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बदरीनाथ कपाट खुलने की प्रक्रिया हुई शुरू : तिलों के तेल को लेकर गाडू घड़ा हुआ बद्री धाम रवाना

विश्व प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की प्रक्रिया का पहला चरण पूर्ण 

तेल कलश (गाडू घड़ा) पहुंचा बद्रीनाथ धाम के पुजारी समुदाय डिमरियों के मूल ग्राम डिम्मर स्थित श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
ऋषिकेश :  उत्तराखंड के चार धामों में विश्व विख्यात श्री बद्रीनाथ धाम जी के कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। भगवान बद्रीविशाल जी के महाभिषेक के लिए तिल का तेल उपयोग करने की परम्परा के निमित्त बीते दिन टिहरी राजदरबार नरेंद्र नगर में भगवान बदरीनाथ के महाभिषेक में प्रयुक्त होने वाला तिल के तेल को सुहागिन महिलाओं द्वारा राजभवन में पिरोया गया। इस तेल को गाडू घड़े में लेकर डिम्मर पंचायत के मुख्य लोग परम्परागत रूप से टिहरी राजदरबार नरेंद्र नगर से चलकर बद्रीनाथ धाम का तेल कलश (गाडू घड़ा) पहुंचा बद्रीनाथ धाम के पुजारी समुदाय डिमरियों के मूल ग्राम डिम्मर स्थित श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर।
भगवान बदरीनाथ के लिए सुहागिन महिलाओ ने पीले वस्त्रों की पोशाक पहनकर परम्परागत तरीके से तिल का तेल निकाला। टिहरी दरबार की रानी और सुहागिन स्त्रियों के द्वारा भगवान बद्री विशाल के अभिषेक के लिए तिलों से तेल निकाला जाता है। उसके बाद इस तेल को डिम्मर के डिमरी आचार्यों द्वारा लाये गये कलश में भर दिया जाता है। जिसे गाडू घड़ा कहते हैं, यह कार्य राजदरबार नरेंद्र नगर टिहरी में राजा के महल में होता है। इसी तेल कलश के टिहरी से चलने के साथ ही बद्रीनाथ कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। कपाट खुलने के दौरान भगवान बद्रीविशाल का अभिषेक को इसी तेल के द्वारा किया जाता रहा है।
टिहरी की राजरानी के साथ सुहागन स्त्रियों के द्वारा परम्परागत विधि से निकाला गया यही तेल पूरे छ माह हर दिन भगवान बद्रीविशाल जी के पंचामृत स्नान के दौरान रावल द्वारा भगवान को लगाया जाता है।
इस अवसर पर बद्रीनाथ डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत के महासचिव- राजेंद्र डिमरी,डिमर पंचायत के सचिव- दिनेश डिमरी, केंद्रीय पंचायत के वरिष्ठ सदस्य अनुज डिमरी और टीका प्रसाद डिमरी मौजूद रहे। डिमर पंचायत के चारों पदाधिकारी गाडू घड़ा तेल कलश लेकर बदरीनाथ धाम के लिए प्रस्थान हुए ।
गौरतलब हो कि कोरोना महामारी के चलते इस बार परिस्थितियों को देखते हुए तेल पिरोने और भगवान बद्रीनाथ के पट्ट खोलने की तिथियों में परिवर्तन तक करना पड़ा है।

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