DEHRADUNUttarakhand

!राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विकास यात्रा और युवा चेतना!!

!राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विकास यात्रा और युवा चेतना!!

(कमल किशोर डुकलान ‘सरल’)

स्वामी विवेकानंद का ध्येय वाक्य उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक रुको मत। जिस राष्ट्र के युवा स्वामी विवेकानंद के इस ध्येय वाक्य को आत्मसात करते हैं,उस राष्ट्र का भाग्य भी जाग उठता है। यह सत्य केवल विचार नहीं, बल्कि भारत के इतिहास की धड़कन है। जब-जब युवा पीढ़ी ने अपने जीवन को राष्ट्र के लिए समर्पित किया है, तब-तब समाज ने नवचेतना पाई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उदय इसी भावभूमि पर हुआ।…..

जिस राष्ट्र के युवा शक्ति स्वामी विवेकानंद के उतिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत के विचार को आत्मसात करती है, उसका भाग्य भी जाग उठता है। यह सत्य केवल एक विचार नहीं,बल्कि भारत के इतिहास की धड़कन है। जब-जब युवा पीढ़ी ने अपने जीवन को राष्ट्र के लिए समर्पित किया है, तब-तब समाज ने नवचेतना पाई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उदय इसी भावभूमि पर हुआ। भारत गुलामी, विखंडन और हताशा में जब देश डूबा था तब संघ संस्थापक डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने सन 1925 की विजयादशमी को नागपुर में संघ की स्थापना की। आजादी के संघर्ष के दौर में डाक्टर हेडगेवार का अनुभव स्वतंत्रता की प्रथम शर्त संगठन है। उनके शब्द आज भी गूंजते हैं- ‘शक्ति का संचय तब होगा जब अनुशासन और संगठन होगा।’
स्वयंसेवक की संकल्पना संघ की आत्मा है। स्वयंसेवक वह है जो बिना किसी स्वार्थ,प्रांग प्रसिद्धि,यश, अपयश,महत्कांक्षा या प्रतिफल की अपेक्षा किये बिना समाज और राष्ट्र के लिए अपने तन,मन और कीमती समय को अर्पित करता है। उसका जीवन केवल निजी उपलब्धियों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह अपनी सांसों को भी मातृभूमि की सेवा का साधन बना देता है।
हिन्दू राष्ट्र-विचार, नैतिकता और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
संघ की विचारधारा के तीन दिव्य विचार स्तंभ है। हिन्दू राष्ट्र का विचार युवाओं को यह स्मरण कराता है कि भारत सिर्फ एक राजनीतिक इकाई नहीं,बल्कि एक जीवित संस्कृति थाती है। यह विचार उन्हें उनकी जड़ों से जोड़ता है और यह विश्वास जगाता है कि उनकी पहचान किसी पश्चिमी छवि से नहीं,बल्कि अपने परंपरागत मूल्य और गौरव से निर्मित होती है। नैतिकता युवा मन को यह सिखाती है कि प्रगति केवल विज्ञान या तकनीक की उपलब्धि से नहीं आती, बल्कि सत्यनिष्ठा, प्रमाणिकता निस्वार्थ बुद्धि,ईमानदारी और अनुशासन के अभ्यास से जीवन सार्थक बनता है। यह उन्हें आत्मकेंद्रित भोग से ऊपर उठाकर समाज और राष्ट्र की ओर उन्मुख करती है।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद युवाओं को यह एहसास कराता है कि भारत का अस्तित्व केवल भूगोल तक, तीज-त्योहार तक सीमित नहीं,बल्कि गीत,भाषा,उत्सव, कला-संस्कृति और लोक-परंपराओं की अखंड धारा है। यही वह शक्ति है जो उन्हें विविधता में एकता का अनुभव कराती है और भविष्य की राह पर आत्मविश्वास से खड़ा करती है। संघ के गीत में कहा भी गया है:-
” देश हमें देता है सबकुछ ,हम भी तो कुछ देना सीखें!” अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा था, संघ ने हमें यह सिखाया कि स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज का हित सर्वोपरि है। यही संस्कार आज के युवा भारत के लिए पथप्रदर्शक हैं।
संघ का विश्वास है कि राष्ट्रनिर्माण शिक्षा की नींव पर ही टिकता है। इसी उद्देश्य से विद्या भारती उत्तराखंड में विद्या मंदिर और शिशु मंदिरों का जाल प्रदेशभर में फैला है। विद्या भारती के विद्यालय आज प्रदेशभर में न्याय पंचायत स्तर तक लगभग 900 से अधिक विद्यालय संचालित हैं, जिनमें हजारों विद्यार्थी अध्ययनरत हैं और असंख्य शिक्षक संस्कारयुक्त शिक्षा के माध्यम से छात्रों के भावी भविष्य से निर्माण में लगे हैं। अगर उत्तराखंड विद्या भारती के कार्य विस्तार को देखें तो सीमांत चमोली जिले के सुदूरवर्ती नीतिमाणा से लेकर सीमांत जिला पिथौरागढ़ के धारचुला,मुनस्यारी तक संस्कारित शिक्षा का यह नेटवर्क पहुंचा है, जहां शिक्षा के साथ आत्मविश्वास और राष्ट्रीय चेतना का निरन्तर संचार हो रहा है। इन विद्यालयों के परीक्षा परिणामों पर नजर दौड़ाएं तो विद्या भारती के ये विद्यालय उत्तराखंड परिषदीय बोर्ड परीक्षाओं में वरीयता सूची में मेधाविता प्राप्त करने से लेकर छात्रों के चहुंमुखी विकास की ओर अग्रसर हैं। विद्या भारती के इन विद्यालयों का संस्कार युक्त वातावरण यहां प्रार्थना के स्वर,खेलों की हंसी और सेवा की भावना हर विद्यार्थी को यह सिखाती है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल करियर निर्माण नहीं,बल्कि चरित्र निर्माण है।
इसी प्रकार उत्तराखंड राष्ट्रीय सेवा भारती पिछले अनेक वर्षों से सेवा है यज्ञकुंड समीधा सम हम जलें! के भाव को लेकर झुग्गी-झोपड़ियों में संस्कार केन्द्रों से लेकर सिलाई केन्द्र, कम्प्यूटर प्रशिक्षण केन्द्रों के संचालन की भूमिका भी प्रेरणादायी है। आज सम्पूर्ण उत्तराखंड वर्तमान समय में आपदा की त्रासदी से ग्रसित है। हर स्वयंसेवक प्रभावित क्षेत्रों में भोजन और दवा के साथ वे सभी आवश्यक सामग्री के साथ वे प्रभावितों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं यह केवल सेवा नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति प्रेम और करुणा का जीवंत स्वरूप है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का कथन इसे पुष्ट करता है- भारत की असली ताकत उसकी युवा ऊर्जा में है, जब यह ऊर्जा सेवा से जुड़ती है तो चमत्कार होता है।
शाखा संघ की आत्मा है। खुले मैदान में खेल, व्यायाम, गीत, सुभाषित ,अमृत वचन और प्रार्थना से यहां अनुशासन और आत्मविश्वास का संस्कार मिलता है। गुरुजी गोलवलकर जी ने कहा था- शाखा केवल खेल का मैदान नहीं, यह राष्ट्र निर्माण की एक प्रयोगशाला है। आज भारत में शाखाओं का विस्तार गांव-गांव और नगर-नगर तक है। हाल ही के आंकड़े बताते हैं कि देशभर में अस्सी हजार से अधिक शाखाएं सक्रिय हैं। लाखों युवा प्रतिदिन इन शाखाओं में एक स्वर और एक लय में प्रार्थना और व्यायाम करते हैं।
पथ संचलन शाखाओं का उत्सव है। जब गणवेशधारी स्वयंसेवक एक लय और अनुशासन में सड़कों पर निकलता हैं,तो यह केवल सड़क पर चलना नहीं होता, बल्कि यह समाज को दिया गया सशक्त संदेश है- युवा संगठित हैं और राष्ट्र की रक्षा के लिए तत्पर है। यह दृश्य जनता को अनुशासन और एकता की शक्ति का सजीव दर्शन भी कराता है। शाखा में गाए जाने वाले गीत युवाओं को प्रेरणा और रोमांच से भर देते हैं।

