Uttarakhand

क्या पहाड़ पर चढ़ पाएंगे शिक्षक और चिकित्सक ?

राज्य निर्माण के 17 वर्ष बाद भी पहाड़ी जनपदों की तस्वीर है बदहाल

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून । उत्तराखण्ड के पहाड़ी जनपदों के कई विभिन्न स्वास्थ्य केन्द्रों एवं प्राथमिक वि़द्यालयों की दशा आज भी काफी दयनीय बनी हुई है और वहां की अव्यवस्थाएं तथा बच्चों के भविष्य को लेकर बड़ी चिंता अब भी बड़ा सवाल निश्चित रूप से सामने है। मौजूदा भाजपा सरकार ने राज्य के सदन में स्थानान्तरण विधेयक लाकर भले ही वाहवाही प्राथमिक दृष्टि से लूट ली हो, लेकिन फिलहाल तो वह प्रवर समिति के सुपुर्द किया गया है तथा विधेयक के सदन में पारित होने के बाद आखिर क्या यह विधेयक निस्वार्थ तथा पारदर्शी रूप में कार्य कर सकेगा?

राज्य निर्माण के 17 वर्ष का लम्बा समय गुजर जाने के बाद पहाड़ की स्थिति कई दृष्टि से दुखदायी बनी हुई है। पहाड़ बनाम मैदान बन चुके इस छोटे से राज्य में नौकरशाही ने हमेशा ही सरकारों को सियासी दबाव में लेने के हथकंडे अपनाये हैं और अक्सर मन माफिक तबादले करवाकर अपने-अपने वारे न्यारे करने का कार्य किया है। यही नही, दिलचस्प विषय यह भी सामने आता रहा है कि अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा मानकों को ताक पर रखकर प्रमोशन भी करवाये गये है। यह सब राज्य के लिए दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। तबादलों को लेकर ही पूर्व में सत्ता पक्ष व विपक्ष द्वारा एक-दूसरे पर आरोप व प्रत्यारोप का दौर चलता रहा है। पूर्व में तबादलों के खेल में धन बल भी अक्सर चला जिससे सरकार की खासी किरकिरी भी हुए बिना न रह सकी। चहेतों को आसानी के साथ मन माफिक स्थान पर तैनाती दे दी जाती थी। बावजूद इसके शिक्षा एवं स्वास्थ्य का स्तर पर्वतीय क्षेत्रों में गिरावट में ही चला आ रहा है। दुर्गम क्षेत्रों पर न ही अध्यापक और न ही चिकित्सक जाने को तैयार होते हैं। देखा यह गया है कि कभी राज्य सरकारों द्वारा चिकित्सकों व अध्यापकों के स्थानान्तरण यदि किये गये तो उनमें से कई ने नई ज्वाईनिंग ही नहीं दी, और कुछ मैडिकल संबंधी व अन्य अर्जी-फर्जी कागज लगाकर अपने तबादले निरस्त करा लिए।

राज्य के अन्दर पूर्व सरकारों के कार्यकाल के दौरान बड़े-बड़े पैमाने पर गुरूजनों तथा डॉक्टरों के तबादले होते रहे और साथ ही इन मामलों में भ्रष्टाचार की बू भी आती रही। चर्चाओं में खूब रहा कि दुर्गम क्षेत्रों में तैनाती से बचने के लिए धन का चढ़ावा करने का रास्ता अच्छा है। इसी फॉमूले को शायद कई ने अपनाना शुरू कर दिया था। यही कारण है कि आज राज्य के अन्दर पहाड़ के तमाम दुर्गम क्षेत्र शिक्षा और स्वास्थ्य से काफी अछूते नजर आ रहे हैं। अब 17 वर्ष का समय व्यतीत होने के बाद आखिरकार मौजूदा भाजपा की त्रिवेन्द्र रावत सरकार ने गत विधानसभा के सत्र में इसी स्थानान्तरण विधेयक को पटल पर रखकर अपनी साफ नीति को दर्शाने की नियत पूरी तरह से साफ कर दी है। इस विधेयक के सदन में पास होने के बाद तबादला नीति कुछ हद तक बेहतर ढंग से अपना कार्य कर सकेगी। साथ ही इस मामले में भ्रष्टाचार भी रूकेगा। सवाल एक यह भी है कि संबंधित कानून बन जाने के बाद आखिर क्या दुर्गम व दूरस्थ इलाकों में ये अध्यापक तथा डॉक्टर जाकर वहां पर बच्चों का भविष्य सुधार पाऐंगे और साथ ही मरीजों को अच्छा ईलाज मुहैया करा पाऐंगे।

devbhoomimedia

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