प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में होगा आज शपथ ग्रहण समारोह
महाराज और प्रकाश पंत ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के नाम का रखा प्रस्ताव
विधानसभा सदस्यों ने चुना नेता विधानमंडल दल
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। आरएसएस के प्रचारक से लेकर भाजपा के संगठन मंत्री तक रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत को शुक्रवार को देहरादून में हुई विधायक दल की बैठक में सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुना गया।शुक्रवार को देहरादून में आयोजित विधानमंडल दल की बैठक में त्रिवेंद्र का नाम फाइनल किया गया। बैठक में सीएम की दौड़ में शामिल सतपाल महाराज और प्रकाश पंत ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के नाम का प्रस्ताव रखा। जिसके बाद रावत के नाम पर मुहर लगाई है। इसके साथ ही श्री रावत उत्तराखंड के नौवें सीएम बन गये। वे 18 मार्च को सीएम पद की शपथ लेंगे। पीएम मोदी और शाह समेत कई शीर्ष नेता भी कार्यक्रम में शिरकत करेंगे। रावत झारखंड बीजेपी के प्रभारी भी रहे हैं। इससे पहले रावत ने गुरुवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की थी।
शपथग्रहण समारोह में हरियाणा, गोवा, गुजरात सहित कई प्रान्तों के मुख्यमंत्री व कई अन्य केंद्रीय नेताओं के भी भाग लेने की संभावना है।
देहरादून के पैसेफिक होटल में भाजपा विधायक दल की बैठक हुई, जिसमें मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगी। इससे पहले शुक्रवार को दोपहर करीब साढ़े तीन बजे संभावित सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत सीएम पद की दौड़ में शामिल प्रकाश पंत को साथ लेकर बैठक में हिस्सा लेने पहुंचे। यहां कार्यकर्ताओं ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। बीजापुर गेस्ट हाउस से हरबंस कपूर के साथ त्रिवेंद्र रावत विजय कॉलोनी स्थित प्रकाश पन्त के घर गए। यहां से वो प्रकाश पंत को अपनी गाड़ी में बैठाकर विधायक दल की बैठक में पहुंचे। उनके साथ सुरेंद्र सिंह जीना भी थे।
बैठक में राष्ट्रीय सचिव तीरथ रावत, विधायक मदन कौशिक, नवीन दुमका, महेंद्र भट्ट, राष्ट्रीय सचिव तीरथ रावत, सौरभ बहुगुणा, मुकेश कोली, यशपाल आर्य और उनके उनके पुत्र संजीव आर्य, पूर्व सांसद और चौबट्टाखाल से विधायक चुने गए सतपाल महाराज, रेखा आर्य, प्रेमचन्द अग्रवाल, हरक सिंह, सुबोध उनियाल सहित सभी विधायक वहां मौजूद थे। वहीं प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट भी बैठक में शामिल थे। विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों के पहुंचने का सिलसिला जारी है। पैसेफिक होटल में महिला मोर्चा की कार्यकर्ता तिलक लगाकर सभी विधायकों का स्वागत कर रही हैं।
मोदी व अमित शाह के करीबी हैं रावत
वह 1983 से 2002 तक आरएसएस के प्रचारक रहे हैं। वह पहली बार 2002 में डोईवाला सीट से विधायक बने थे। तब से वहां से तीन बार चुने जा चुके हैं। त्रिवेंद्र रावत 2007-12 में राज्य के कृषि मंत्री भी रहे हैं। बीजेपी के नेशनल सेक्रेटरी और जर्नलिस्ट रह चुके रावत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अध्यक्ष अमित शाह के करीबी हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी इन्होंने शाह के साथ काफी काम किया था। संघ की प्रदेश इकाई ने भी रावत के नाम पर मुहर लगाई थी। 2014 में झारखंड का इंचार्ज बनने के बाद इनके नेतृत्व में राज्य में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी। बता दें कि उत्तराखंड 2000 में यूपी से अलग होकर नया राज्य बना था।
