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सियासी दलों के पास आपदा के जख्मों का नहीं कोई इलाज़ और न कोई फ़िक्र

आपदा प्रभावितों के मुद्दे से दोनों ही पार्टियों ने किया किनारा 

कई प्रभावित गाँव छह साल से तो कोई दस साल से पुनर्स्थापन की जोह रहे हैं बाट 

देहरादून : उत्तराखंड में चौथा विधानसभा चुनाव आ गया, चुनावी महासमर में सियासी ताकतें उतरी है। नेतागण हर चौखट पर वोट के लिए दस्तक दे रहे हैं। ऐसे में ज्वलंत मुद्दों के सवाल भी सामने खड़े हैं। इनमें ऐसे मुद्दे भी हैं, जो राजनीतिक छलावे का साफ एहसास करा रहे हैं। लेकिन अल्मोड़ा तथा चमोली जिले के आपदा प्रभावितों का इंतजार आज तक खत्म नहीं हुआ। डेढ़ दशक बाद भी वे छत की आस लगाए हुए हैं। हर चुनाव में नेताजी ने आपदा प्रभावितों को छत मुहैया कराने के लिए विस्थापन के बड़े-बड़े वादे किए।लेकिन हकीकत आज भी वही की वही है आपदा प्रभावित नेताओं पर टकटकी लगाये बैठे हैं तो नेताओं के एजेंडे में केवल वोट ही दिखायी दे रहे हैं इन लोगों की समस्या के समाधान की फिक्र न तो सरकार को है और न नेताओं को। हकीकत यह है कि इन वादों का अंशभर भी नेताजी पूरा नहीं कर पाए। नतीजा, आपदा प्रभावितों की नफरी बढ़ती ही चली गई। आंकड़े बता रहे कि चमोली जिले में वर्ष 2002 से 2013 तक आपदा प्रभावित 78 गांवों के 2653 परिवारों को विस्थापन का इंतजार है। इन परिवारों की आबादी वर्तमान में 17300 है। केदारनाथ समेत चारधाम में आई 2013 की आपदा के बाद सरकार का फोकस प्रभावितों का समुचित पुनर्वास था। बावजूद इसके चमोली जिले आपदा प्रभावित डेढ़ दशक बाद भी एक अदद छत के लिए सरकार का मुंह ताक रहे हैं।

वहीँ बात यदि अल्मोड़ा जिले की की जाय तो यहाँ भी एक बड़ा मुद्दा आपदा की जबर्दस्त मार झेल चुके दर्जनों परिवारों का है। बरसाती आपदा में तबाह कृषि भूमि के बदले कृषि योग्य जमीन उन्हें मिलना तो दूर, उनका सुरक्षित स्थान पर पुनर्वास तक नहीं हो सका। वह भी तब जब छह साल पार हो गए हों। वर्ष 2010 की बरसाती आपदा में जिले के भैसियाछाना विकासखंड के ग्राम बूढ़ाधार व खैरखेत में कहर बरपा। भूस्खलन से कृषि भूमि रौखड़ में तब्दील हो गया और तमाम परिवारों को बेघर कर दिया। इसी के करीबी गांव भैसियाछाना, ल्वेटा, रमतोला, खैरखेत, राजखेत, तल्ली रिखाड़ आदि गांवों की उपजाऊ भूमि बर्बाद हो गई। आज भी गांवों में रौखड़ का नजारा आपदा की याद ताजा बनाए हुए है।

वहीं हर बरसात में पहाड़ी से खतरा रहता है। आपदा के बाद कुछ टेंट बांटे गए, मुआवजा मिला और उस वक्त तात्कालिक तौर पर सुरक्षा की दृष्टि से परिवारों को यत्र-तत्र हटाया। सब्जबाग दिखा दिया कि सुरक्षित स्थान पर विस्थापित किया जाएगा। विस्थापन के लिए अकेले बूढ़ाधार व खैरखेत से 56 परिवार चिह्नित किए गए। विस्थापन की फाइल चली, मगर छह साल बाद भी न तो कोई कार्रवाई हुई और न ही भविष्य का खतरा टालने के लिए ठोस नीति बनाई गई।

जब डेढ़ माह पहले ग्रामीणों आंदोलन किया। उसके बाद चर्चा है कि सेराघाट के निकटस्थ बागेश्वर जनपद अंतर्गत वन भूमि हस्तांतरित हो चुकी है, जहां विस्थापन होगा। बहरहाल आज तक आपदा पीड़ित परिवार संकट में हैं। कुछ क्षतिग्रस्त व खौफजदा मकानों को सहारा बनाए हुए हैं। आठ परिवार एक जूनियर हाईस्कूल में शरण लिये हैं। कुछ परिवार अपने नाते-रिश्तेदारों व कुछ अन्य घरों का सहारे हैं।

