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लोकायुक्त की नहीं जरुरत, उत्तराखंड में है रामराज्य !

  • सरकारें नहीं चाहती हैं कि राज्य में हो रहे भ्रष्टाचार पर कोई जांच या कार्रवाही!

राजेन्द्र जोशी 

देहरादून : उत्तराखंड में लोकायुक्त की तैनाती क्यों नहीं हो रही है इसके पीछे जो बात समझ आती है वह यह है या तो उत्तराखंड में अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा किसी भी तरह का भ्रष्टाचार नहीं किया जा रहा है या किया गया है या फिर उत्तराखंड में रामराज्य स्थापित हो गया है या फिर सरकारें नहीं चाहती हैं कि राज्य में हो रहे भ्रष्टाचार पर कोई जांच या कार्रवाही ही हो।  इसके बाद तो कम से कम  एक बात तो साफ़ हो जाती है कि उत्तराखंड में चाहे कोई भी सत्ता रुढ दल क्यों न हो वे इस मामले में मिलकर नहीं चाहते कि राज्य में मजबूत लोकायुक्त क़ानून की नियुक्ति हो और भ्रष्टाचार करने वाले सलाखों के पीछे किये जायं।  अन्यथा उत्तराखंड में शासन चलाने वाली सरकारों के सामने ऐसी कौन सी  चुनौतियां है जो उनके हाथ लोकायुक्त तैनात करने से ठिठक जाते हैं।  यानि दाल में कहीं न कहीं कुछ काला जरुर है जो अभी तक राज्य में सत्तासीन दल लोकायुक्त कानून लागू करने से बचते रहे हैं। 

गौरतलब हो कि उत्तराखंड में पूर्वमुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी के शासनकाल में लोकायुक्त कानून लाया गया था और उत्तराखंड का लोकायुक्त कानून देश का एकमात्र कानून है जिसपर राष्ट्रपति की मुहर लगी हुई है लेकिन सूबे की सत्ता में कोई भी रुढ दल इसे लागू करवाने से अपने हाथ हमेशा पीछे खींचता रहा है। इसके बाद भी 10 फ़रवरी 2016 को देश के उच्चतम न्यायालय में दाखिल एक याचिका में लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। यह याचिका भाजपा नेता ने ही दाखिल कर कहा था कि उत्तराखंड  में 2011 में लोकायुक्त बिल पास किया गया था और सितंबर 2013 में राज्यपाल और राष्ट्रपति ने इस पर मुहर लगा दी थी। लेकिन इसके बाद से राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हुई है। इसके बाद राज्य विधानसभा में यह बिल लाया गया  तब से लेकर अब तक यह बिल विधानसभा की अलमारियों में धूल फांक रहा है। कभी इसे प्रवर समिति के हवाले किया जाता है जो इसे बिना नाखून और दांत वाला कानून बनाकर बाहर तो निकलते हैं लेकिन फिर किसी अनजान डर के चलते सत्तारूढ़ दल फिर इसे उसी आलमारी के कैदखाने में डाल देते रहे हैं जबकि सूबे की  जनता इस कानून की राह आज भी 17 सालों से देख रही है। इसका साफ़ मतलब है कि  भाजपा और ना ही कांग्रेस इस लोकायुक्त कानून को राज्य में  लाना चाहते हैं क्योंकि कहीं न कहीं इन दोनों दलों को इसके अलमारी से बाहर निकल जाने के बाद के खतरों का अहसास है ?

वहीँ सूत्रों का तो कहना है कि सूबे में सत्तारूढ़ दोनों की पार्टियों पर सरकार में बैठे चंद उन पूर्व व वर्तमान भ्रष्ट आला अधिकारियों का दबाव का ही नतीजा है जो राज्य में मजबूत लोकायुक्त कानून लागू नहीं किया जा सका है। यहाँ यह कहने में कोई संकोच नहीं कि उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के दिन से लेकर अब तक सत्ता में काबिज सरकारों पर उन तमाम अधिकारियों की राज्य की सत्ता पर छाया  रही है जो सरकारों को बदनाम करवाने को मशहूर तो रहे ही है वहीँ ऐसे अधिकारियों ने देश और विश्व पटल पर भी इस युवा हो चुके राज्य की छवि भ्रष्टाचारी राज्य के रूप में प्रतिष्ठित करवाने में कोई कोर -कसर नहीं छोड़ी।

हालाँकि गैरसैंण विधानसभा सत्र की अधिसूचना जारी होने से पहले राज्य्वासियों को लोकायुक्त गठन की उम्मीद जगी थी क्योंकि बीते  विधानसभा चुनाव के समय भाजपा ने सशक्त लोकायुक्त देने का वादा सूबे की जनता से किया था और उस समय भाजपा ने कहा था कि उनकी सरकार आने पर विधानसभा के पटल पर विधेयक भी पेश कर दिया जायेगा , लेकिन बाद में भाजपा ने भी इसे प्रवर समिति को सौंप दिया।  वहीँ राजनीतिक मजबूरी के चलते विपक्ष भी इस मामले पर लगातार सरकार पर हमलावर रहा है, लेकिन सच में देखा जाय तो वह भी इस कानून को राज्य में लागू नहीं करवाना चाहता है। वहीँ जबकि दिसम्बर 2013 से उत्तराखंड में लोकायुक्त का पद खाली है और यहां तैनात स्टाफ को हर महीने लाखों रुपये का वेतन दिया जा रहा है साथ ही वाहन और दफ्तर पर भी मोटी रकम खर्च हो रही है लेकिन मुख्यमंत्री  त्रिवेन्द्र सिंह रावत कह रहे हैं कि राज्य में लोकायुक्त कानून की जरुरत नहीं है। 

मुख्यमंत्री के बयानों का यदि साफ अर्थ निकला जाय तो वह यह है कि भाजपा सूबे में लोकायुक्त कानून लागू करवाने से पीछे हट रही है। कुल मिलकर इसका मतलब साफ़ है कि उत्तराखंड में रामराज्य स्थापित हो चुका है यहाँ किसी भी तरह का भ्रष्टाचार किसी भी अधिकारी या विभाग या नेताओं द्वारा नहीं किया जा रहा है लिहाजा यहाँ  रामराज्य चल रहा है। 

devbhoomimedia

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