- किसी को नहीं पता एक अधिकारी हत्या के मामले में तो दूसरा चार साल तक कहाँ रहा गायब
- कर्ज में डूबे सूबे की नौकरशाही ने कर डाला 38 लाख का भुगतान
- 40 लाख रुपये और देने तैयारी के बाद खुला मामला
- तीन -तीन प्रोन्नतियाँ और करोड़ों का मालिक दूसरे विभाग का अधिकारी
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखंड की नौकरशाही जो कारनामा न कर दिखा दे वह कम है क्योंकि वह अगले और बड़े कारनामे करने की तैयारी में रहती है यही कारण है कि आज देश की नौकरशाही में उत्तराखंड के नौकरशाहों के चर्चे बुलंदियों पर हैं जिन्हें दिल्ली में भारत सरकार के डीओपीटी से लेकर देश के तमाम राज्यों की राजधानियों के सचिवालयों तक सरेआम चुटकियाँ लेते हुए सुना जा सकता है।
उदाहरण के लिए यहाँ दो मामलों का जिक्र किया जा रहा है पहला मामला तो राज्य के महत्वपूर्ण विभाग का है जिससे राज्य को राजस्व के रूप में साल भर में करोड़ों रुपये तो मिलते ही हैं साथ ही कई सफेदपोश नेताओं के लिए यह विभाग आय का साधन भी जुटाता रहा है । इसी विभाग में कार्यरत एक अधिकारी ने तो कमाल ही कर डाला है। तीन -तीन हत्या के मामले में दो -दो साल जेल की हवा खाने और सरकारी नौकरी से गायब रहने के बाद उत्तराखंड में सरकारी नौकरी पर होने के बावजूद कई प्रोन्नति तक पा चुका है और अब मलाईदार पद पर बैठा हुआ है, चर्चा तो यहाँ तक है कि यह इंस्पेक्टर से अधिकारी की कुर्सी तक पहुंचा यह चर्चित व्यक्ति आज कई सौ करोड़ का मालिक बन चुका है। जिसने अस्थायी राजधानी देहरादून सहित आस -पास के शहरों में काफी बड़ा इन्वेस्ट किया हुआ है।
वहीं एक अन्य मामला लेखा परीक्षा (ऑडिट) विभाग से जुड़े दूसरे अधिकारी का है जिसे जिला लेखा परीक्षा अधिकारी पद पर रहते हुए नवंबर 2013 में उत्तर प्रदेश के लिए रिलीव कर दिया गया था, लेकिन अब वह चार साल बाद वापस यहाँ लौटा है इस दौरान वह उत्तरप्रदेश में कहाँ रहा और उसने वहाँ नौकरी की भी कि नहीं उसका जवाब न तो उसके पास ही है और ना ही उत्तराखंड सरकार के पास ही। मामला तब खुला जब उसे गुपचुप तरीके से सेवा में वापस ले ही नहीं गया बल्कि चार साल से अधिक समय तक सरकारी सेवा से भी गायब रहने के बाद भी उसे 38 लाख रुपये का पूरा वेतन जारी कर दिया गया है।
इतना ही नहीं इस अधिकारी को वर्ष 2007 में उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार में वित्त अधिकारी के रूप में कार्यरत रहने के दौरान रिश्वत लेने के आरोप में रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया था, इतना ही नहीं इनको नवंबर 2013 में निलंबन अवधि में ही इन्हें उत्तर प्रदेश के लिए रिलीव कर दिया गया था जबकि यह मामला न्यायालय में विचाराधीन था और अभी भी चल रहा है। वहीं इस अधिकारी की ऊँची पहुँच का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनका नाम चार साल तक गायब रहने के बाद भी उत्तर प्रदेश की विभागीय प्रोन्नति सूची और वरिष्ठता सूची में 21वें स्थान पर है।
इतना ही नहीं अब उत्तराखंड में गुपचुप तरीके से ज्वाइनिंग के बाद और चार साल से अधिक अवधि तक गायब रहने के बाद भी सेवा में वापस लिए जाने वाले इस अधिकारी को अब एसीपी (एस्योर्ड कॅरियर प्रोगेशन) के रूप में 40 लाख रुपये और देने की तैयारी चल रही है। वह भी तब जब उत्तराखंड कैडर के अधिकारियों को इन चारसालों में कोई सेवा लाभ नहीं दिया गया है।लेकिन इनकी पहुँच के चलते इनको एसीपी देने के लिए कमेटी का भी गठन कर दिया गया है।