दो जनरलों के बीच फंसे महंत दिलीप रावत
लैंसडौन विधानसभा सीट……….
दोनों जनरलों की जुगलबन्दी से विचलित है विधायक दिलीप
टीपीएस के कारण भाजपा बदल सकती है प्रत्याशी
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
इस बार भाजपा नेतृत्व लैसडौन सीट को लेकर बेहद गंभीर है। बताया जाता है कि चाहे एल0आई0यू0, आई0बी0 की सर्वे की रिपोर्ट हो या भाजपा की सर्वे रिपोर्ट टीपीएस का नाम ईमानदार व स्वच्छ छवि व वजनदार जिताऊ प्रत्याशी के रूप में सबसे आगे चल रहा है। भारी भरकम सियासी कद होने के कारण जनरल टीपीएस रावत का चुनाव जीतना लगभग तय माना जा रहा है। टीपीएस की लोकप्रियता के आगे क्षेत्रीय विधायक दिलीप सिंह रावत बेहद पिछड़ चुके है। इस रिपोर्ट से जहां कांग्रेसियों में खुशी की लहर है वहीं लैंसडौन सीट पर संभावित हार की शंका के चलते भाजपा नेतृत्व बेहद असमंजस की स्थिति में है। पिछले 2012 के विधानसभा चुनावों में दिलीप रावत भले ही खण्डूड़ी की लहर व कृपा के चलते विधायक बन गये हो परन्तु इस बार सारी परिस्थितियाँ उनके उलट है। पांच वर्ष के कार्यकाल में कोई विशेष उल्लेखनीय उपलब्धियाँ उनके खाते में दर्ज नहीं हो पायी है। दूसरी ओर खण्डूड़ी समर्थकों का भारी संख्या में जनरल टीपीएस रावत की ओर जाना चिन्ताजनक है। चूंकि जनरल खण्डूड़ी के बाद जनरल टीपीएस रावत ही उत्तराखण्ड की राजनीति में एक ईमानदार व स्वच्छ छवि के नेता माने जाते हैं। जनरल खण्डूड़ी के लिए 2007 में विपक्षी होने के बाजवूद सीट खाली करने का व 2011 में अन्ना हजारे के आन्दोलन से प्रभावित होकर उत्तराखण्ड में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक अलग र्मोचा खोलने का जो साहस जनरल टीपीएस रावत ने किया था उससे आज भी कई लोग बेहद प्रभावित हैं जिस कारण वह टीपीएस रावत के अच्छे नेता के तौर पर सम्मान देते हैं।
इस बार लैंसडौन सीट पर सिटिंग विधायक दिलीप सिंह रावत दो जनरलों के बीच फंस चुके हैं एक ओर दिलीप रावत के सामने जनरल (से0नि0) टीपीएस रावत की दमदार चुनौती है तो दूसरी ओर पूर्व सी.एम. व क्षेत्रीय सांसद जनरल (से0नि0) बी0सी0 खण्डूड़ी की नराजगी दूर करने की चुनौती है। उस पर तुर्रा ये कि दोनों जनरलों की आपस में बहुत ही अच्छी ट्यूनिंग है। दोनों जनरल वैचारिक रूप से बहुत ही परिपक्व हैं व एक दूसरे का बेहद सम्मान करते हैं। अलग-2 पार्टियों में होने के बावजूद उन्होंने कभी भी एक दूसरे खिलाफ राजनीतिक अभद्र बयानबाजी नहीं की। खूण्डूड़ी को दो बार मुख्यमंत्री बनाने के लिए जनरल टीपीएस रावत का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अहम योगदान रहा है। एक बार तब, जब 2007 में किसी भी भाजपा विधायक ने तत्कालीन मुख्यमंत्री बी0सी0 खण्डूड़ी के लिए अपनी विधानसभा सीट खाली नहीं कि तब जनरल टीपीएस रावत ने भी अपने क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता देते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री के लिए अपनी धुमाकोट सीट खाली कर उनके लिये मुख्यमंत्री बनने का रास्ता प्रशस्त किया था।
पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार विधायक दिलीप रावत से बहुत से कार्यकर्ता बेहद नाराज बताये जा रहे हैं। खण्डूडी समर्थकों को भी भारी संख्या इस बार टीपीएस के पाले में जाने के लिए तैयार है। इस बार खण्डूड़ी फैक्टर भी नहीं चल रहा है व स्वयं खण्डूड़ी भी विधानसभा चुनाव में हुई अपनी शर्मनाक को लेकर भारत सिंह रावत व दिलीप रावत से बहेद नाराज बताये जा रहे हैं। शायद यही कारण है कि लैसडौन विधानसभा के नैनीडांडा व रिखणीखाल ब्लाॅक में आयोजित भाजपा की परिवर्तन रैली में नाराजगी के चलते शामिल नहीं हुये। माना जाता है कि खण्डूड़ी तो 2012 में भी दिलीप रावत के टिकट देने के पक्ष में कतई तैयार नहीं थे, परन्तु उनके पिता भारत सिंह रावत के बहुत जोर देने व जिद्द के चलते विवश होकर उन्हें को ना चाहते हुये भी दिलीप रावत को टिकट देना ही पड़ा। तब 2012 के विधानसभा में खण्डूड़ी अपनी नाराजगी के चलते एक बार भी लैसडौन विधानसभा में दिलीप रावत के पक्ष में वोट मांगने व उसका प्रचार करने बिल्कुल नहीं गये।
खण्डूड़ी की मदद से बिना जीते दिलीप, खण्डूड़ी खुद हारे चुनाव-
हालांकि तब दलीप रावत खण्डूड़ी की मदद के बिना भी चुनाव जीत गये जबकि खण्डूड़ी अपनी सारी ताकत लगाकर भी कोटद्वार से चुनाव हार गये। दरअसल तब भारत सिंह रावत व उनके पुत्र दिलीप रावत की ओर से किसी भी प्रकार की अपेक्षित सहायता कोटद्वार विधानसभा चुनाव में खण्डूड़ी को नहीं मिल पाई। दिलीप रावत को टिकट मिलने से भारत सिंह रावत व दिलीप रावत के कोटद्वार में सारे समर्थक दिलीप रावत को चुनाव जिताने लैंसडाउन चले गये व खण्डूड़ी बेचारे अकेले ही चुनावी मोर्चें पर सुरेन्द्र सिंह नेगी व शैलेन्द्र रावत की जुगलबन्दी से जूझते रहे। तब लगातार चुनाव जीतने वाले भवनचन्द्र खण्डूडी पर मुख्यमंत्री रहते व प्रोजेक्ट होते हुए अपने पूरे राजनीतिक जीवन में पहली बार बेहद शर्मनाक हार को कभी न मिटने वाला बदनुमा धब्बा लगा था।
इस शर्मनाक हार के चलते जनरल खण्डूड़ी तब से शैलेन्द्र रावत, भारत सिंह रावत व दिलीप रावत से बहेद नाराज रहने लगे व उनसे लम्बी दूरी बनानी शुरू कर दी। इस बार भी खण्डूड़ी के दिलीप रावत के पक्ष में खड़े ना होने के संकेत मिल रहे हैं जिसके चलते दिलीप रावत को भाजपा से टिकट मिलना बेहद चुनौती पूर्ण माना जा रहा है। टिकट कटने की सम्भावना के चलते दिलीप रावत के समर्थक एकजुट होकर प्रत्याशी डाॅ0 हरक सिंह रावत, दीप्ति रावत या रितु खण्डूड़ी जैसे सम्भावित प्रत्याशी का जोरदार विरोध कर रहे हैं। 05 दिसम्बर 2016 को कोटद्वार में आयोजित प्रेस वार्ता में रिखणीखाल की ब्लाॅक प्रमुख लक्ष्मी रावत, ज्येष्ठ उपप्रमुख जशोदा देवी, जयहरीखाल के ब्लाॅक प्रमुख पप्पू देवी, वीरौंखाल की ब्लाॅक प्रमुख कविता देवी सहित विधायक दिलीप रावत के समर्थकों ने लैंसडौन सीट पर किसी भी बाहरी प्रत्याशी को टिकट देने की स्थिति में जोरदार विरोध करते हुए भाजपा से बगावत कर दिलीप रावत को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जिताने की चुनौती व कड़ी चेतावनी दी है। डाॅ0 हरक सिंह रावत व उनकी धर्मपत्नी दीप्ति रावत को भाजपा से टिकट मिलने की संभावनाओं के चलते दिलीप रावत के समर्थकों में बेहद आक्रोश हैं।
