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आख़िर कब समझोगे ”महाराज” यह भाजपा है कांग्रेस नहीं

आख़िर क्यों कालीदास बने हो ”महाराज”, जिस डाल पर बैठे हो उसी को क्यों काटने पर तुले हो 

राजेन्द्र जोशी
एक-दो दिन से राज्य के एक ”महाराज” के खेमे से यह खबर उड़ाई जा रही है कि कुछ मंत्री दिल्ली पहुंचे हैं। वैसे तो दिल्ली पहुंचना कोई न तो नई बात ही नहीं है और किसी के दिल्ली आने जाने में रोक भी नहीं है। लेकिन ”महाराज” हैं जो बने बैठे हैं कालिदास जिस डाल पर बैठे हुए हैं उसी को काटने की कोशिश में पिछले पौने चार साल से जुटे पड़े हैं। लेकिन उन्हें नहीं पता वे अंतोगत्वा नुकसान उसी पार्टी का कर रहे हैं जिसने उन्हें उस डाल पर बैठाया हुआ है। लेकिन राज्य में अस्थिरता का माहौल बनाना है तो ऐसे लोगों को जान लेना चाहिए कि यह भाजपा है कांग्रेस नहीं।
चर्चाएं तो सरे आम यही है कि ”महाराज” जब वहां से तब वहां भी ऐसा ही करते रहे थे कभी हरीश रावत को हटाने की मुहिम में सवे शामिल दिखाई देते थे तो कभी विजय बहुगुणा को हटाने की मुहीम में जुटे हुए थी वैसे चर्चाएं तो उस दौरान भी यही थी कि ”महाराज” एनडी तिवारी जैसे भारी भरकम कद वाले नेता की भी कुर्सी हिलाने का प्रयास कालांतर में भी करते रहे लेकिन स्व. तिवारी का कद और वजन इतना बड़ा और ज्यादा था वे उनकी कुर्सी के करीब तक भी पहुँचने की हिम्मत नहीं जुटा पाए थे, और उस दौरान भी उनकी कोशिशें नाकाम साबित हुईं। 
अब जब से भाजपा की सरकार आई है और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कार्य करना शुरू किया है तब से ही चंडू खाने की खबर एक वर्ग विशेष के कैंप से उड़ाई जाती है जैसे मानो कोई अपनी डिमांड पूरी करने के लिए ब्लैकमेल करता है, वैसे ही समय-समय पर ऐसी खबरें प्रसारित करने से राज्य में हलचल पैदा होती है। ऐसे कुछ लोगों को समझ ही नहीं आ रहा कि त्रिवेंद्र सरकार को एक बार नहीं दसियों बार बड़े-बड़े मंचों से भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने ना सिर्फ सराहा है बल्कि उनके कार्यों की तारीफ भी की है। कई बार तो सिर्फ नेतृत्व में अगला चुनाव भी त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में ही लड़ने की बात भी खुले मंच से की है, हालांकि कार्यकर्ताओं को संबोधित बैठकों में मीडिया की एंट्री बंद होती है लेकिन मीडिया के सूत्र तो अंदर की सारी बातें बता ही देते हैं। तो अब बड़ा सवाल है कि बार-बार ऐसी चंडू खाने की खबरें क्यों उड़ाई जा रही हैं, और इस तरह की ख़बरों से किसका नुकसान होता है और किसको फायदा ? चर्चाएं तो यहां यह भी हैं कि ”महाराज” विपक्ष के एजेंट के रूप में तो कहीं भाजपा के भीतर घात तो नहीं कर रहे ?
वहीं यह चर्चा भी सत्ता के गलियारों से लेकर सचिवालय के भवनों तक चल रही है कि कुछ मंत्री तो अपने विभागों की सही प्रकार से समीक्षा भी नहीं कर पा रहे हैं अपने विभाग के कार्यक्रमों में प्रोटोकॉल जारी होने के बाद भी नहीं पहुंच रहे हैं, जबकि अपने विभाग की समीक्षा में दूसरे विभागों की समीक्षा कर लंबे लंबे भाषण देकर चलते बनते हैं तो ऐसे लोग क्या उत्तराखंड की बागडोर संभालेंगे ?

कहीं नड्डा की नसीहत के बाद तो अपनी कुर्सी नहीं बचा रहे

अभी हाल ही में पिछले हफ्ते राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का उत्तराखंड दौरा हुआ जिसमें उन्होंने नीचे बूथ कार्यकर्ता से लेकर ऊपर तक सभी से मेल मुलाकात की आखरी दौर में सरकार के कामों की समीक्षा हुई जिसमें मुख्यमंत्री के कार्यों को सराहते हुए जेपी नड्डा ने कई मंत्रियों की लेटलतीफी और अपने विभागों की पूर्ण जानकारी ना होना साथ ही मंत्रियों को अपनी विधानसभा तक ही सीमित रहने और राज्य का दौरान ना करने पर नसीहत दी थी, तो क्या यह माना जाए ऐसे मंत्री अपनी कुर्सी बचाने के लिए दिल्ली की दौड़ कर रहे हैं। जिसे वर्ग विशेष गुट सत्ता परिवर्तन से जोड़कर देख रहा है। या अन्य किसी कारणों से कोई दिल्ली जाता है तो उसे राजनीतिक घटनाक्रम से जोड़कर जानबूझकर प्रचारित किया जा रहा है। बरहाल जो भी दिल्ली दौरे पर जाते हैं उनको भी अपना एजेंडा निश्चित तौर पर जनता के सामने और सरकार के सामने रखना चाहिए कि वे दिल्ली क्यों गए थे और किस केंद्रीय मंत्री से किस काम से मिले और उनके इस काम से उत्तराखंड को क्या फायदा होगा क्योंकि ऐसे लोगों के द्वारा बार-बार अनिश्चितता के बादल मंडराने की कोशिश की जा रही है।

आखिर यह कोशिश बार-बार क्यों की जाती है

उत्तराखंडवासी राज्य गठन के बाद से लगातार देख रहे हैं कि किसी भी पार्टी की सरकार हो लेकिन सत्ता परिवर्तन की सुगबुगाहट हर सरकार के कार्यकाल में देखने को मिली है पंडित एनडी तिवारी इसके अपवाद है और दूसरा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जिनका 4 साल का कार्यकाल पूरा होने वाला है तो क्या समझा जाए राजनीतिक महत्वाकांक्षा पाले हुए नेता राज्य हित को ठेंगे में रखते हैं? अभी वर्तमान समय की बात की जाए तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कई ऐतिहासिक कार्यों को पूरा किया है जिनमें जन भावनाओं का सम्मान करना हो या राज्य में आर्थिक विकास दोनों ही मामलों में एक निश्चित अवधि में सफलता अर्जित की है। हां यह जरूर है कि कुछ राजनीतिक नेताओं की और सिंडिकेट के मंसूबों पर पानी जरूर फिरा है जो सिर्फ अपनी जेब भरने के लिए सत्ता के गलियारों में घूमते हैं यह वही लोग हैं जो हर सरकार में सक्रिय हो जाते हैं एक दल से दूसरे दल में भगोड़े बनकर आते हैं और अपनी स्वार्थ पूर्ति करते हैं।

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