चंद सालों में स्टिंग बाज़ ”खबेश” कैसे रंक से राजा बन गया
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
उत्तराखंड के तमाम पत्रकारों को गरियाने और पानी पी -पी कर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को कोसने वाले ”खबेश” के बारे में मैं भी लिखने को आतुर हुआ हूं। ये वो शख्स है जिसको मैं कभी पत्रकार मान ही नहीं सकता। ये सच है कि यह कई साल पहले देहरादून में पत्रकार बनने ही आया था। पत्रकार तो नहीं बन सका लेकिन खिलाड़ी बड़ा बन गया। चंद सालों में स्टिंग बाज़ ”खबेश” रंक से राजा बन गया। जिसके पास कुछ साल पहले तक एक स्कूटर नहीं होता था वो अपने चार्टर्ड प्लेन से उड़ने लगा। क्या आप सबने कभी ऐसा कोई पत्रकार देखा है जिसने महज पांच साल में इतनी अकूत संपत्ति कमा ली हो। क्या देश -दुनिया की किसी नौकरी में यह संभव है। आखिर स्टिंग बाज़ ”खबेश” के लिए ये सब कैसे संभव हुआ। इसके पीछे उसके बड़े खेल ही हैं।
आज खुद को पहाड़ और पहाड़ियों का सबसे बड़ा हितैषी जताने वाले ”खबेश कुमार” के मंसूबों को हर पहाड़ी को समझना चाहिए। अगर अब भी नहीं समझे तो आने वाले दिनों में पछताना पड़ेगा। आज ”खबेश” सरकार को पानी पी -पी कर कोसता है। मुख्यमंत्री को पर्सनली टारगेट करता है और ऐसी कोई कोशिश नहीं छोड़ता जिससे वो मुख्यमंत्री को आम लोगों की नजरों में गिरा सके। दरअसल इस खेल को उत्तराखंड के लोगों को समझना होगा । मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से उसकी पर्सनल खुन्नस है। पर्सनल खुन्नस इसलिए क्योंकि त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री रहते वो उत्तराखंड में अपने खेल करने में कामयाब नहीं हो सका। बड़े अधिकारियों और मुख्यमंत्री का स्टिंग करने के उसके सारे षडयंत्र का खुलासा हो गया और आखिर में जेल में ठूंस दिया गया। उसकी दाल नहीं गली तो इस हथकंडे को आजमा रहा है और उन्हें रोज गरिया रहा है।
यहां सवाल ये है कि अचानक ”खबेश” का पहाड़ी प्रेम क्यों जागा है। उसने कभी पहले इस तरह का पहाड़ प्रेम नहीं दिखाया था। हां, जब राज्य के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक थे तब भी वो कुछ इस तरह के एजेंडे चला रहा था। क्योंकि तब पूर्व मुख्यमंत्री निशंक ने खबेश का सहस्त्रधारा रोड स्थित अवैध कांप्लैक्स गिरवा ही नहीं दिया बल्कि उसके खिलाफ़ आउट लुक सर्कुलर तक पुलिस ने जारी कर दिया था, लेकिन एक मंत्री से नजदीकियों के चलते यह नोटिस तब कैंसिल कर दिया गया जब यह एक क्रिकेट मैच देखने विदेश जा रहा था और दिल्ली एअरपोर्ट पर आब्रजन अधिकारियों ने इसे रोक लिया था।
अब जरा थोड़ा पीछे चलते हैं। पहाड़ और पहाड़ियों पर अपना प्यार लुटाने वाले ”खबेश” से मैं ये पूछना चाहता हूं कि उसकी पहाड़ प्रेम की वो पत्रकारित तब कहां थी जब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री थे और राज्य में भ्रष्टाचार की गंगा बह रही थी। विजय बहुगुणा और बीसी खंडूरी के वक्त भी उनका यह पहाड़ प्रेम नहीं छलका या जागा था। क्या तब उत्तराखंड में कुछ भी गड़बड़ नहीं हो रहा था।
