EXCLUSIVE

अपनों और परायों से एक साथ कई मोर्चों पर जूझते त्रिवेन्द्र !

  • कहीं न कहीं किसी ने इस अध्यपिका के कन्धों का किया है इस्तेमाल!
  • न भाजपा के बयानवीर ही कहीं नज़र आये और न बगलगीर! 
  • तमाम दबावों के बाद भी कदम पीछे नहीं खींचना मजबूत इच्छा शक्ति !

राजेन्द्र जोशी 

देहरादून : एक अध्यापिका जो पिछले कई सालों से अपने विद्यालय से अनुपस्थित होने के चलते कई बार निलंबित चल रही होती है और मुख्यमंत्री के जनता दरबार में इसलिए आती है कि अब उसे भी देहरादून जैसे  सुगम स्थान में नौकरी करनी है, पहाड़ी होने की बावजूद पहाड़ में में नौकरी करने को वह वनवास करार देती है और जनता दर्शन कार्यक्रम में शुरू से ही हंगामा खड़ा करने के मकसद से सूबे के मुख्यमंत्री द्वारा लगाए गए जनता दरबार में सैकड़ों फरियादियों और कुछ अधिकारियों के सामने ही सरकार को अनाप-शनाप बोलकर चली जाती है, जब मुख्यमंत्री उससे सवाल -जवाब करते हैं तो वह राज्य की कर्मचारी होने की बावजूद उनसे भी मुंह लड़ाने से नहीं चूकती ,अब यदि मुख्यमंत्री ने क़ानून का हवाला देकर उससे यह कह दिया कि नौकरी शुरू करते वक्त क्या आपको नहीं पता था पहाड़ पर भी नौकरी करनी पड़ सकती है तो उसे वह सही बात बुरी लगती है और मामला यहीं बिगड़ जाता है और इस पर बखेड़ा खड़ा कर दिया जाता है। वहीँ अध्यापिका के शब्दों पर न तो सोशल मीडिया ने ध्यान दिया और न अन्य प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने ही ध्यान नहीं दिया जब वह मुख्यमंत्री को ही दुत्कार रही है और सरे आम अनाब -शनाब  बोलती हुए बाहर कर दी जाती है। हाँ, इसके बाद मुख्यमंत्री ने जरूर महिला को सस्पेंड करने और उसे हिरासत में लेने की बात कही लेकिन सबसे विचारणीय पहलु तो यह है कि क्या एक आम व्यक्ति और वह भी महिला अध्यपिका क्या इस तरह लोकतान्त्रिक पद्धति से चुनकर मुख्यमंत्री बने किसी व्यक्ति से इस तरह का व्यवहार कर सकता है या कर सकती है तो वह अपने छात्रों को क्या शिक्षा देगी और उन्हें क्या अनुशासन का पाठ पढ़ाएगी वह भी तब जब वह खुद विनम्रता और संयम खोकर खुद पथभ्रष्ट हो चुकी हो। 

इसके बाद शुरू होता है सोशल मीडिया पर वाक् युद्ध। जिसने मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र को विलेन बनाकर पेश करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वहीँ सोशल मीडिया पर तो हर कोई मुख्यमंत्री को कठघरे में खड़ा करता नज़र आता है लेकिन किसी ने भी यह नहीं सोचा कि इस वाकये से राज्य में सरकार की पहाड़ों में अध्यापक पहुंचाने की मुहिम को धक्का लग सकता है और इसके बाद तो हर कोई कर्मचारी इसी तरह मुख्यमंत्री या मंत्री पर अनाप-शनाप टिपण्णी कर अपने निहितार्थ में दबाव में डालते हुए  सरकारी व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर करने पर आमादा हो जाएगा और सरकार भी  ऐसे लोगों के दबाव में आकर जो वे चाहते हैं निर्णय कर देगी। यह कहाँ तक ठीक होगा यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन  इस राज्य के लिए इस परंपरा को कतई भी ठीक नहीं माना जा सकता है। यहाँ मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की इच्छा शक्ति को सलाम करना हम अपना फर्ज समझते हैं जिन्होने तमाम दबाव के बाद भी इस प्रकरण पर अपने कदम पीछे नहीं खींचे और बड़ा दिल दिखाते हुए अधिकारियों को मामले पर गंभीरता से जांच का आदेश देते हुए जनता दरबार में उनका विरोध कर हंगामा करने वाली उसी महिला को न्याय देने की बात कहते हुए अधिकारियों को निर्देश दिए । 

