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पहाड़ के मध्यम वर्गीय परिवारों मे आप्सन नहीं, निष्ठा होती है : प्रसून जोशी

उत्तराखंड के गीत- संगीत के कार्यक्रम में पहुंचे प्रख्यात कवि व गीतकार प्रसून जोशी

सी एम पपनैं
गुड़गांव (हरियाणा)। उत्तराखंड के ऋतु-त्योहारों और रिति-रिवाजो पर आधारित संगीतमय नाटक ‘बारामासा’ का भव्य मंचन उत्तराखंड उद्योग जगत से जुडी ‘स्वतथान’ नामक संस्था तथा ‘पर्वतीय लोक कला मंच’ के कलाकारों द्वारा किंगडम ऑफ ड्रीम्स गुड़गांव के शोशा सभागार मे मुख्य अतिथि अल्मोड़ा जिले के गांव दनिया मे जन्मे सर्वश्रेष्ठ गीतकार, पद्मश्री तथा वर्तमान मे राष्ट्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड के चेयरमैन प्रसून जोशी की उपस्थिति मे सम्पन्न हुआ।

मुख्य अतिथि के सानिध्य मे ‘स्वतथान’ संस्था पदाधिकारियों अध्यक्ष नरेंद्र सिंह लड़वाल, महासचिव संजय जोशी, उपाध्यक्ष क्रमशः गणेश सिंह रौतेला व एस सी जोशी कोषाध्यक्ष ललित चंद्र जोशी, सह सचिव सुरेश पांडे तथा अन्य गणमान्य अतिथियो अजय टम्टा (सांसद अल्मोड़ा- पिथौरागढ़), अजय भट्ट (सांसद नैनीताल), ले जनरल ए के भट्ट, जे एस नेगी, सेवानिवर्त डीजीपी राजेंद्र सिंह, बलवंत खाती, युगल किशोर (आईएएस), डी एस रावत रघुवीर सिंह रावत (आईपीएस) तथा एडीजी एम एस रावत द्वारा दीप प्रज्वलन की रश्म के साथ आयोजित सांस्कृतिक सांझ का शुभारंभ हुआ।

संस्था महासचिव संजय जोशी द्वारा अतिथियो का सम्मान कर ‘स्वतथान’ के उद्देश्य व जनसरोकारों के लिए किए जा रहे कार्यो के बारे मे जानकारी दी गई। उत्तराखड से निरंतर हो रहे पलायन पर दुःख व्यक्त किया गया।

मुख्य अतिथि प्रसून जोशी ने अपने संबोधन में उनके द्वारा हिंदी फिल्मों मे पिरोये गए पहाड़ी शब्दो के बावजूद अवगत कराया। शब्द की महत्ता व प्रकृति से प्रकट ध्वनि पर रोचक प्रकाश डाला। पहाड़ के लोगो की उदारता, निष्ठा, उनके संघर्ष व ईमानदारी पर गर्व महसूस कर व्यक्त किया, पहाड़ के लोग पल-बढ़ कर, विश्वास अर्जित कर आगे बढ़ते हैं। ईमानदारी का आलम रहा पहाड़ी गांव के मकानों मे ताला नही लगता, क्यों कि उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। बुजुर्गो से प्राप्त संस्कार जीवन भर परिलक्षित होते रहे। पहाड़ के मध्यम वर्गीय परिवारों मे आप्सन नही, निष्ठा होती है, जिसके बल वे अपने कार्यो मे सफलता हासिल करते हैं। वे किसी के साथ छल नही कर सकते।

प्रसून जोशी ने गम्भीरता पूर्वक व्यक्त किया, जिस समाज की कहानियां जीवित नही रहती, उस समाज की संस्कृति क्या है? इटली का उदाहरण पेश कर उन्होंने व्यक्त किया, वहां भी चिड़िया है, उनका अर्थ व कहानी अलग है। संस्कृति को जिंदा रखना जरूरी है। शब्द संस्कृति का कैप्सूल है। शब्द मे गंध व आत्मा होती है। शब्द से रिश्ता बनाना जरूरी है, क्योकि शब्द से ही सृजन होता है।