इन कारणों से लगी रावत के नाम पर मुहर
त्रिवेंद्र सिंह रावत आरएसएस के प्रचारक रहे हैं। अमित शाह के साथ भी इनकी खूब पटरी बैठती है। लोकसभा चुनावों में शाह यूपी के प्रभारी थे तो रावत सह-प्रभारी। तब बीजेपी के 80 में से 73 कैंडिडेट्स जीते थे। इसके बाद शाह ने रावत को 2014 में विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड का प्रभारी बनाया तो पहली बार पार्टी की बहुमत की सरकार बनी। रावत को फिर नमामि गंगे समिति का नेशनल कन्वीनर बनाया गया। एक और बड़ी बात, रावत को एडमिनिस्ट्रेशन चलाने का तजुर्बा भी है। वे खंडूरी और रमेश पोखरियाल की कैबिनेट में मंत्री रहे हैं।
ये भी थे सीएम पद की रेस में
पिथौरागढ़ से विधायक प्रकाश पंत। राज्य में बीजेपी का ब्राह्मण चेहरा, 2 बार मंत्री भी रह चुके हैं। चौबट्टाखाल से विधायक सतपाल महाराज। ये कांग्रेस सहित कई पार्टियों में रह चुके हैं। 2014 में बीजेपी में शामिल हुए थे। महाराज और त्रिवेंद्र सिंह रावत, दोनों ठाकुर हैं।
नई सरकार का शपथ ग्रहण कल अपराह्न
नई सरकार का शपथ ग्रहण 18 मार्च को शाम 3 बजे परेड ग्रांउड में होगा, जिसमें नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भी मौजूद रहने के आसार हैं। देश के कई राज्यों के सीएम के साथ ही अन्य प्रमुख पार्टियों के नेताओं के भी समारोह में शिरकत करने की संभावना है।
कभी टाट-पट्टी वाले स्कूल में पढ़ते थे
त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड के 9वें मुख्यमंत्री होंगे। रावत के नाम पर विधायक मंडल दल की बैठक में मुहर लग चुकी है। त्रिवेंद्र सिंह रावत शनिवार को देहरादून के परेड मैदान में पीएम मोदी और अमित शाह की मौजूदगी में शपथ लेंगे। संघ के स्वयं सेवक से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तक का सफर तय करने वाले त्रिवेंद्र सिंह के बारे में ये बाते बड़ी अहम हैं।
त्रिवेंद्र सिंह रावत पौड़ी जिले के जयहरीखाल ब्लाक के खैरासैण गांव के रहने वाले हैं। यहां सन् 1960 में प्रताप सिंह रावत और भोदा देवी के घर त्रिवेन्द्र सिंह ने जन्म लिया। त्रिवेंद्र रावत के पिता प्रताप सिंह रावत सेना की बीईजी रुड़की कोर में कार्यरत रहे हैं।
त्रिवेंद्र सिंह, 9 भाई बहनों में सबसे छोटे हैं। रावत की शुरुआती पढ़ाई लिखाई खैरासैण में ही हुई। त्रिवेन्द्र ने कक्षा 10 की परीक्षा पौड़ी जिले में ही सतपुली इंटर कॉलेज और 12वीं की परीक्षा एकेश्वर इंटर कॉलेज से हासिल की।
शुरू से ही शांत स्वभाव वाले त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने लैंसडाउन के जयहरीखाल डिग्री कॉलेज से स्नातक और गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर से स्नातकोत्तर की डिग्री की।
श्रीनगर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए करने के बाद त्रिवेन्द्र सिंह रावत 1984 में देहरादून चले गये। यहां भी उन्हें आरएसएस में अहम पदों पर जिम्मेदारी सौंपी गई।
संघ के प्रचारक से लेकर सीएम तक के सफर में तमाम उतार-चढ़ाव
देहरादून में संघ प्रचारक की भूमिका निभाने के बाद त्रिवेन्द्र सिंह रावत को मेरठ का जिला प्रचारक बनाया गया। जहां उनके काम से संघ इतना प्रभावित हुआ कि इन्हें उत्तराखंड बनने के बाद 2002 में भाजपा के टिकट पर कांग्रेस के विरेन्द्र मोहन उनियाल के खिलाफ चुनावी मैदान में उतार दिया गया।
2002 में त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने डोईवाला से पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