आमजन का मानना है कि इस प्रकरण में कहीं न कहीं किसी साजिश या यूँ कहें किसी षड़यंत्र से इंकार नहीं किया जा सकता है। या यूँ कहें कि कहीं न कहीं किसी ने इस अध्यपिका के कन्धों का इस्तेमाल करते हुए अपना निशाना साधा है इस बात की तस्दीक तक हो जाती है जब घटना के तुरंत बाद कुछ लोग अचानक ही सक्रिय हो उठते हैं और महिला के सुर में सुर मिलाते  हुए मुख्यमंत्री को अपने निशाने पर लेना शुरू कर देते हैं। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री पर आक्रमण करने वाले अब उनके परिवार पर तक आक्रमण करने से नहीं चूकते।इस घटना को सूबे में राजनीति के चारित्रिक पतन की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा जब कुछ लोग अपने को मंसूबों को फलीभूत करने के लिए किसी अबला नारी के कन्धों का इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकते। 

जिस तरह से सोशल मीडिया पर एक साथ कई लोग मुख्यमंत्री सहित भाजपा के कुछ नेताओं को निशाना बना रहे थे वहीँ इसका विरोध करने के लिए भाजपा की वह बयानवीरों की फौज कहीं नज़र नहीं आयी जो कभी मामूली सी बात पर  पक्ष में खड़े होकर लोगों का मुंह बंद करा देते थे।  वहीँ भाजपा के वे प्रदेश अध्यक्ष और सरकार के मंत्री सहित वे सरकारी प्रवक्ता तक भी कहीं नज़र नहीं आये जो छोटी-छोटी बातों को लेकर मीडिया से सामने अपनी हाज़िरी लगा लिया करते थे। वहीँ वे सैकड़ों वालेंटियर्स भी कहीं नज़र नहीं आये जो बीते दिनों अमित शाह के दौरे के दौरान दो-दो घंटे तक उनका सम्बोधन सुन चुके थे कि अब इनको भाजपा पर होने वाले आक्रमण का जवाब देने को आगे आना होगा।  इतना ही नहीं प्रदेश सूचना विभाग के वे आला अफसर भी तीन दिन तक कहीं नज़र नहीं आये जिसके पास मुख्यमंत्री की इमेज बिल्डिंग का जिम्मा है। वहीँ भाजपा के पांचो सांसद भी कहीं नज़र नहीं आये और वे कहीं भी अपने मुख्यमंत्री के बचाव में खड़े नज़र नहीं आये कि अध्यापिका कहीं न कहीं  गलत थी।   

devbhoomimedia

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : देवभूमि मीडिया.कॉम हर पक्ष के विचारों और नज़रिए को अपने यहां समाहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह जरूरी नहीं है कि हम यहां प्रकाशित सभी विचारों से सहमत हों। लेकिन हम सबकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करते हैं। ऐसे स्वतंत्र लेखक,ब्लॉगर और स्तंभकार जो देवभूमि मीडिया.कॉम के कर्मचारी नहीं हैं, उनके लेख, सूचनाएं या उनके द्वारा व्यक्त किया गया विचार उनका निजी है, यह देवभूमि मीडिया.कॉम का नज़रिया नहीं है और नहीं कहा जा सकता है। ऐसी किसी चीज की जवाबदेही या उत्तरदायित्व देवभूमि मीडिया.कॉम का नहीं होगा। धन्यवाद !

Related Articles

Back to top button
Translate »