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स्वतंत्रता के 75 वर्ष भारत के भविष्य की गौरवशाली यात्रा

आजादी का अमृत महोत्सव हमें यह स्मरण दिलाता है कि भारत प्राचीन काल से ही अपनी हजारों साल पुरानी सांस्कृतिक सभ्यता के वारिस था,जो समस्त वसुधा को एक परिवार मानती है और जो सबके कल्याण की कामना करती है। इससे स्पष्ट होता कि हमें एक ऐसे भारत का निर्माण करना है,जो दुनिया के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बने और उसका नेतृत्व करने की क्षमता से भी लवरेज हो।
स्वतंत्रता के 75 पूर्ण होने पर आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में भारत ने एक नए युग में प्रवेश कर लिया है। स्वतंत्रता के 75 वर्ष की भारत के भविष्य की गौरवशाली यात्रा यह उम्मीद जगाती है कि आने वाले समय में हम और अधिक तेज गति से आगे बढ़ेंगे और इस क्रम में उन हम आजादी के उन अमर बलिदानी और संविधान निर्माताओं के सपनों को भी साकार करेंगे, जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान निर्माताओं ने भी देखे और जिसे हमारी आज की पीढ़ी भी देख रही है। ये सपने हैं सक्षम,आत्मनिर्भर और समरस भारत का-एक ऐसा भारत, जिसमें सभी सुखी और समृद्ध हों और सबके बीच सद्भाव हो। भविष्य के भारत का निर्माण करने के लक्ष्य की ओर बढ़ते समय हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि हमारा केवल 75 साल पुराना भारत नहीं हैं। 14 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर अखण्ड भारत संकल्प दिवस के रुप देश के प्रधानमंत्री ने यह याद दिलाया कि भारतवासियों को विभाजन के दर्द को भूला नहीं जाना चाहिए। भारत का विभाजन केवल देश के लिए ही नहीं,दुनिया के लिए एक बड़ी त्रासदी था। इस त्रासदी ने जो सबक दिए, वे अविस्मरणीय है। इसी तरह हमें अपनी उस सांस्कृतिक थाती को भी हमें हमेशा याद रखना चाहिए, जो हमने अपनी सांस्कृतिक परंपराओं में संजोकर रखी है। हमारी संस्कृति और उसकी समृद्ध परंपराओं ने हमें विशिष्ट रूप में गढ़ा है,इसलिए हमें उनका स्मरण करते रहना चाहिए और खुद को समय की मांग के अनुसार एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ना है,
हम प्राचीन काल से ही हजारों साल पुरानी सांस्कृतिक सभ्यता के वारिस थे,जो समस्त वसुधा को एक परिवार मानती है और जो सबके कल्याण की कामना करती है। स्पष्ट है कि हमें एक ऐसे भारत का निर्माण करना है,जो दुनिया के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बने और उसका नेतृत्व करने की क्षमता से भी लवरेज हो।यह जरा भी कठिन काम नहीं है, लेकिन असंभव नहीं। असंभव को संभव बनाने की चुनौती उस क्षण आसान हो जाएगी,जब सम्पूर्ण राष्ट्र एकजुट होकर आगे बढ़ने के लिए कृतसंकल्पित हो। स्वाधीनता का अमृत महोत्सव भी इस संकल्प को एक शक्ति को जगाने में सक्षम हो,इसकी न केवल सबको कामना करनी चाहिए,बल्कि इसके लिए अपने-अपने स्तर पर प्रयास भी करने चाहिए। भारत का साझा प्रयास ही राष्ट्र की उन मुश्किलों को आसान करने का काम करेगा,जो घरेलू और बाहरी,दोनों मोर्चों पर हैं।ये मुश्किलें सीमित मात्रा में रहें, इसके लिए हर किसी को और विशेष रूप से हमारे राजनीतिक नेतृत्व को तत्पर रहना होगा। यह तत्परता हमारे राजनीतिक नेतृत्व के कार्य एवं व्यवहार में भी दिखनी चाहिए।
भविष्य के भारत का निर्माण करने और उसे निरंतर संवारने के लिए सबको मिलकर काम करना होगा। इस महायज्ञ में समाज के हर तबके का योगदान हासिल हो सके, इसके लिए हमारे राजनीतिक वर्ग को विशेष प्रयास करने होंगे। नि:संदेह वह ऐसा तब कर पाएगा,जब हम अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों का परित्याग करेंगे और राष्ट्र सर्वोपरि के मंत्र को सदैव याद रखेगा। यह ठीक नहीं कि जब यह अपेक्षा की जा रही है कि हमारा राजनीतिक वर्ग अपनी क्षुद्रता का परित्याग कर राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य का संधान करे,तब यह देखने को मिल रहा है कि वह अपने संकीर्ण हितों की पूर्ति में बुरी तरह उलझा है।जब भारत स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा हो ऐसे अवसर पर संसद के मानसून सत्र में हमारे माननीय सांसदों के व्यवहार से लगता है कि संसदीय नियमावली में हमारे माननीय सांसदों के लिए कोई नजीर स्थापित होनी चाहिए।जब भारत अपनी स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा हो, तब भारतीय राजनीति का विषाक्त होते दिखना शुभ संकेत नहीं है।
इसलिए और भी नहीं, क्योंकि राजनीति वह व्यवस्था है,जो देश को दिशा देने और उसे प्रेरित करने का काम करती है। बेशक समय के साथ हर व्यवस्था में सुधार आता है,लेकिन हमारी राजनीतिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुधार तीव्र गति से होना चाहिए,इसके लिए जनता को भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी होगी। इस जिम्मेदारी के अहसास के लिए स्वतंत्रता दिवस से बेहतर अवसर और कोई नहीं। आइए, इस अवसर का सदुपयोग करें और अपने शुभ संकल्पों से सफलता की एक नई गाथा लिखने का उपक्रम करें।

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