Uttarakhand

एम्स में स्थानीय लोगों को रोज़गार में आरक्षण देने का नहीं है कोई प्रावधान

  • स्थानीय बेरोज़गारों को दूध की मक्खी की तरह किया जा रहा है बाहर 
  • एम्स में नौकरियों में आरक्षण को लेकर लोग कर रहे अतार्किक बयानबाजी
  • बिना सरकारी प्रावधानों के स्थानीय लोगों को रोज़गार देना है दिवास्वप्न जैसा 
  • नैनीताल हाई कोर्ट ने सरकारी सेवा में क्षैतिज आरक्षण को किया है असंवैधानिक घोषित

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

ऋषिकेश : बेरोज़गारों को रोज़गार और अलग राज्य की मांग और भारी संघर्ष के बाद  मिले उत्तराखंड का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि जब यहाँ कोई भी संस्थान या उद्योग स्थापित किया जाता है उसके स्थापना से पहले सरकार सहित संस्थानों व उद्योगों के मालिक प्रदेश में राज्य के बेरोज़गारों को रोजगार देने के तमाम दावे करते रहे हैं लेकिन संस्थान व उद्योग के स्थापित होने के कुछ समय तक तो कुछ बेरोजगारों को किसी तरह रोज़गार तो मिल जाता है लेकिन बाद में उन्हें दूध की मक्खी की तरह बाहर कर दिया जाता है। इस तरह का घिनौना खेल राज्य स्थापना से लेकर अब तक उत्तराखंड में चल रहा है, वहीं प्रदेश के रोज़गार कार्यालय के आंकड़ों पर यदि नज़र दौड़ाई जाय तो संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि सूबे में बेरोज़गारों की संख्या बिना रोज़गार के बढ़ी है। 

गौरतलब हो कि ऋषिकेश के एम्स से हटाए गए आउटसोर्स कर्मियों को वापस लेने व संस्थान में ग्रुप सी व डी के पदों पर स्थानीय लोगों को भर्ती करने को लेकर पिछले कुछ दिनों से राजनीति हो रही है। जिसमें कई लोग एम्स में नौकरियों में आरक्षण को लेकर अतार्किक बयानबाजी कर रहे हैं, एम्स संस्थान में ग्रुप सी व डी पदों पर 70% आरक्षण की बात कही जा रही है। उनका कहना है कि एम्स में ग्रुप सी और डी के पदों पर उत्तराखंड के बेरोजगारों को 70% आरक्षण मिलना चाहिए।

वहीं एम्स प्रशासन का कहना है कि सरकार द्वारा एम्स ऋषिकेश में ग्रुप डी का कोई पद ही सृजित नहीं किया गया है। जहां तक ग्रुप सी एवं बी के पदों की बात है इन पदों की भर्ती के लिए केंद्र सरकार का संस्थान होने के कारण एम्स में भारत सरकार के नियम लागू होते हैं। जिसके अंतर्गत अभी तक केंद्र सरकार ने ऐसा कोई नोटिफिकेशन (सर्कुलर) जारी नहीं किया है,जिसमें स्थानीय लोगों को आरक्षण देने का प्रावधान किया गया हो।

उल्लेखनीय है कि 11 नवंबर- 2004 को तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन में शहीद आंदोलनकारियों के आश्रितों और घायल आंदोलनकारियों को सरकारी सेवा में 10 फीसदी आरक्षण के दो शासनादेश जारी किए थे, इनमें एक राज्य लोक सेवा आयोग की परिधि के बाहर के पदों के लिए और दूसरा राज्य लोक सेवा आयोग के पदों के लिए था,मगर 2018 में उत्तराखंड हाईकोर्ट नैनीताल ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवा में क्षैतिज आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया और वर्तमान में यह आरक्षण व्यवस्था लागू नहीं है।

भारतीय संविधान के वर्तमान प्रावधानों के अंतर्गत निवास के आधार पर आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। भारत सरकार के संस्थानों में देशभर के विभिन्न राज्यों के निवासी आवेदन कर सकते हैं और नौकरी पा सकते है। एम्स प्रशासन का कहना है कि यदि भारत सरकार ऐसा कोई प्रावधान करती है तो उसका शब्दशः पालन सुनिश्चित किया जाएगा। एम्स प्रशासन ने इस तरह की बयानबाजी को राजनीति से प्रेरित और अतार्किक बताया है। उन्होंने बताया कि बिना सरकारी प्रावधानों के यह सब दिवास्वप्न जैसा है।

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