पलायन रोकने के लिए ग्रामीणों तक पहुंचानी होगी कृषि की नई तकनीक:टम्टा
- सीएमबीएल बेबी कार्न-एक, बीएल मडुवा 376 प्रजातियों का लोकार्पण
अल्मोड़ा : पर्वतीय क्षेत्र से पलायन को रोकने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों तक कृषि की नई तकनीक को पहुंचाना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने का संकल्प लिया है। विवेकानंद कृषि अनुसंधान संस्थान के 95वें स्थापना दिवस पर बतौर मुख्य अतिथि केंद्रीय कपड़ा राज्यमंत्री अजय टम्टा ने कहा कि वीपीकेएस को राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाने के लिए प्रयास जारी हैं। इस अवसर पर संस्थान द्वारा विकसित सीएमबीएल बेबी कार्न-एक और बीएल मडुवा 376 प्रजातियों का लोकार्पण भी किया गया।
टम्टा ने संस्थान की उपलब्धियों पर कहा कि विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। जिसके फलस्वरूप यहां के किसानों ने कई क्षेत्रों में तकनीक का फायदा उठाकर आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाए हैं।उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में आल वेदर रोड को बनाने के साथ ही कृषि के क्षेत्र में भी नई क्रांति लाने का निर्णय लिया गया है।
इस अवसर पर उन्होंने विवेकानंद संस्थान के तकनीकी विवरणिका प्रसार सामग्री का भी विमोचन किया। विशिष्ट अतिथि विधानसभा उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह चौहान ने कहा कि वैज्ञानिकों को किसानों की समस्याओं पर विशेष ध्यान देना होगा।
इस अवसर पर जिलाधिकारी ईवा आशीष ने कहा कि संस्थान द्वारा जिले में कई क्षेत्रों में काश्तकारों को तकनीकी का लाभ दिलाया जा रहा है। संस्थान के निदेशक एके पटनायक ने संस्थान द्वारा किए जा रहे कार्यों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वर्तमान में मोबाइल एप विकसित करके किसानों को लाभ दिलाया जा रहा है। साथ ही मडुवे और मक्के की नई प्रजाति को विकसित कर लिया गया है। फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए भी संस्थान अपने स्तर से शोध कर रहा है।
रामकृष्ण कुटीर के स्वामी सोम देवानंद ने कहा कि महान वैज्ञानिक बोसी सैन ने जिस भावना से इस संस्थान की स्थापना की थी वह आज निरंतर आगे बढ़ रही है। इस मौके पर वैज्ञानिक केके, डॉ. जेकेएस बिष्ट ने भी विचार रखे।
कार्यक्रम में डॉ. एमसी जोशी, डॉ. जेसी भट्ट, वैज्ञानिक डॉ.आरसी सुंदरियाल, डॉ. दिवा भट्ट, डा. लक्ष्मीकांत, डॉ. निर्मल कुमार के अलावा एसडीएम विवेक राय, प्रशिक्षु एसडीएम मनीष बिष्ट, एसबीआई प्रबंधक ए अल्फा पोऊ, मोहन कांडपाल, ललित लटवाल, रमेश बहुगुणा, कैलाश गुरुरानी, चंदन लाल टम्टा समेत वैज्ञानिक और कर्मचारी मौजूद थे। संचालन कुशाग्रा जोशी ने किया।