कोई नहीं करता । त्रिपाठी आयोग ने घोटालों की सूची में से सात मामलों की जांच पर अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपी थी । इन रिपोर्टों मे ढ़ेचा बीज घोटाले की रिपोर्ट भी शामिल है । इसके अलावा 56 घोटालों की बात भी नहीं सुनायी देती । इन घोटालों में से तमाम घोटालों की जांच शासन को विजिलेंस कार्यवाही के लिये भेजी गयी है । सालों बाद भी जिम्मेदार नेताओं और अफसरों पर कोई एक्शन नहीं हुआ । जांच आयोगों की रिपोर्ट पर किसी भी गुनहगार पर शिकंजा नहीं कसा गया ।