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उत्तराखण्ड “विधान सभा चुनाव की समीक्षा” और हरीश रावत 

मदन मोहन ढौंडियाल

यदि कोई मुझसे पूछे कि -उत्तराखण्ड विधान सभा चुनावों में हरीश रावत इतने संगीन आरोपों के बाद भी अन्य दलों पर भारी पड़ रहे हैं और जेल में क्यों नहीं है तो ,मेरा उत्तराखण्ड की सक्रिय राजनीती के आंकलन के बाद एक ही उत्तर होगा और वह है कमजोर प्रतिपक्ष का होना ।वह पतिपक्ष जिसने उत्तराखण्ड के विषयों पर राज्य के समझदार लोगों से कभी राय लेने की कोशिस ही नहीं की है। बेजान दारूवाला ज्योतिष में कितना पारंगत है, वह तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन समय से पहले उन्हें राजनीतिक आंकलन की पहचान जरूर रही होगी और इसी लिए 2017 के लिए उन्होंने हरीश रावत का उत्तराखण्ड की गद्दी पर राजतिलक कर डाला है। यहाँ पर इस बात का ध्यान जरूर देना में यह बात हरीश रावत के प्रचार के लिए नहीं कर रहा हूँ, ऐसे भी कांग्रेस से मेरा तथा मेरी पार्टी का ,छत्तीस का आंकड़ा रहा है।

हरीश रावत को उत्तराखण्ड में आज किसी भी अन्य भारत के कांग्रेसी की जरुरत नहीं है ,और वह अपने दम पर भारी भरकम लोगों से टक्कर ले रहा है। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व भी जिस प्रकार समकालीन वरिष्ठ कांग्रेसी नेता माननीय प्रणव मुखर्जी, से डरा था ,उसी तरह हरीश रावत के पार्टी में बढ़ते कद से कांग्रेस भी डरी हुई है। उत्तराखण्ड में प्रतिपक्ष बीजेपी का राजनीतिक विषयों पर गंभीर नहीं रहना उसके लिए वर्तमान में चुनॉतीयां खड़ी कर रहा है। इसमें बीजेपी अगर केंद्र से बड़े लोगों को लगाए तब भी उनको इतना आसान नहीं होगा। यह हरीश रावत का अच्छा भाग्य रहा है कि उन्हें इस प्रकार राज्य में राजनीतिक वातावरण मिला है। प्रतिपक्ष पर उत्तराखण्ड की जनता निम्न लिखित प्रश्न उठाते रही है , इससे प्रतिपक्ष बीजेपी को कुछ सीख लेनी पड़ेगी, अगर वे नहीं लेते हैं तो भारत प्रजातान्त्रिक देश है , कोई किसी को बाध्य नहीं कर सकता है। आप भी इन यक्ष प्रश्नावली और उनके संभावित उत्तरों को समझिये तथा अपनी राय राज्य के हित को देखते हुए जरूर लिखिए –

1- उत्तराखंड किसने बनाया और क्यों बना ?यह सच है कि -उत्तराखण्ड राज्य बनाना देश की मज़बूरी थी , क्योंकि जनाक्रोष को रोक पाना समकालीन सत्ताधारियों के बस से बाहर हो गया था। अगर कोई नेता या दल कहे सिर्फ हमने उत्तराखण्ड निर्माण में भागीदारी निभाई है तो यह उनकी भूल है , जनता सब समझती है प्रत्येक उत्तराखंडी ने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से इस लड़ाई को लड़ा था। अगर आंदोलन की सूची में जान पहचान से किसी ने नाम दर्ज करा दिया तो वह अलग बात है। जो लोग शहीद हुए , विभिन्न संघर्षों में घायल हुए या जिन पर अमानवीय बलात्कार जैसे काण्ड हुए उनको पूरा राज्य नमन करता है और करता रहेगा। इस पर मैं एक पुस्तक लिखने जा रहा हूँ , शायद उससे लोगों को जमीनी सच का पता चल जायेगा।

2- उत्तराखंड राज्य के निर्माण में बीजेपी ने किस तरह राजनीतिक लाभ लिया और फिर क्यों सुस्त पड़ गयी ? बीजेपी के प्रति उत्तराखंड के लोगों की सहानुभूति थी, क्योंकि उन्होंने मुज्जफर नगर काण्ड का बिरोध किया था , लेकिन इस काण्ड में संग्लग्न राजनीतिक और प्रशासनिक जबाबदेह लोगों को सजा दिलाने में वह नाकाम रही , अब तो उस कांड के कुछ अधिकारी बड़े पदों पर हैं अथवा रिटायर हो गए हैं। समकालीन अपराधी छवि के नेता और उनके उत्तराखंडी गुरु अब राजनीती से बहिष्कृत हो कर जीवन के आखिरी पड़ाव में हैं। लखनऊ में बैठे समकालीन डौन से बीजेपी नेताओं के मधुर सम्बन्ध या उसकी धूर्तता में पेट्रोल फेंकने वाले बीजेपी के दिल्ली के बंद कमरों में बैठे नेताओं के बारे में प्रत्येक उत्तराखंड का जागरूक नागरिक आज भी अच्छी तरह जानता है।

