उत्तराखंड में एक नहीं दो- दो हैं मृत्युन्जय
कंप्यूटर साइंस का प्रोफेसर बन बैठा दो-दो संस्थानों का निदेशक
एक मृत्युंजय को आला अधिकारी का संरक्षण तो दूसरे को सत्ताधारी पार्टी के नेता का
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
उत्तराखंड में मृत्युन्जयों की कमी नहीं, सूबे के महत्वपूर्ण संस्थानों पर दीमक की तरह लगे इन मृत्युन्जयों से राज्य सरकार कैसे पार पायेगी यह तो भविष्य की बता पायेगा लेकिन वर्तमान में ऐसे मृत्युन्जय अपने राजनीतिक आकाओं के संरक्षण में मौज मार रहे हैं। सूबे के एक मृत्युन्जय के पीछे राज्य के सबसे बड़े ताकतवर नौकरशाह और देश के एक बड़े सत्तासीन नेता का वरदहस्त है तो दूसरे के पीछे सूबे के सत्तासीन पार्टी के एक बड़े नेता का। कहने को तो दोनों की मृत्युन्जयों का काम पढने और पढ़ाने का है और दोनों ही शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े संस्थानों से जुड़े हैं लेकिन इन दोनों की महत्वाकांक्षा इतनी कि दोनों ही कहीं आईएएस और कहीं पीसीएस के पदों सहित अपनी शिक्षा से कहीं अधिक शिक्षित अहर्ता रखने वाले पदों पर अपने आकाओं के आशीर्वाद से विराजमान हैं।
पहले मृत्युन्जय की कहानी तो उत्तराखंड से लेकर देश राजधानी तक में चर्चाओं में है। कभी किसी विश्वविद्यालय का कुल सचिव बन जाता है तो कभी किसी और महत्वपूर्ण पद अपर स्थानिक आयुक्त पर उसे दिल्ली बैठाया जाता है आका भी अपने चेले के लिए उसके और अपने मन मुताबिक पद तैयार कर उसे बैठा देता है। इतना ही नहीं आन्दोलनकारियों की शहादत से बने इस राज्य में उसके लिए तो कहीं भी और किसी भी विभाग में पद तैयार कर दिए जाते हैं लेकिन राज्य के अस्तित्व में आने के 17 साल बाद आज भी आन्दोलन और धरना प्रदर्शन कर रहे बेरोजगार राज्यन्दोलनकारियों के लिए सरकार के पास नौकरियों की कमी बताई जाती है।
उल्लेखनीय है कि आयुर्वेद विवि के कुलपति से विवादों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं मिश्रा की नियुक्ति पर राजभवन तक को सवाल उठाना पड़ा और शासन को कार्रवाई के लिए कई पत्र भेजने पड़े तब कहीं जाकर पूर्व मुख्यमंत्री ने उन्हें कुलसचिव पद से हटाने के आदेश जारी किए उनके बाद विवि के तत्कालीन कुलपति डॉ. सौदान सिंह ने भी उन्हें पद से हटा दिया। इतना ही नहीं उनपर परम हिमालय होम्योपैथिक मेडिकल कालेज के छात्रों ने भी धमकाने का आरोप सहित फर्जी तरीके से अपने विरोधियों के खिलाफ FIR करने के भी आरोप हैं ।
गौरतलब हो कि डॉ. मृत्युंजय मिश्रा के अपर स्थानिक आयुक्त नई दिल्ली के पद पर हुए तैनाती आदेश भी बेहद रहस्यमय तरीके से हुआ। हैरानी की बात यह है कि उनके तैनाती आदेश से सामान्य प्रशासन अनुभाग तक बेखबर था । आरटीआई से प्राप्त तैनाती आदेश में अंकित पत्रांक सामान्य प्रशासन अनुभाग के पत्रांक से एकदम भिन्न हैं। मसलन, दो जनवरी 2017 को मुख्य सचिव द्वारा जारी कार्यालय ज्ञाप का पत्रांक 1500/(1)/ 65(सा.)/2016 है। अनुभाग से जारी होने वाले पत्रों में सबसे ऊपर उत्तराखंड शासन और उसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग या अनुभाग अंकित होता है।
