उत्तराखंड रंगमंच का शताब्दी नाट्योत्सव ”आवाहन 2016-17 श्रीनगर व द्वाराहाट में
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
नयी दिल्ली : उत्तराखंड में रंगमंच की एक सदी पूर्ण होने के अवसर पर अभिव्यक्ति कार्यशाला के बैनर तले उत्तराखंड रंगमंच शताब्दी नाट्योत्सव ”आवाहन 2016-17 मना रहा है। कार्यक्रम उत्तराखंड दोनों मण्डलों के सांस्कृतिक केंद्रों श्रीनगर व द्वाराहाट में आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की पहली कड़ी में गढ़वाल नाट्य महोत्सव 26 नवम्बर से 28 नवम्बर तक स्वामी मनमंथन सभागार केंद्रीय विद्यालय श्रीनगर व दूसरी कड़ी में यह कार्यक्रम 2 दिसम्बर से 4 दिसम्बर तक विपिन त्रिपाठी इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी द्वाराहाट, अल्मोड़ा में आयोजित होगा।
अभिव्यक्ति कार्यशाला के बारे में ……..
सामाजिक, सांस्कृतिक और रंगमंच से जुड़ी संस्था ”अभिव्यक्ति कार्यशाला”पिछले 31 सालों से आयोजनों माध्यमो से जनसरोकारों के लिए कार्यरत है। ”अभिव्यक्ति कार्यशाला ” अपनी स्थापना के बाद सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ -साथ नाट्य उत्सव, युवा उत्सव,गोष्ठी, सेमीनार जैसे आयोजन कर जनजागरण करती रही है. संस्था ने वर्ष 2014 से ”आवाहन” नाम से वार्षिक आयोजन शुरुआत की है इन तीन दिनों में उत्तराखंड के सांस्कृतिक धरोहर, भाषा-बोली, साहित्य ,लोकगीत-संगीत,विकास एवं पर्यावरण उद्योग, रंगमंच आदि पर विशेषज्ञ अपने विचार रखते हैं। अपने इन कार्यक्रमों की कड़ी में संस्था ने यहाँ की सांस्कृतिक थाती को अक्षुण बनाये रखने का काम किया है. संस्था मानना है कि किसी भी समाज या क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर उसे बेहतर समाज बनाने प्रेरणा देता है। असल में सांस्कृतिक विरासत से हमें सदियों की परम्परा का ज्ञान मिलता है.उसे हम संरक्षण, संवर्धन और उसे हम पीढ़ियों को देने में वाहक की भूमिका निभाते हैं। सौभाग्य से उत्तराखंड पास ऐसी बहुत सारी ऐतिहासिक,सांस्कृतिक ,शैक्षिक ,पर्यावरणीय और प्रकृति प्रदत धरोहर हैं जो हमें विरासत के रूप में मिली हैं। और यही हमें यहाँ के सर्वांगीण विकास का मार्ग भी दिखाता है. इसी को ”अभिव्यक्ति कार्यशाला ” चेतना का साधन मानते हुए आगे बढ़ा रहा है।
उत्तराखंड में रंगमंच की यात्रा ………….
उत्तराखंड में रंगमंच को सौ वर्ष पुरे हो गए है। ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर उत्तराखंड में नाटकों के लिखने की शुरुआत बहुत पुरानी है । साहित्य और संस्कृति प्रेमी चंद वंश के राजा रूद्र चंद देव ने 1582 में ”उषारागोदया” तथा ”ययाति चरित्र” आदि नाटको की रचना की। हमें आधुनिक नाटकों का रूप 1911 के बाद ही दिखाई देता है। पहला नाटक गढ़वाली बोली के आदि नाटककार भवानी प्रसाद थपलियाल के ”जयविजय” (1911) और ”प्रहलाद नाटक”(1914) प्रकाशित हुए। उत्तराखंड में रंगमंच के मूलतः दो रूप दिखाई देते हैं । पहला लोकभाषाओं का रंगमंच , जिसे हम लोकनाट्य के नाम से भी जानते हैं और दूसरा रूप हिंदी रंगमंच । लोकनाट्य के विविध रूप रामलीला रासलीला, जातों(यात्राओं) होली ठेटर (स्वांग), पांडव नृत्य, मुखौटा नृत्य , खेल परंपरा (ठुल खेत), हिलजात्रा, भड गायन, जागर, मंडाण, बादियों के स्वांग, औजियों के प्रहसन, आदि हैं ।
आधुनिक शैली का रंगमंच उत्तराखंड में आज़ादी से पहले ही शुरू हो गया था। गढ़वाल में वर्ष 1917 में टिहरी में भवानी दत्त उनियाल के नेतृत्व में ” शेक्सपियर ड्रेमेटिक क्लब” की स्थापना की गयी थी। इसके बाद इन सौ वर्षों में उत्तराखंड में कम ही नहीं लेकिन सतत रूप से किसी न किसी रूप में रंगमंच अपनी उपस्थिति दर्ज करता रहा है ।
”अभिव्यक्ति कार्यशाला” उत्तराखंड के रंगमंच सरोकारों को व्यापक रूप देते हुए यहाँ की रंगमंचीय यात्रा के सौ सालों को ”शताब्दी वर्ष ” के रूप में मना रही है। उत्तराखंड का रंगमंच जितना समृद्ध रहा है उसका प्रचार -प्रसार उतना ही कम रहा है । ”अभिव्यक्ति कार्यशाला” उत्तराखंड की रंगमंच यात्रा को याद करते हुए राज्य के विभिन्न हिस्सों में वर्षभर नाटकों का आयोजन करेगी जिससे आने वाली पीढ़ी भी रंगमंचीय धारा से जुड़ सके ……