3- हरीश रावत का कांग्रेस और उत्तराखंड में राजनीतिक कद कैसे बढ़ा ?पिछले लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस में सिर्फ एक जिंदादिल कांग्रेसी बचा है, वह है हरीश रावत जो अब कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की आँखों की किरकिरी बन चुका है। कांग्रेस में एक बीमारी रही है वहां अगर किसी का कद बढ़ता है तो उसे कांग्रेसी समकालीन वरिष्ठ कांग्रेसी नेता माननीय प्रणव मुखर्जी की तरह राष्ट्रपति बना देते थे या कोने में फेंक देते थे । इस बार यह बात हरीश रावत के पक्ष में गयी है। इसका कारण है केंद्र में कांग्रेस का सत्ताहीन होना। आज अगर हरीश रावत अपनी अलग पार्टी बना कर मैदान में उतरते है तो भारत में एक नए राजनीतिक युग की शुरुवात होगी।

4- क्या उत्तराखंड की स्थाई राजधानी पर बीजेपी गंभीर रही है? गैरसैण के मुद्दे और पहाड़ की धड़कती धमनी पर हाथ रख कर हरीश रावत ने पहाड़ क्या दिल्ली पर अपनी पकड़ मजबूत कर दी है वहीँ बीजेपी के नेता इस मुद्दे को भुनाने में नाकाम रहे।

5- उत्तराखंड में राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की पकड़ का कमजोर होना ,क्यों रहा? बीजेपी में आज सभी दिग्गज धनाड्य हैं जिनके पास तक पहुंचना बोटरों के बस की बात नहीं है। नई पीढ़ी पढ़ी लिखी और अधिकांश बेरोजगार है , दुनिया की दौड़ में चलने के लिए उत्तराखंड को रोजगार चाहिए। उत्तराखंड में रोजगार के प्रति कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की तरह उत्तराखंडियों को बीजेपी का रवैया भी लग रहा है। हरीश रावत ने जगरियाओं , परित्यक्ताओं , विधावाओं और कलाकारों की पेन्शन से उनका जनता के बीच विश्वास बढ़ाया है और खूब प्रशंसा पायी है।

6- लोगों के प्रश्न हैं – अगर हरीश रावत और उसके विधायक अपराधी हैं तो वे अभी तक जेल क्यों नहीं गए ? कांग्रेस से बीजेपी में गए बागियों का पिछला रिकार्ड क्या सही है ? अगर गलत था तो बीजेपी ने उन्हें पार्टी में ले कर टिकट क्यों दिए ?

7- क्या किसी के पास यह उत्तर है हर शाख पर उल्लू बैठा है , उत्तराखंड का क्या होगा ?अगर राजनीती में दोनों राष्ट्रीय पार्टियां प्रदूषित हैं , अधिकांश क्षेत्रीय पार्टियां रिमोट से चलती हैं और अन्य राष्ट्रीय पार्टियां सिर्फ नाममात्र की हैं, तो इसमें क्या बुरा है -जो पहाड़ के लिए काम कर दे वही सही सिंहराम है।

8- अब उत्तराखंड को ऐसी बिकट राजनीतिक परिस्थितियों कैसी विकासवादी राजनीती चाहिए ?अगर उत्तराखंड को साफ़ सुथरी राजनीती चाहिए तो ईमानदार , मेहनती , गरीब , ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्डियों को राजनीती में ला कर राज्य की बिभिन्न परेशानियों और समस्याओं से लड़ना पड़ेगा।

9- क्या उत्तराखण्ड में पारिवारिक राजनीती जन्म ले रही है ? देहरादून या दिल्ली में बैठ कर उत्तराखण्ड के बारे में सोचना एक बेईमानी है। यही लोग अपने लोगों को राजनीती में डालने का काम करते रहे हैं और वर्तमान में कर भी रहे हैं।

10 – हरीश रावत की कांग्रेस हो या बीजेपी वाली कांग्र्रेस किसी के पास पलायन रोकने का जमीनी रोड मैप है ? पता चला है जो है भी तो कागजी है।

समीक्षाएं जारी रहेंगी। यह मेरा एक सैनिक धर्म भी है।

(लेखक एक भूतपूर्व सैनिक भारतीय सेना तथा सेवानिवृत सदस्य अर्द्ध सैनिक बल , गृह मंत्रालय , भारत सरकार , प्रान्तीय अध्यक्ष आजाद भारत कांग्रेस , उत्तराखंड राज्य)

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