राम कृष्ण की पावन धरती जो शक्ति संचार करे,
जन जन में बलिदान भावना कूट कूट कर नित्य भरे,
अर्जुन भीम शिवाजी जैसे गुण निर्माण कराने को,
शत शत नमन भारत भूमि को अभिनन्दन भारत माँ को
यह केवल गीत नहीं, बल्कि मातृभूमि के प्रति नमन और समर्पण का उद्घोष है।
संघ की सौ वर्षों की अनवरत यह यात्रा केवल स्मरण नहीं,बल्कि भविष्य की दिशा भी है। आज वैश्वीकरण की आँधी, उपभोक्तावाद की चकाचौंध,तकनीक का दबाव और नैतिक मूल्यों का क्षरण देश और समाज में अनेकों
चुनौतियाँ हैं। परंतु संघ का इतिहास कहता है कि हर संकट अवसर बन सकता है। आपातकाल हो या विभाजन की त्रासदी, स्वयंसेवकों ने हर समय सेवा और साहस का परिचय दिया है।
वर्तमान संघ प्रमुख मोहन भागवत जी का संदेश युवाओं के लिए स्पष्ट संदेश है-आज का स्वयंसेवक भले ही तकनीक और विज्ञान में दक्ष हो, परन्तु उसकी आत्मा भारतीय संस्कृति से जुड़ी रहे। यही संतुलन आधुनिक भारत की कुंजी है। गुरु गोलवलकर जी ने कहा था— युवक यदि राष्ट्र के साथ खड़ा हो जाए, तो भविष्य को कोई शक्ति रोक नहीं सकती। और यही भाव संघ गीतों में गूँजता है—
‘युग परिवर्तन की बेला में हम सब मिलकर साथ चलें,
देश धर्म की रक्षा के हित सहते सब आघात चलें’
जब यह गीत संघ की दैनिक शाखा में उठता है, तो भारत का युवा यह अनुभव करता है कि राष्ट्रनिर्माण की नींव केवल शक्ति पर नहीं, बल्कि शक्ति के साथ-साथ चरित्र और सेवा पर भी टिकी होती है। यही संगम उसे साधारण से असाधारण बनाता है और उसके भीतर वह चेतना जगाता है जो युग की दिशा को आलोकित करती है। इस युग की पुकार यही है—अपनी ऊर्जा को केवल व्यक्तिगत सफलता और अपने प्रांग प्रसिद्धि तथा अपने यश-कीर्ति तक सीमित मत करो, उसे मातृभूमि के पथ पर अर्पित करो। जब युवा आगे बढ़ता है, तो इतिहास की धारा बदलती है और समाज का वर्तमान व आने वाला कल दोनों ही आलोकित हो उठते हैं। और अंत में वही भाव, जो हर ह्रदय में स्पंदित है।

ग्रीन वैली गली नं 5 सलेमपुर, सुमन नगर, बहादराबाद (हरिद्वार)

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button
Translate »