अपने समापन वक्तव्य मे प्रसून जोशी ने उत्तराखंड समाज के लोगों द्वारा किए जा रहे कार्यो की सराहना की व सदैव अपने स्तर पर साथ निभाने की बात कही। जड़ो से जुडी कविता सुना अपना वक्तव्य समाप्त किया-

खड़े-खड़े क्यों हैं वृक्ष…सुख जाओगे..जितनी बड़ी गहरी जड़े…धरती के गहरे जो.. उनके आगे एक दिन सारा विश्व झुकेगा.. खड़े-खड़े क्यों हो….सूख जाओगे…जड़ के बिना तुम चेतन कहा हो सकते हो..ये शाखाए नृत्य करेंगी…उनसे ही तुम…।

कार्यक्रम आयोजक संस्था के पदाधिकारियो द्वारा मुख्य अतिथि प्रसून जोशी को स्मृति चिन्ह व पुष्पगुच्छ भेट कर सम्मानित किया गया।

गायिका सुभांगी तिवारी द्वारा डॉ मथुरादत्त पांडे द्वारा रचित गीत राग मल्हार मे तथा सागरिका जोशी द्वारा गिटार पर कुमांऊनी गीत कैले बजे मुरली…। की विशेष प्रस्तुतियों के बाद पर्वतीय लोक कला मंच के कलाकारों द्वारा संगीतमय नाटक बारामासा का भव्य मंचन किया गया।

‘बारामासा’ उत्तराखंड देवभूमि मे चैत से फागुन माह तक होने वाले ऋतू-त्योहारों और रिति-रिवाजो का पारंपरिक गीत-संगीत-नृत्य व विरह का समायोजन है। मंचित संगीतमय नाटक शीर्षक गीत-
आओ-आओ देखुल बारामासा…पैल चैत मैहैंण…। के रमणीक कर्णप्रिय लोकगीत की प्रस्तुति मे मंच के पर्दे पर बिखरी हिमालय की सौन्दर्य से भरपूर रमणीक छटा के साथ आयोजित सांस्कृतिक सांझ का भव्य शुभारंभ हुआ।

उत्तराखंड के ऋतू-त्योहारों व रिति-रिवाजो पर आधारित बच्चों के त्यौहार फूल ध्येई। ऋतुरैण लोकगीत से सबद्ध ‘भिटौली’ से जुड़ा लघु कुमाउनी नाटक, व्याह- संस्कार के गीत, गंगा दशहरा पर विरह गीत, धान रुपाई पर गाया जाने वाला ‘हुड़किया बौल’, नंदादेवी मेला, जागर, संध्या गीत, उत्तरायणी कौतिक पर हास्य गीत, होली चीर बंधन गीत, बैठ होली, खड़ी होली, झोड़ा, चोंफला तथा थड़िया इत्यादि लोकगीत-संगीत व नृत्य की मनभावन प्रस्तुतियों ने सभागार मे बैठे श्रोताओं को भावविभोर किया। पल-पल उन्हे उत्तराखंड की लोक संस्कृति व त्योहारों की याद मे डुबोया। सांस्कृतिक सांझ की समाप्ति पर जनगीत-
सबु है बेर सुन्दर, सबु है बे न्यारा, न्यारो हमारा पहाड़…।
की समाप्ति पर-
हम सबुकै मिले बे आज, देखि है बारामासा…।
गीत की प्रस्तुति के साथ ही पर्वतीय लोक मंच के द्वारा प्रस्तुत रमणीक लोकगीत-संगीत व नृत्य कार्यक्रम समाप्त हुआ।

