भरोसे की बहाली को ‘मंगेश’ सा जज्बा काफी..
उत्तराखंड की नौकरशाही अराजकता, मनमानी और निकम्मेपन के लिए बदनाम
योगेश भट्ट
उत्तराखण्ड में आज सबसे बड़ा सवाल विश्वसनियता का है । सरकारें ,विपक्ष , नौकरशाही, मीडिया, कारोबारी, राजनेता, स्वयंसेवक हर किसी ने यहां भरोसा खोया है। जाहिर है इनमें से जब कोई भी भरोसेमंद नहीं रहा तो सिस्टम कैसे भरोसेमंद हो सकता है। खैर, अब सवाल यह है कि क्या सिस्टम में बदलाव संभव है ? तो हां, बदलाव संभव है और इसके लिए किसी बड़ी क्रांति की जरूरत भी नहीं, जरूरत है तो सिर्फ एक छोटी सी कोशिश की, कोशिश थोड़ा संवेदनशील और ज़िम्मेदार बनने की और अपनी भूमिका के साथ न्याय करने की। बहुत दूर जाने की ज़रुरत नहीं, राज्य के एक युवा आईएएस अफसर मंगेश घिल्डियाल ने लगातार यह साबित कर रहे हैं ।
आज जब राज्य की नौकरशाही और उसके नेतृत्व पर सवाल है, सरकारी अफसरों की आम छवि भी ठीक नहीं है । ऐसे में यह अधिकारी अपनी मात्र पांच साल की सेवा में भरोसे का प्रतीक बन चुका है । मंगेश निराशा के माहौल में उम्मीद के उन ‘दीपकों’ में हैं, जिन पर राज्य का भविष्य निर्भर है। इन दिनों मंगेश ऐसे युवा अधिकारियों में सर्वाधिक चर्चा में हैं। चर्चाओं में वह ना तो सिस्टम को कोसने के लिए हैं ना अपने उच्चाधिकारियों और राजनेताओं से टकराने और किसी विवाद को जन्म देने के लिए । ना ही वह कोई ‘विरला’ काम कर रहे हैं, वह तो सिर्फ अपनी लोकप्रिय कार्यशैली को लेकर चर्चाओं में हैं। जहां जहां वह तैनात रहे आम आदमी के भरोसे का प्रतीक रहे।
जनता का यह भरोसा मंगेश घिल्डियाल ने अपनी जिम्मेदारी का पूरी निष्ठा के साथ निर्वहन करते हुए, जनता की पीड़ा को महसूस करते हुए जीता है। इस वक्त रूद्रप्रयाग के जिलाधिकारी पद पर तैनात मंगेश को उनकी विशिष्ट कार्यशैली बाकी अधिकारियों से अलग खड़ा करती है। जनता की समस्याओं से रूबरू होने के लिए वे कभी आम आदमी बनकर तो कभी आम यात्री बनकर निकलते हैं। आम जनता के बीच गांव में जाकर संवाद स्थापित करते हैं। मौके पर जाकर समस्याएं सुनते हैं और निराकरण करते हैं।
जनता की समस्याओं को हल करते हैं। स्कूलों में जाकर बच्चों के साथ वक्त बिताते हैं। युवाओं को प्रेरित करते हैं। इतना ही नहीं एक स्कूल में विज्ञान की शिक्षिका न होने पर उनकी पत्नी विद्यालय जाकर वालिएंटर के तौर पर छात्राओं को पढ़ाने में जुट जाती हैं। जिस अधिकारी की कार्यशैली इस तरह की हो, उस पर कौन न भरोसा करे? वे वहीं मंगेश घिल्डियाल हैं, जिन्हें सरकार ने कुछ समय पहले ही बागेश्वर से रूद्रप्रयाग ट्रांसफर किया। तब इनके तबादले के खिलाफ बागेश्वर की जनता सड़कों पर उतर आयी । इन्हें आने नहीं दिया गया था। दो दिन तक बाजार बंद रहे। बताते हैं कि बागेश्वर में वे इतने लोकप्रिय थे कि आम जनता सीधे उनसे संपर्क में थे। जनप्रतिनिधियों को यह खटकने लगा था।
अभी तक 2012 बैच के इस आईएएस अफसर की जहां-जहां तैनाती हुई, हर जगह विवादों से ऊपर उन्होंने अपनी अलग छवि बनाई। उन्हें खुद को साबित करने के लिए न किसी पोस्टिंग का मोहताज नहीं होना पड़ा और न राजनैतिक संरक्षण का । जहां जो जिम्मेदारी मिली उसका न सिस्टम से और न राजनेताओं से शिकायत किए बिना निर्वहन किया। कुल मिलाकर वे अपनी भूमिका के साथ न्याय कर रहे हैं। काश: यही छोटी सी बात हर बड़ा जिम्मेदार समझ पाता। जो जिस भूमिका में है अगर वह उस भूमिका के साथ न्याय करे तो पूरी व्यवस्था में बदलाव निश्चित है।
आज उत्तराखंड की नौकरशाही अराजकता, मनमानी और निकम्मेपन के लिए बदनाम है, लेकिन इस निराशा के बीच कई ऐसे अधिकारी भी हैं, जो अपनी भूमिका के साथ न्याय करते हुए नई इबारत लिख रहे हैं। मंगेश घिल्डियाल न उनमें पहला नाम हैं न आखिरी, वह उन युवा अफसरों में शामिल हैं, जिनके लिए देहरादून में पोस्टिंग या वजनदार महकमों में तैनाती या राजनीतिक सरपरस्ती कोई मायने नहीं रखती। न उनके मन में सिस्टम को लेकर कुंठा या हताशा है। वे तो मानो इस सूत्र को गांठ बांधकर चल रहे हैं कि कैसे अपनी जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभाया जाए। प्रदेश के युवाओं के लिए मंगेश एक आदर्श हैं प्रेरणा हैं , काश ये जज्बा हर युवा के अन्दर हो ।