हालांकि ऐसे समय में भारत सिंह रावत का मुख्यमंत्री हरीश रावत के प्रति राजनीतिक प्रेम उनके पुत्र दिलीप रावत के राजनीतिक संकट में एक नई उम्मीद जगा सकता है। क्योंकि हरीश रावत मुख्यमंत्री बनने के तीन महीने बाद ही भारत सिंह रावत ने मीडिया में उनके कार्यों की प्रशंसा करनी शुरू कर दी थी। उसके बाद भी कई मौकों पर वे मुख्यमंत्री हरीश रावत की तारीफों के पुल भी बांध चुके हैं। यदि भारत सिंह रावत मुख्यमंत्री हरीश रावत से अपने पुत्र के राजनीतिक भविष्य की सुरक्षा के लिए हाथ मिलाकर ‘हाथ’ का सहारा ले लें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
इस समय विधायक दिलीप रावत दो मोर्चों पर जूझ रहे हैं। एक मोर्चे जनरल टीपीएस रावत है जिनसे उन्हें भारी चुनौती मिल रही है तो दूसरे मोर्चे पर जनरल खण्डूड़ी है जिन्हें भाजपा से दुबारा टिकट पाने के लिये अपने पक्ष में मनाना बेहद जरूरी है। जनरल खण्डूड़ी की नाराजगी के बारे में तो कहा जाता है कि वे यदि एक बार किसी से नाराज हो जो तो वे किसी भी कीमत पर आपसे स्वाभिमान के साथ उनकी नाराजगी को दूर करना बेहद टेड़ी खीर है।
खण्डूड़ी की इस नाराजगी व अड़ियल रूख के चलते लैंसडौन राजेश ध्यानी, मोहन सिंह गांववासी, अनिल नौटियाल, मनोहर कांत ध्यानी व केदार सिंह फोनिया जैसे दिग्गज आज राजनीतिक हाशिये पर पहुंच चुके हैं और तो और तीरथ सिंह रावत जैसे नेता जो कभी खण्डूड़ी के ‘दत्तक पुत्र’ समझे जाते थे। आज उन्हें भी खण्डूड़ी की नाराजगी के चलते अपनी ही टिकट के लाले पड़े हुये है। तीरथ सिंह रावत की एकमात्र गलती इतनी सी थी कि उन्होंने भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष रहते हुये। खण्डूड़ी की इच्छा के विरूद्ध कोटद्वार के पूर्व विधायक शैलेन्द्र रावत (जिन्हें खण्डूड़ी ने कोटद्वार में हुई अपनी शर्मनाक हार के लिये जिम्मेदार मानते हुये भाजपा से निष्कासित करा दिया था) की वापसी पुनः भाजपा में करवा दी थी। कभी तीरथ सिंह रावत के पीछ चट्टान की तरह खड़े रहने वाले जनरल खण्डूड़ी ने अब तीरथ सिंह के ऊपर से भी अपना वरदहस्त हटा लिया है। जनरल खण्डूड़ी ने जिस तीरथ सिंह को पुत्र के समान कभी विधायक, कभी मंत्री, कभी दायित्वधारी तो कभी भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया उसी ने खण्डूड़ी की इच्छा के विपरीत उनके धुर विरोधियों की भाजपा में पुनः वापसी करवा दी। माना जा रहा है कि तीरथ सिंह से भी बेहद खफा चल रहे खण्डूड़ी ने अब चैबट्टाखाल से तीरथ सिंह की जगह अमृता रावत को भाजपा से टिकट देने पर अपनी मौन सहमति दे दी है। जनरल खण्डूड़ी लैंसडौन सीट पर कोई भी मास्टर स्ट्रोक खेलकर राजनीति में कईयों को झटका दे सकते हैं। कहीं ऐसा न हो कि जनरल खण्डूड़ी अपने लिए पूर्व में जनरल टीपीएस रावत द्वारा किये गये त्याग व अप्रत्यक्ष मदद का ऋण चुकाने के लिए लैंसडौन में उन्हें भाजपा का खेवनहार भी बना सकता है।
अब ऐसा लगता नहीं कि खण्डूड़ी अपनों (भारत सिंह रावत, दिलीप रावत, शैलेन्द्र रावत व तीरथ सिंह रावत) से मिले धोखे व जख्मों को भुला कर उनके लिये पार्टी से टिकट देने की पैरवी कर पायेंगे। आखिर अपने राजनीतिक जीवन में हमेशा सफलता व शीर्ष पर रहने का सुख भोगने वाले जनरल खण्डूड़ी को अपने राजनीतिक जीवन के अन्तिम पड़ाव में अपनों से ही इतने बड़े धोखे व शर्मनाक हार का जख्म मिलेगा। ऐसा तो स्वयं जनरल खण्डूड़ी ने भी कभी नहीं सोचा होगा।