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मृत्युंजय की गलत नियुक्ति करने वाले अधिकारियों का क्यों न हो जवाब तलब ?

कहीं इसलिए तो नहीं किया किनारा कि जो …….

”गंजे” का कभी  ”नाक का बाल” हुआ करता था मिश्रा 

”गंजे” के हर ”राज” का था ”राजदार” और बन गया था मालदार 

राजेन्द्र जोशी 

देहरादून । आयुर्वेद विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार मामलों की विजिलेंस जांच के चलते जेल में बंद आयुर्वेद विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलसचिव मृत्युंजय कुमार मिश्रा की नियुक्ति को भले ही सरकार ने नियम विरुद्ध मान लिया हो और उसकी नियुक्ति को मंत्रिमंडल गलत मानते हुए उसे उसके मूल विभाग उच्च शिक्षा में वापसी कर दी हो लेकिन क्या अब इस नियुक्ति करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों अधिकारियों को कठघरे में खड़ा नहीं किया जाना चाहिए जिन्होंने आंख मूंदकर और तत्कालीन सरकार को झांसे में रखते हुए गलत तरीके से वर्ष 2016 में आयुर्वेद विश्वविद्यालय में कुलसचिव पद पर मृत्युंजय कुमार मिश्रा की नियुक्ति नियमविरुद्ध तरीके की थी।

चर्चा तो यह भी है कि सचिवालय में एक उच्च पदस्थ अधिकारी ”गंजे” का यह मिश्रा तत्कालीन समय ”नाक का बाल” हुआ करता था और उसके और मिश्रा के पारिवारिक सम्बन्ध ही नहीं बल्कि उससे कहीं आगे जाकर ”लें-देन” तक के सम्बन्ध भी थे, लेकिन बदली परिस्थियों ने दोनों परिवारों को अलग कर दिया क्योंकि मृत्यंजय मिश्रा और ”गंजे” के संबंधों का सबको पता चल चुका था और इन संबंधों की आंच ”गंजे” तक भी पहुँचने लगी थी जो सरकार को भी कई बार असहज करने लगी थी। इतना ही नहीं चर्चा तो यहां तक है कि ”मृत्युंजय मिश्रा” ”गंजे” के हर उस ”राज” का ”राजदार” हो गया था जिसमें दोनों ने बराबर माल कमाया था। ”केदारनाथ -हैली प्रकरण”इसका एक उदाहरण मात्र है।

इतना ही नहीं इन अधिकारियों ने तमाम नियम क़ानून को ताक पर रखते हुए मिश्रा को 6600 ग्रेड पे से सीधे 10 हजार ग्रेड पे के रूप में वेतनवृद्धि ही नहीं दी बल्कि इस नियुक्ति पर तत्कालीन कैबिनेट की मुहर भी नहीं लगवाई। मिश्रा की इस तरह की नियुक्ति से कई सवाल खड़े हो रहे हैं जो पहले भी उठते रहे हैं कि उत्तराखंड की नौकरशाही जो करे वो बहुत कम है यही कारण है पुरे देश में उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी को सरकार पर हावी होने के चर्चे चलते रहे हैं।

गौरतलब हो कि उच्च शिक्षा विभाग में कार्यरत मृत्युंजय कुमार मिश्रा को 13 जून, 2016 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने नियमों को ताक पर रखकर आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलसचिव पद पर नियुक्ति दी थी। चर्चा है कि यह नियुक्ति को तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री के नाक के बाल रहे मिश्रा को उनकी सेवा को देखते हुए पारितोषिक के रूप में दी गयी थी। इतना ही नहीं इस नियुक्ति को कैबिनेट से भी मंजूरी नहीं ली गई थी। यह भी चर्चा है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यह नियुक्ति जहां विचलन के आधार पर की वहीं स्वास्थ्य मंत्री ने मुख्यमंत्री पर दबाव बनाने के बाद की थी क्योंकि हरीश रावत सरकार उस दौरान तमाम अंतर्विरोधों से जूझ रही थी।

चर्चा है कि मंत्री के नाक का बाल रहे मृत्युंजय मिश्रा का उच्च शिक्षा विभाग में संविलियन समाप्त कर आयुर्वेद विश्वविद्यालय में कुलसचिव पद पर तैनात किए जाने के प्रस्ताव पर न तो कार्मिक और न वित्त सहित न्याय, गोपन सहित प्रशासकीय विभागों से पूछा तक नहीं लिया गया। जबकि उत्तराखंड के किसी भी अधिकारी और कर्मचारी के मामले में कभी ऐसा हुआ ही नहीं बल्कि उसके मामले को और उलझाया जाता रहा, यही कारण है कि उत्तराखंड मूल के अधिकाँश अधिकारियों ने प्रतिभा के होते हुए भी किनारा करने में ही अपनी भलाई समझी

इतना ही नहीं मृत्युंजय मिश्रा मामले में राजभवन कई बार यूजीसी की गाइडलाइन को नज़र अन्दाज करने और उसकी आयुर्वेद विश्वविद्यालय में नियुक्ति पर सवाल खड़े करता रहा। लेकिन शासन में बैठे ”पावरफुल”  ”गंजे” की शह पर राजभवन द्वारा भेजे गए पत्रों को कूड़े की टोकरी के हवाले कर दिया जाता रहा और ”गंजा” और मिश्रा की जोड़ी उत्तराखंड शासन की मलाई खाते रहे। इसके भी कई और उदाहरण हैं जिनमें मिश्रा का दिल्ली में अपर स्थानिक आयुक्त के पद पर ताजपोशी शामिल है

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