नारायण दत्त तिवारी और फिर विजय बहुगुणा की सरकार में ”खबेश” का सारा खेल उनके मुताबिक चल रहा था। राज्य के सबसे बड़े अफसर और सबसे भ्रष्ट कहे जाने वाले ”राका”के साथ ”खबेश कुमार” की कितनी गहरी दोस्ती थी, ये उत्तराखंड के सभी पत्रकार जानते हैं।
उस दौर में उत्तराखंड में क्या क्या नहीं हुआ था। रुद्रपुर में कई एकड़ जमीन कौड़ियों के भाव उस बिजनेस हाउस को दे दी गई थी जिसका चैनल ”खबेश” चलाता था। वो जमीन किसने दिलाई, ये समझा जा सकता है। ये किसको नहीं पता कि उस दौर में किस तह कमीशनखोरी करके खनन का काम चला था। जब केदारनाथ आपदा आई थी तो भ्रष्टाचार कहां पहुंचा था। तब भी ”खबेश” ने मुंह क्यों नहीं खोला था। हरीश रावत के नेतृत्व वाली सरकार में क्या सब कुछ ठीक था। तब ”खबेश कुमार” का मुंह क्यों नहीं खुला था।
दरअसल ये सब इसलिए हुआ क्योंकि ”खबेश कुमार” के सारे काम आसानी से हो रहे थे और उनकी दाल गलती जा रही थी। हरीश रावत के कमरे में सीधे घुसने की ”खबेश” की हिमाकत को सबने देखा है। ऐसी एंट्री कभी किसी और को नहीं मिली। गनरों के लाव लश्कर के साथ जमीनों को कब्जाने का ”खेल” चलाने वाले ”खबेश” पर आखिर इतनी मेहरबानी का कारण हर कोई समझ सकता है। तब तो ”खबेश कुमार” ने कभी सरकारों के खिलाफ चूं तक नहीं किया।
अब जागा उनका पहाड़ प्रेम। पहाड़ियों को आपस में एक दूसरे के खिलाफ करने के उनके षडयंत्र को समझो और उससे बचो। स्टर्डिया और पावर प्रोजेक्ट नाम के जिन बड़े घोटालों को खोलने का दावा ”खबेश कुमार” करता है वो ”खबेश कुमार” ने नहीं बल्कि अखबारों ने खोले थे। बाद में ”खबेश कुमार” इन घोटालों के पर्दाफाश होने के बाद वहां रिपोर्टिंग का ”खेल” करने गए थे।
अब आपको और हम सबको ”खबेश के खेल” को समझना होगा। वो बहुत ही ईमानदारी और ईमानदार होने का ढोल पीट रहा है और हम नाच रहे हैं। फेसबुक पर उसने अपना एक अलग तरह का गिरोह बना रखा है जिसको आप टीम समझते हो। किसी को गाली देनी हो या किसी के खिलाफ खास एजेंडा चलाना हो तो ये गिरोह मिलकर सोशल मीडिया पर काम करता है।
खबरें यहां तक हैं कि ”खबेश कुमार” उत्तराखंड के कुछ पत्रकारो को पाल पोस रहा है और न्यूज पोर्टलों की आड़ में इसके मंसूबों से अंजान ये लोग अनजाने में इसके एजेंडे का हिस्सा बन रहे हैं। इसे उत्तराखंड और पहाड़ी लोगों के खिलाफ एक षडयंत्र माना जाना चाहिए। यह षड़यंत्र उन लोगों के खिलाफ भी है जो सच में राज्य के असली मुद्दों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
दरअसल ”खबेश” की हमेशा से अपना एक पावर सेंटर चलाने की आदत रही है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में उसके ये मंसूबे पूरे नहीं हुए। फिर उसने त्रिवेंद्र सिंह रावत और शासन के कुछ बड़े अधिकारियों के स्टिंग का प्लान बनाया तो उसका पर्दाफाश हो गया। ”खबेश” ने जिसको स्टिंग करने के लिए लगाया था उसने ही खुलकर उसके षडयंत्र का पर्दाफाश कर डाला। आखिर ”खबेश” को जेल की हवा खानी पड़ी और वो लगातार उसी का बदला निकाल रहा है। जानबूझकर अपनी लड़ाई को पहाडियों के हमदर्द होने का चोला पहन रहा है ताकि खुद को पहाड़ियों का हितैषी समझा सके जबकि इसका पहाड़ या पहाड़ी से कोई लेना देना कभी भी नहीं रहा।