इसके अलावा छह साल पहले ही प्रकृति के कहर ने अल्मोड़ा के करीब बल्टा, बाड़ी, देवली गांवों में तबाही मचाई। बादल फटने से डेढ़ दर्जन लोग काल के मुंह में समा गए। कई घर जमींदोज हुए और कृषि भूमि नेस्तनाबूद हो गई। तब तमाम नेता प्रभावितों के जख्मों में मरहम लगाने पहुंचे। वायदे किए और अपनत्व जताया, मगर हासिल सिफर रहा। नियम के अनुसार मुआवजा मिला।
तब इन गांवों के प्रभावितों को आपदा क्षेत्र के कुछ ही निकट एक खेत में हटाया गया। इसके बाद किसी सुरक्षित जगह पर स्थाई पुनर्वास नजरअंदाज ही रहा। अपनी खेती गवां चुके लोगों को खेती योग्य जमीन मिलना तो सपना है। इन गांवों को बरसात आज भी डराती है, मगर सुरक्षा के ठोस उपाय भी हासिए पर हैं।

हालांकि, विस्थापन के लिए भूमि चयन को लेकर दोनों ही जिलों के अधिकारियों द्वारा फाइलें दौड़ाई गई। लेकिन, प्रशासन ने कहीं भूमि विवाद तो कहीं भूगर्भीय सर्वेक्षण में जमीन के उपयुक्त न पाए जाने की बात कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। यही नहीं, जिन प्रतिनिधियों पर आपदा प्रभावितों का भरोसा था, उन्होंने भी संकट के वक्त अकेला छोड़ दिया। फिर चाहे वह अल्मोड़ा हो या बदरीनाथ विस क्षेत्र के प्रतिनिधि रहे हों या थराली और कर्णप्रयाग विस क्षेत्र के  हों या रुद्रप्रयाग अथवा केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र के सभी की कमोवेश हालत एक जैसी ही है।

चमोली जिला प्रशासन के स्तर से हुई कार्रवाई की बात करें तो वह अब तक आपदा प्रभावित 78 गांवों की कैटेगरी तय करने से आगे नहीं बढ़ पाया। इनमें 17 गांवों को अत्याधिक संवेदनशील, 20 को अति संवेदनशील और 41 को संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया है।

बदरीनाथ विस क्षेत्र के चमोली तहसील में पिलंग, सैकोट का नगाड़ी तोक, टेंटुणा, रोपा, बछेर का गांधीग्राम, लासी, मंजू लग्गा बेमरू, छिनका चमेली, लांखी, पोखरी में बंगथल के दो परिवार, गुड़म, गोदली ग्वाड़ का दगण्याणा तोक, सलना का बूंगा तोक, नोठा थालाबैंड, कोडला, ऐरास का सेनवाला तोक, जोशीमठ तहसील में गणाई दामड़मी, भ्यूंडार पुलना, पांडुकेश्वर का गोविंदघाट तोक, अरुड़ी-पटूड़ी का लामबगड़ तोक, द्वींग, करछों पल्ला, जखोला, किमाणा, मोल्टा, भेंटा का पिलखी तोक, टंगणी मल्ली, टंगणी तल्ली, पैंया चोरमी, सलूडु डुंग्रा का छेकुड़ी तोक, उर्गम तल्ला का बडङ्क्षगडा तोक, हनुमानचट्टी का घृतगांव तोक, पाखी, ल्यारी थेंणा, चांई, रेगड़ी, बडग़ांव का कखरोड़ी तोक, परसारी का पुनागैर तोक, कलगोठ का उच्छोंग्वाड़ तोक, चमतोली, तपोवन, लाता, तपोंण, देवग्राम, भर्की और डुमक।

कर्णप्रयाग विस क्षेत्र के तहसील गैरसैंण में देवपुरी, सनेड़ लग्गा जिनगोड़, कुसरानी बिचली, खाल लग्गा कुनखोली, कर्णप्रयाग तहसील में डिम्मर का रियालगांव तोक, गैरोली तल्ला, मैखुरा, नौसारी और दियारकोट।

थराली विस क्षेत्र के तहसील थराली में भ्याड़ी छपाली, त्यूंला, नौंणा, केवर तल्ला, सोना का कुल्याड़ी तोक, बूंगा का सेरा तोक, बेडगांव, अठडू, सेरा विजयपुर, राडीबगड़, घाट उप तहसील में नारंगी, कनोल, सरपाणी, सिन्ना तोक, पेरी पल्टिगधार, चमोली तहसील में नैथोली, लस्यारी, पलेठी का भरसैंजी तोक और सरतोली।

हालांकि, फरकंडे (गैरसैंण) गांव के लोग सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें गांव के पास ही विस्थापित कर दिया गया। आपदा प्रबंधन महकमा अब अत्याधिक संवेदनशील गांवों का दोबारा सर्वे कर रहा है। ऐसे में साफ है कि आपदा प्रभावितों का विस्थापन अब भी चुनावी मुद्दे तक ही सीमित रहेगा लेकिन यह मुद्दा राजनीतिक दलों की प्रमुखता से गायब नज़र आ रहा है ।

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