मगर मिश्रा के तैनाती आदेश में सामान्य प्रशासन विभाग के बाद उत्तराखंड शासन लिखा गया है। दिनांक 30 दिसंबर तक अनुभाग से जो पत्र जारी हुए उसका कार्यालय डिस्पैच रजिस्टर के क्रमांक एक से लेकर 1529 था। उत्तरांचल कार्य बंटवारा नियमावली-2006 के अनुसार सभी अनुभागों को पत्रांकों के कोड आवंटित हैं। सामान्य प्रशासन विभाग का ट्रिपल एक्स आई (15) कोड दर्ज है। उसका हर पत्र इसी कोड से आरंभ होता है। नए वित्तीय वर्ष में क्रमांक संख्या दोबारा एक क्रमांक से आरंभ होती है। डॉ. मिश्रा के तैनाती आदेश का पत्रांक 1500 से आरंभ हुआ है।
अब दूसरे मृत्युन्जय की कहानी भी कुछ अजीब है कहने को ये भी कंप्यूटर विज्ञान के प्रोफ़ेसर है और उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय से प्रतिनियुक्ति पर हैं, लेकिन मलाईदार पदों पर बैठे रहना इनका शगल है। वर्तमान में ऐसे-ऐसे विभागों के निदेशक के पद पर महाशय बैठे हैं जिसकी वे अहर्ता ही नहीं दूर-दूर तक नहीं रखते। एक कहावत है कि ”जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का” इसी नीति पर ये साहब काम कर रहे हैं वर्तमान में जहाँ ये विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र के निदेशक के पद पर काबिज़ हैं तो वहीँ उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र के भी ये निदेशक बने हुए हैं। जहाँ तक अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र में निदेशक की अहर्ता की बात की जाय तो इसके लिए अनिवार्यतः पीएचडी के साथ ही अन्तरिक्ष अनुप्रयोग से सम्बंधित कार्यों का 18 साल का अनुभव और कम से कम चार साल तक एस एफ वैज्ञानिक के पद का कार्यानुभव के साथ ही स्पेस टेक्नोलॉजी, रिमोट सेंसिंग और डेवलेपमेंटल कम्युनिकेशन संचालित करने का अनुभव होना चाहिए था लेकिन यह सब उनके पास तो नहीं हैं, है तो केवल नेताओं का जुगाड़।
मामले में भाजपा के युवा कल्याण परिषद् के पूर्व उपाध्यक्ष सुभाष बडथ्वाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि 21 सितम्बर 2005 को राज्य में प्राकृतिक संसाधन प्रबंध, आपदा प्रबंधन,ग्राम्य विकास विभाग, सुदूर क्षेत्रों में शिक्षा व ई-गवेर्नेंस आदि को समृद्ध बनाने के उद्देश्य से अन्तरिक्ष उपयोग केन्द्र (यूसेक)की स्थापना की गयी थी लेकिन इस संस्थान पर निदेशक की नियुक्ति अहर्ता के विपरीत है और जो निदेशक तैनात है वे केवल कंप्यूटर साइंस विषय के प्रोफेसर हैं लिहाज़ा पद के अनुरूप निदेशक की तैनाती की जानी चाहिए जिससे राज्य को संस्थान का लाभ मिल सके।
इतना ही नहीं चर्चाएँ तो यहाँ तक हैं कि वर्तमान निदेशक ने अपने इन विभागों में बिना आवश्यक औपचारिकता पूर्ण कर लगभग 15 लोगों को अपनी इच्छानुसार नियुक्ति भी दी है जिनमें वित्तीय सलाहकार के पद पर आई।एम। धिवान,प्रशासनिक अधिकारी के पद पर राजेन्द्र सिंह सजवान,वैज्ञानिक पद पर राजेन्द्र सिंह राणा, अनुराधा ध्यानी, अकाउंटेंट पद पर रमेश रावत, प्रोग्रामर उमेश जोशी और ओम जोशी, सहायक प्रोग्रामर के पद पर अखिलेश राणा,सॉफ्टवेयर डेवलपर के पद पर राजदीप जंग थापा, चपरासी नरेन्द्र सिंह सहित 8 से 9 लड़के जो मोबाइल अप्लिकेशन के कार्य पर रखे गए हैं वहीँ चार अन्य को प्रोजेक्ट कार्यों में लगाया गया है इतना ही नहीं जहाँ एक तरफ राज्य सरकार 50 की उम्र सीमा पार कर चुके कर्मचारियों को किनारे लगाने की योजना पर काम कर रही है वहीँ इन्होने दो ऐसे लोगों को रोजगार दिया है जो 65 साल से ऊपर के हैं।