2007 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से भाजपा ने त्रिवेन्द्र सिंह रावत पर भरोसा जताया और वहां राज्य विधानसभा पहुंचने में सफल हुए. लेकिन वर्ष 2012 में अपनी परम्परागत सीट डोईवाला छोड़कर रायपुर से चुनाव लड़े, लेकिन यहां उन्हें कांग्रेस से हार का मुंह देखना पड़ा।
इसके बाद हरिद्वार से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद जब रमेश पोखरियाल निशंक ने डोईवाला सीट छोड़ी तो त्रिवेन्द्र सिंह रावत फिर से इस विधानसभा सीट से कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट के खिलाफ उपचुनाव में चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन फिर से उन्हें इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा।
पार्टी संगठन को त्रिवेन्द्र सिंह रावत की नेतृत्व क्षमता पर पूरा भरोसा था और इस दौरान उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाया गया. साथ ही झारखंड़ जैसे राज्य का प्रभारी और लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तरप्रदेश के सह प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी गई जिसे उन्होंने बखूबी निभाया।
2017 के विधानसभा चुनाव में त्रिवेन्द्र सिंह रावत एक बार फिर से डोईवाला विधानसभा से चुनावी मैदान में उतरे और इस बार उन्होंने कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट को करारी हार दी।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से रावत की नजदीकियों और संघ के भरोसेमंद स्वयंसेवक होने के कारण त्रिवेंद्र रावत आज उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच रहे हैं।
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने संघ के प्रचारक से लेकर सीएम तक के सफर में तमाम उतार-चढ़ाव देखे। वह 14 साल तक संघ से जुड़े रहे और फिर 1993 में भाजपा संगठन मंत्री बने। राज्य बनने के बाद 2002 में पहली बार डोईवाला से विधायक चुने गए। 20 दिसंबर 1960 को पौड़ी गढ़वाल के खैरासैँण(जहरीखाल) में फौजी परिवार में जन्में त्रिवेंद्र रावत ने पत्रकारिता से पीजी की पढ़ाई की। वह 19 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े। दो साल बतौर स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में नियमित रूप से गए और वर्ष 1981 में संघ की नीतियों से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने बतौर प्रचारक काम करने का संकल्प लिया।
1985 में उन्हें देहरादून महानगर का प्रचारक नियुक्त किया गया। वर्ष 1993 में संघ की ओर से उन्हें भारतीय जनता पार्टी में संगठन मंत्री का दायित्व दिया गया। राज्य आंदोलन में भी त्रिवेंद्र की अहम भूमिका रही। वह कई बार गिरफ्तार हुए और जेल भी गए। वर्ष 1997 से 2002 तक भाजपा में उन्हें प्रदेश संगठन मंत्री बनाया गया। इस दौरान भाजपा ने विधानसभा, लोकसभा और विधान परिषद चुनाव में बड़ी सफलता हासिल की। वर्ष 2002 में पहले विधानसभा चुनाव में डोईवाला से चुनाव जीता और विधायक बने। 2007 में डोईवाला से दोबार रिकार्ड मतों से जीत दर्ज की और भाजपा सरकार में कृषि मंत्री बने।
पार्टी नेतृत्व के विश्वसनीय
नेतृत्व क्षमता का आंकलन करते हुए वर्ष 2013 में पार्टी ने त्रिवेंद्र रावत को राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारी दी। साथ ही उत्तर प्रदेश का सह प्रभारी और टैक्नोक्रेट सेल के प्रभारी के तौर पर अहम जिम्मेदारी दी। लोकसभा चुनाव 2014 में भी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने त्रिवेंद्र पर भरोसा करते हुए उन्हें यूपी का सह प्रभारी बनाया। त्रिवेंद्र रावत ने अपनी राजनैतिक कौशलता का परिचय झारखंड चुनाव में दिया। अक्तूबर 2014 में झारखंड प्रभारी बने और वहां भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी।