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संकट में काम नहीं आया तो क्या अफसरों की मौज के लिए है स्थानिक आयुक्त कार्यालय

दिल्ली में स्थानीय आयुक्त कार्यालय के खर्चों को क्या झेल रही उत्तराखंड सरकार

लॉकडाउन में फंसे लोगों को उत्तराखंड भेजने के लिए समन्वय तक बना पा रहा स्थानिक आयुक्त कार्यालय

जब केंद्र और राज्यों से समन्वय का कार्य देहरादून से ही होना है तो स्थानिक आय़ुक्त कार्यालय की जरूरत क्यों

राज्य निर्माण आंदोलनकारियों ने सरकार ने दिल्ली में फंसे युवाओं को उनके घर भेजने की मांग को लेकर पत्र लिखा

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

देहरादून। दिल्ली स्थित उत्तराखंड का स्थानिक आयुक्त कार्यालय कोरोना संक्रमण की आपात स्थिति में पहले दिन से ही किसी काम नहीं आ सका। चाहे दिल्ली और अन्य राज्यों में लॉकडाउन में फंसे उत्तराखंड के प्रवासियों का मामला हो या फिर दुबई से टिहरी के युवक का शव उत्तराखंड पहुंचाने का मामला हो, कहीं भी स्थानिक आयुक्त कार्यालय ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। 
दिल्ली स्थित स्थानिक आयुक्त कार्यालय की भूमिका केंद्र सरकार और अन्य राज्यों के साथ समन्वय बनाकर उत्तराखंड के प्रवासियों और सरकार के मामलों का निस्तारण कराना है। देशभर में लॉकडाउन में फंसे उत्तराखंड के प्रवासियों को राज्यों के साथ समन्वय बनाकर उत्तराखंड लाने का कार्य देहरादून से ही हो रहा है।
केंद्र सरकार और राज्यों से समन्वय बनाकर प्रवासियों को परिवहन उपलब्ध कराने से लेकर उनके स्वास्थ्य परीक्षण, खान पान, ठहरने की व्यवस्था, उनके रेलवे टिकट बुक कराने में अभी तक स्थानिक आयुक्त कार्यालय की कोई भूमिका नजर नहीं आई। यहां तक कि रेल मंत्रालय से उत्तराखंड के लिए स्पेशल ट्रेने चलाने में मुख्यमंत्री स्तर से ही प्रयास किए गए। 
चलिए मान लेते हैं कि स्थानिक आयुक्त कार्यालय अन्य राज्यों से समन्वय नहीं बना सकता, पर क्या दिल्ली में लॉकडाउन में फंसे स्थानीय निवासियों के लिए भी उसके पास कोई राहत नहीं है। दिल्ली से बसों के माध्यम से प्रवासियों को उत्तराखंड पहुंचाने के मामले में कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका। सवाल उठता है कि क्या दिल्ली स्थित स्थानिक आयुक्त कार्यालय केवल अधिकारियों को सुविधाएं बांटने के लिए बनाया गया है।
राज्य निर्माण आंदोलनकारी नंदन सिंह रावत व अनिल पंत का कहना है कि अभी तक यह जानकारी नहीं है कि दिल्ली से प्रवासियों को लाने के लिए केंद्र सरकार, दिल्ली और उत्तराखंड सरकार के बीच क्या वार्तालाप चल रहा है। उत्तराखंड से कश्मीरी गेट, आनंद विहार से बसों को चलाने या ट्रेन से प्रवासियों को उत्तराखंड भेजने के मामले में क्या हो रहा है, कोई जानकारी तो मिले। 
उनका कहना है कि दिल्ली का स्थानीय आयुक्त कार्यालय निष्क्रिय भूमिका में है या फिर आपात स्थिति में उसकी कोई भूमिका नहीं है। अगर सरकार संकट के समय में भी स्थानिक आयुक्त कार्यालय को जिम्मेदारी नहीं दे रही है तो फिर दिल्ली में इतनी बड़ी बिल्डिंग, स्टाफ और अफसरों पर पैसा क्यों खर्च किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि राज्य निर्माण आंदोलन में प्रवासियों ने भी निस्वार्थ भाव से अपनी भूमिका निभाई थी। जब राज्य के मुख्यमंत्री को ही छोटे बड़े कार्यों के लिए दिल्ली जाना पड़ता है तो वहां प्रदेश के सांसदों और स्थानिक आयुक्त दफ्तर का क्या योगदान है।  
दिल्ली में लॉकडाउन में फंसे लोगों को घरों तक पहुंचाएं
रावत ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर दिल्ली में फंसे उत्तराखंड के छात्रों को उनके घरों तक पहुंचाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन की वजह से हजारों उत्तराखंडी छात्र और छात्राएं दिल्ली में फंसे हैं। ये छात्र-छात्राएं दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। ये पीजी में या फिर किराये पर कमरे लेकर विश्वविद्यालयों पढ़ रहे हैं या फिर परीक्षाओं की तैयारियां कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री को बताया कि वर्तमान में सभी शैक्षणिक संस्थान व कोचिंग इंस्टीट्यूट बंद हैं। इन युवाओं के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों की सरकारों की तरह दिल्ली में फंसे सभी युवाओं को उनके घरों तक पहुंचाने की व्यवस्था की जाए। 

devbhoomimedia

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