गायन मे सुधीर रिखाड़ी, हरीश रावत, सत्येन्द्र फ्रण्डियाल, शंकर दत्त शर्मा, महेंद्र लटवाल, भूपाल सिंह बिष्ट तथा डॉ पुष्पा तिवारी बग्गा ने लोकगायन की विभिन्न विधाओं मे गायन कर कार्यक्रम को सफल मुकाम हासिल करवाया। नृत्यो मे लक्ष्मी रावत पटेल, पुष्पा जोशी, गीता नेगी, ममता कर्नाटक तथा गंगा दत्त भट्ट के साथ-साथ छोलिया नृत्य किसन पहाड़िया के साथियो ने प्रभावित किया। वाद्य वादन मे हारमोनियम मे दक्ष राज शर्मा, हुड़का भुवन रावत, सितार डॉ श्याम रस्तोगी, सारंगी अनिल मिश्रा तथा बांसुरी मे राजेंद्र सेमवाल ने प्रभावशाली संगत कर उत्तराखंड के स्मृद्ध लोकसंगीत की पुनरावर्ती कर श्रोताओं के दिलो-दिमांग को तरोताजा किया। हरि खोलिया की रूप सज्जा व भगवत मनराल द्वारा पात्रो की वस्त्र सज्जा कार्यक्रम के अनुकूल थी। प्रकाश व्यवस्था व हिमालयी दृश्य बंध मे डॉ कमल कर्नाटक, संगीता सतीजा व रवि सोनकर ने बेहतरीन तकनीक का परिचय दे, छाप छोड़ी। अन्य पात्रो मे हेमपन्त, दीपिका पांडे, भगत सिंह नेगी, के एन पांडे ‘खिमदा’, भाष्कर बिष्ट, किरण नेगी ने भी दर्शको को प्रभावित किया

उत्तराखंड की लोकसंस्कृति अपने अंदर मध्य हिमालयी हरे-भरे प्रकृति के सौन्दर्य, लोक रिति-रिवाजो, संस्कारो व हिम ग्लेशियरों से प्रकट नदियों के अदभुत सौन्दर्य को समेटे हुए है। परंपरागत संस्कारो व प्राचीन धार्मिक परंपराओं व संस्कारो को सहेजे हुए है। संगीत, नृत्य, कला यहां की संस्कृति को हिमालय से जोड़ती है।
उत्तराखंड की नृत्य शैली जीवन और मानव अस्तित्व से जुड़ी है, और असंख्य मानवीय भावनाओ को प्रदर्शित करती है
मंचित संगीतमय नाटक ‘बारामासा’ मे यह सब श्रोताओ को भरपूर आनंद के साथ दृष्टिगत हुआ। उत्तराखंड के प्रवासी जनो ने अपनी संस्कृति को दिल्ली एनसीआर मे शालीनता से संजोया हुआ है, उदाहरण स्वरूप स्पष्ट भी हुआ।

आयोजित ‘उत्तराखंड संस्कृति की एक झलक’ कार्यक्रम का निर्देशन गंगादत्त भट्ट व हेमपंत तथा संगीत निर्देशन डॉ पुष्पा तिवारी बग्गा द्वारा बखूबी अंदाज मे प्रस्तुत किया गया। नाटक प्रस्तुतिकरण व मंच संचालन हेमपंत ने किया।

सभागार मे बैठे श्रोताओं के मध्य उत्तराखंड के प्रबुद्ध साहित्यकारो, बुद्धिजीवियों, उद्योग जगत से जुडे लोगों तथा समाज सेवियो मे के सी पांडे, चंदन डांगी, हेमा उनियाल, सतीश शर्मा, हरिसुमन बिष्ट, मीना कंडवाल, लोकेश गैरोला, अजय बिष्ट, अरुण डोभाल, किरण लखेडा, प्रकाश उपाध्याय, बी डी जोशी, विनोद ढोंडियाल इत्यादि की उपस्थिति मुख्य तौर पर देखी गई।

‘स्वतथान’ संस्था अध्यक्ष नरेंद्र सिंह लड़वाल के द्वारा सभी गणमान्य अतिथियो, श्रोताओं व सहयोगियों का आभार व्यक्त करने के साथ ही आयोजन समाप्ति की घोषणा की गई।

उत्तराखंड का लोकगीत संगीत व रंगमंच मे उच्च स्थान है। नाटकों का इतिहास स्मृद्ध रहा है। लोकनाट्य असिमित हैं। समय-समय पर आयोजित कार्यकर्मो से यह सब सिद्ध भी होता रहा है। वर्तमान मे जरुरत है इन्हे निष्ठा, ईमानदारी व तत्पर रह कर आगे बढाने की। समृद्ध करने की। जिस हेतु केंद्र व राज्य सरकार को उत्तराखंड की लोकसांस्कृतिक समृद्धि हेतु स्थापित सांस्कृतिक संस्थाओं, कलाकारों व साहित्य सृजन कर रहे रचयिताओं की उन्नति हेतु उच्च स्तर पर नीति बनाकर उसे धरातल पर उतार, दृष्टिगत करने की दरकार है।

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